जम्मू कश्मीर. पाकिस्तान के साथ लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित यह केंद्र शासित प्रदेश जितना संवेदनशील है, प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से जितना खूबसूरत है, यहां की सियासत और जनता का मिजाज भी उतना ही बहुरंगी है. अलग-अलग रीजन में, एक ही रीजन के अलग-अलग इलाकों में जनता का सियासी मिजाज और वोटिंग पैटर्न पर भी ये नजर आता है.
कोई जम्मू में मजबूत है तो कश्मीर में आधार नहीं, कोई कश्मीर में मजबूत है तो उसका किला दक्षिण कश्मीर है और उत्तर-मध्य में खास पकड़ नहीं. जम्मू कश्मीर की सियासत का मिजाज ऐसा कि रीजन के भीतर सब रीजन, पॉकेट के भीतर भी एक पॉकेट हैं. हालिया विधानसभा चुनाव में पॉकेट पॉलिटिक्स का तिलिस्म कितना टूटा? इसे समझने से पहले ये समझ लेना भी जरूरी है कि जम्मू कश्मीर की पॉकेट पॉलिटिक्स आखिर है क्या.
जम्मू कश्मीर की पॉकेट पॉलिटिक्स
जम्मू कश्मीर में हर दल के प्रभाव की एक सरहद है. हम ये तो सुनते और देखते आए हैं कि जम्मू और कश्मीर घाटी, इन रीजन का राजनीतिक मिजाज और वोटिंग पैटर्न एक-दूसरे के उलट रहता है. बात केवल इतने तक नहीं है. इन रीजन में भी अलग-अलग इलाकों में अलग पार्टियों का वर्चस्व नजर आता है. जम्मू रीजन की ही बात करें तो मैदानी और हिंदू बाहुल्य इलाकों में मजबूत नजर आने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इसी रीजन के राजौरी, पुंछ, डोडा, किश्तवाड़ और रामबन जैसे घाटी से लगते मुस्लिम बाहुल्य जिलों में फिसड्डी हो जाती है.
जम्मू रीजन के हिंदू बाहुल्य इलाकों के मतदाता बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों, पैंथर्स पार्टी जैसी क्षेत्रीय ताकत के साथ कदमताल करते नजर आते हैं लेकिन मुस्लिम बाहुल्य जिलों में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसी घाटी की पार्टियां मजबूत नजर आती हैं. कश्मीर में बीजेपी के लिए नौ एंट्री का बोर्ड नजर आता है तो घाटी की पार्टियों का प्रभाव भी खास पॉकेट्स तक ही मजबूत नजर आता है. पीडीपी का गढ़ दक्षिण कश्मीर है तो उत्तर और मध्य कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस का किला. नियंत्रण रेखा के समीप वाले इलाके में सज्जाद लोन की पार्टी मजबूत मानी जाती है तो लंगेट बेल्ट में इंजीनियर राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी.
कितनी टूटीं 'पॉकेट' की सरहदें?
जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद हुए हालिया चुनाव में हर दल अपनी पॉकेट बचाने के साथ दूसरे का किला भेदने के लिए जोर लगाता नजर आया. बीजेपी एसटी रिजर्व सीटों के जरिये जम्मू रीजन के मुस्लिम बाहुल्य जिलों में, निर्दलीयों के सहारे घाटी में मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश में थी तो वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस को कांग्रेस से गठबंधन के जरिये जम्मू की सियासी जमीन पर भी हल चलने की उम्मीद थी. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती दक्षिण कश्मीर का गढ़ बचाए रखने की कोशिश में पार्टी को अधिक सीटें मिलने पर पोटा खत्म कराने जैसे कदम गिना वोट की ताकत बताते नहीं थक रही थीं.
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चुनाव नतीजे आए तो ज्यादातर दलों की पैन जम्मू कश्मीर, पैन जम्मू, पैन कश्मीर पार्टी बनने की महत्वाकांक्षाएं टूट गईं. किश्तवाड़ सीट से शगुन परिहार की जीत छोड़ दें तो बीजेपी की मौजूदगी जम्मू के हिंदी बेल्ट तक ही सीमित रह गई. लोकसभा चुनाव में बारामूला सीट पर मिली जीत से उत्साहित इंजीनियर राशिद की पार्टी का पैन घाटी पार्टी बनने का सपना जमात के साथ के बावजूद टूट गया. जनता ने राशिद की पार्टी को लंगेट सीट तक ही समेट दिया. सज्जाद लोन की पार्टी के उम्मीदवारों की कौन कहे, वह खुद अपनी दो में से एक सीट ही जीत सके. लोन कुपवाड़ा और हंदवाड़ा से चुनाव मैदान में उतरे थे और कुपवाड़ा में उन्हें मात मिली.
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पीडीपी बिजबेहरा जैसी मुफ्ती परिवार की परंपरागत सीट भी नहीं बचा पाई. बिजबेहरा से महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती को भी हार का सामना करना पड़ा. 2014 के चुनाव में दक्षिण कश्मीर की 16 में से 11 सीटें जीतने वाली पीडीपी 2024 में महज तीन सीटों पर सिमट गई. जमात-ए-इस्लामी के कोर वोटर्स के छिटकने का लाभ नेशनल कॉन्फ्रेंस को मिला और पार्टी पीडीपी की इस पॉकेट में भी मजबूत प्रदर्शन कर सेंध लगाने में एक हद तक कामयाब नजर आती है.
किस रीजन में किसका प्रदर्शन कैसा रहा
जम्मू रीजन में 43 विधानसभा सीटें हैं और कश्मीर में 47. जम्मू रीजन में बीजेपी को 29, नेशनल कॉन्फ्रेंस को सात, कांग्रेस को एक और अन्य को छह सीटों पर जीत मिली है. कश्मीर घाटी में 47 विधानसभा सीटें हैं. घाटी की 35 सीटों से नेशनल कॉन्फ्रेंस, पांच से कांग्रेस और एक सीट से सीपीएम के उम्मीदवार जीते हैं. इन तीनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था. पीडीपी को तीन, इंजीनियर राशिद की पार्टी को एक, जम्मू कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस को एक और एक निर्दलीय को जीत मिली है. जम्मू कश्मीर विधानसभा 90 सीटों के लिए हुए चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और सीपीएम के गठबंधन को 49 सीटों पर जीत के साथ पूर्ण बहुमत मिला है.