बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ बीजेपी नेताओं के बैठक के बाद यह फैसला लिया गया है. उधर सरकार के अल्पमत में आते ही महबूबा मुफ्ती ने जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा को अपना इस्तीफा सौंप दिया है. बीजेपी कोटे के सभी मंत्रियों ने भी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है.
राज्य में बीते तीन साल से चल रहे इस बेमेल गठबंधन के दौरान कई बार ऐसे मौके आए जब दोनों दल आमने-सामने दिखे और लगा कि गठबंधन टूट जाएगा. कठुआ रेप कांड हो या फिर मेजर गोगोई के खिलाफ FIR दर्ज करने का मामला सत्ता के सहयोगी होने के बावजूद बीजेपी-पीडीपी के सुर कभी एक जैसे नहीं रहे. ऐसे कई मौके आए जब दोनों दलों के बीच आपस में ठन गई.
हुर्रियत से बातचीत
अलगाववादी संगठन हुर्रियत से बातचीत को लेकर बीजेपी का रुख हमेशा कड़ा रहा है. स्थानीय पार्टी होने के नाते महबूबा मुफ्ती हमेशा चाहती थीं कि घाटी में शांति और अमन के लिए बातचीत का रास्ता निकाला जाए. यही वजह थी कि सरकार में रहने के दौरान वह हमेशा केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी को हुर्रिकत के साथ बातचीत के लिए मनाती रहीं. इसी गठबंधन का दवाब ही था जिसकी वजह से केंद्र ने अलगाववादियों से वार्ता के लिए दिनेश्वर शर्मा को जम्मू कश्मीर भेजा था.
कठुआ कांड से बढ़ी कड़वाहट
मासूम बच्ची के साथ बलात्कार के बाद बीजेपी नेताओं ने आरोपी के समर्थन में रैली की जिसने मुख्यमंत्री महबूबी मुफ्ती और उनकी पार्टी के नेताओं के असहज कर दिया. कानून व्यवस्था राज्य का जिम्मा है ऐसे में सीएम दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध थीं दूसरी ओर सहयोगी दल का ही आरोपियों के पक्ष में रैली करना गठबंधन के लिए ताबूत में कील ठोकने के बराबर था. इसके अलावा इस घटना के बाद महबूबा मुफ्ती को स्थानीय लोगों का रोष भी झेलना पड़ा क्योंकि सीएम होने के नाते महिलाओं की सुरक्षा उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी.
मेजर गोगोई का मामला
सेना के मेजर गोगोई ने एक स्थानीय नागरिक फारूक अहमद डार को आर्मी की जीप के बोनट पर बांधकर बडगाम के दर्जनों गांवों में घुमाया था. इसके बाद से सेना की ओर से उन्हें इनाम दिया गया और जम्मू कश्मीर सरकार ने मेजर पर FIR दर्ज करा दी. इसके बाद राज्य में राजनीतिक बवाल मच गया, बीजेपी अपनी ही सरकार के इस कदम के साथ नहीं थी और इस दौरान बीजेपी नेताओं ने महबूबा मुफ्ती की जमकर आलोचना की थी.
मेजर आदित्य पर FIR
शोपियां में पत्थरबाजों पर सेना की फायरिंग में 2 पत्थारबाजों की मौत के बाद भी लबीजेपी-पीडीपी बंटी हुई दिखीं. फायरिंग का आदेश देने को लेकर मेजर आदित्य के खिलाफ केस दर्ज किया गया. राज्य सरकार की इस कार्रवाई को लेकर देशभर में विरोध हुआ था. बीजेपी भी इस कार्रवाई के सख्त खिलाफ थी. मेजर आदित्य के पिता ने खुद मोर्चा संभाला और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की. बाद में कोर्ट ने मेजर आदित्य के खिलाफ FIR पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया.
घाटी में सीजफायर का फैसला
महबूबा मुफ्ती रमजान के मौके पर एक माह के लिए जम्मू कश्मीर में सीजफायर और ऑपरेशन ऑलआउट को रोकना चाहती थीं, हालांकि स्थानीय बीजेपी नेता इसके पक्षधर नहीं थे और इसे लागू करने के फैसले पर विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ. केंद्र और गृहमंत्रालय की ओर से बाद में सीजफायर को लागू किया गया हालांकि इस दौरान भी घाटी में शांति और अमन कायम नहीं हो सका और लगाताक पत्थरबाजी और सीमापार से फायरिंग की घटनाएं हुईं.
पाकिस्तान से वार्ता
महबूबा मुफ्ती और उनकी पार्टी पीडीपी जम्मू कश्मीर में शांति कायम करने के लिए पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ वार्ता की पक्षधर रही हैं लेकिन इसे लेकर बीजेपी का रुख साफ है. बीजेपी गोली और बोली साथ-साथ नहीं चलाने का नारा देकर किसी भी सूरत में पाकिस्तान से बातचीत नहीं करना चाहती. स्थानीय लोगों के लिहाज से पाकिस्तान से वार्ता की समर्थन करके महबूबा अपना जनाधार बढ़ाना चाहती थीं लेकिन देशभर में जैसा माहौल है वैसे में बीजेपी पाकिस्तान से बातचीत का रास्ता खोलकर अपने नंबर कम नहीं करना चाहती है.
विशेष दर्जा देने का मुद्दा
जम्मू कश्मीर को धारा 370 के तहत विशेष दर्जा हासिल है लेकिन बीजेपी इसके खिलाफ खड़ी रही. तीन साल के दौरान कई बाद इसे खत्म करने की पहले भी की गई जिससे महबूबा मुफ्ती की छवि को काफी धक्का लगा. बीजेपी की यह कोशिश गठबंधन के खिलाफ थी और इसकी वजह से पीडीपी को राज्य में अपने ही लोगों की नाराजगी भी झेलनी पड़ी.