अनुच्छेद-370 हटने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू-कश्मीर के क्या हाल-चाल हैं? पूरे देश की इसपर नजर है. हर कोई यह जानना चाहता है कि 370 हटने के करीब 2 साल बाद जम्मू-कश्मीर में माहौल कितना बदला है. दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर को लेकर अपनी अगली रणनीति बना ली है. इसके तहत प्रधानमंत्री ने कश्मीर पर सर्वदलीय बैठक बुलाई है. सूत्रों के मुताबिक 24 जून को होने वाली इस बैठक के लिए दलों से संपर्क साधा जा रहा है.
माना जा रहा है कि सरकार जम्मू-कश्मीर में हालात को सामान्य करने और राजनीतिक गतिविधियां बढ़ाने का मन बना चुकी है. हालांकि अभी इसको लेकर कोई औपचारिक बयान जारी नहीं हुआ है. लेकिन इतना तय है कि नए कश्मीर के लिए पीएम का फ्यूचर प्लान बिल्कुल तैयार है.
5 अगस्त 2019 का एतिहासिक दिन, जब मोदी सरकार ने एक झटके से अनुच्छेद 370 को खत्म करने का ऐलान किया. सियासी भूचाल लाने वाले इस फैसले के 683 दिन बाद अब जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक खामोशी तोड़ने के संकेत मिल रहे हैं. खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बुलाए गए सर्वदलीय बैठक में जम्मू-कश्मीर के सभी क्षेत्रीय दलों के साथ चर्चा करेंगे.
24 तारीख को हो सकती है बैठक
सूत्रों के मुताबिक जून महीने की 24 तारीख को बैठक हो सकती है. बैठक के लिए दलों से संपर्क साधा जा रहा है. अब तक 9 पार्टियों से बात हुई है, जबकि प्रदेश के 16 दलों से संपर्क अभी साधा जाना है. पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने बैठक को लेकर फोन कॉल आने की बात तो कही है. लेकिन पीडीपी कह रही है मीटिंग के लिए औपचारिक न्योता नहीं मिला.
हालांकि महबूबा ने पॉलिटिकल अफेयर कमेटी को चर्चा के लिए बुलाया है. रविवार यानी आज होने वाली इस बैठक में तय किया जाएगा कि पीएम के साथ होने वाली मीटिंग में पीडीपी शामिल होगी या नहीं और अगर होगी तो एजेंडा क्या होगा?
सूत्रों के मुताबिक महबूबा मुफ्ती ने बैठक के लिए हामी भर दी है. लेकिन फाइनल फैसला पार्टी की बैठक के बाद करेंगी. उधर नेशनल कॉन्फ्रेंस खेमे ने औपचारिक न्योते तक चुप्पी साधे रहने की रणनीति बनाई है. कहां बैठक होगी इस बारे में फैसला मंगलवार यानि 22 जून को लिया जाएगा.
गुपकार गुट के सभी दलों ने चर्चा को दी मंजूरी
सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री के साथ बैठक को लेकर गुपकार गुट के 6 में से लगभग सभी दलों ने मौटे तौर पर सकारात्मक संकेत दिए हैं. पीपुल्स पार्टी के सज्जाद लोन और जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के अल्ताफ बुखारी बातचीत के पक्ष में हैं. महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला भी औपचारिक न्योते का इंतजार कर रहे हैं.
सूत्रों के मुताबिक अवामी नेशनल कॉन्फ्रेस भी बातचीत के लिए तैयार है. इसके साथ ही CPIM ने भी बैठक में शामिल होने पर अच्छे संकेत दिए हैं. उधर जम्मू-कश्मीर कांग्रेस ने भी सर्वदलील बैठक का स्वागत किया है. उन्होंने कहा- बैठक के लिए न्योता तो नहीं मिला, लेकिन केंद्र की ओर से बातचीत के प्रस्ताव की सराहना होनी चाहिए. देर से सही लेकिन फैसला सही है.
सर्वदलीय बैठक का क्या है एजेंडा?
सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री की इस सर्वदलीय बैठक का एजेंडा क्या होगा? सूत्रों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिरोध खत्म करने और फिर से राज्य का दर्जा बहाल करने के साथ साथ विधानसभा चुनाव कराने पर चर्चा हो सकती है. इससे पहले शुक्रवार को दिल्ली में अमित शाह ने कश्मीर पर हाईलेवल बैठक की.
बैठक में राज्य के हालात पर व्यापक चर्चा हुई. राजनीतिक माहौल को भांपा गया. कमजोर पड़ चुके आतंक पर रिपोर्ट ली गई. इसके बाद ही राजनीतिक गतिविधियों को लेकर एक सहमति बनाने का फैसला लिया गया है.
अगर जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियां शुरू हो गई तो ये सरकार के लिए बड़ी कामयाबी होगी. इससे एक तीर से दो निशाना सधेगा. पहला 370 के खात्मे के बाद कश्मीर में शांति व्यवस्था स्थापित करने का माहौल बनेगा. साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये संदेश जाएगा कि कश्मीर में सबकुछ सामान्य हैं. हालात ठीक-ठाक हैं और ये पाकिस्तान के दुष्प्रचार वाले एजेंडे पर चोट की तरह होगा.
जम्मू-कश्मीर में सियासी बर्फ पिघलाने की कोशिश
यानि अब कह सकते हैं कि कश्मीर की वादियों में बदलते मौसम के साथ सियासी बयार भी बहने लगी है. डल झील की बर्फ पिघल चुकी है. अब राजनीतिक बर्फ को पिघलाने की कोशिश है. जम्मू-कश्मीर का पहले ही दो हिस्सों में विभाजन हो गया है. लेकिन अब जम्मू को कश्मीर से अलग करने की मांग भी तेज हो रही है. जम्मू की बड़ी आबादी की शिकायत ये है कि कश्मीर का विधानसभा में बहुमत है लिहाजा- उनकी बातों को सुना नहीं जाता. जम्मू की समस्याएं हल नहीं होती.
बीजेपी और शिवसेना जैसे दल भी जम्मू को अलग राजनीतिक दर्जा देने की मांग लंबे वक्त से उठा रहे हैं. लिहाजा परिसीमन आयोग का गठन हुआ और वो विधानसभा की सीटों का पूर्णनिधारण के काम में जुट गई. उधर POK की 24 सीट और कश्मीरी पंडितों के लिए भी अलग से सीट देने की मांग उठ रही है. पूरा गणित ऐसे बैठाया गया है कि जम्मू क्षेत्र का फायदा होगा.
जम्मू को अलग राज्य का दर्जा दिया जाए
मांग पुरानी है- जम्मू को कश्मीर से अलग कर दिया जाए. सियासी दल खासकर बीजेपी इसकी झंडाबरदार रही है. ऐसे में अफवाहों का बाजार गर्म हो गया है. हो ना हो मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर को लेकर कुछ बड़े फैसले लेने जा रही है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या जम्मू और कश्मीर को दो हिस्से में बांटने की तैयारी है?
परिसीमन में जम्मू का पलड़ा भारी रखने की रणनीति
दरअसल परिसीमन आयोग के एक्शन में आने के बाद चर्चा तेज हो गई है. सूत्रों के मुताबिक परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर के सभी 20 जिलों के DC को चिट्ठी लिखकर मतदाताओं से जुड़ा आंकड़ा मांगा है. परिसीमन आयोग को जम्मू-कश्मीर की विधानसभा सीटों को नए सिरे से तय करना है.
सवाल है कि क्या परिसीमन आयोग का एक सूत्री मकसद जम्मू क्षेत्र की राजनीतिक हैसियत बढ़ाना है और क्या इसके जरिए बीजेपी जम्मू-कश्मीर में सियासी पकड़ मजबूत करना चाहती है? ये समझने के लिए सबसे पहले हमें जम्मू-कश्मीर विधानसभा के गणित को समझना पड़ेगा.
अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करने से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 87 सीट थी. इसमें जम्मू इलाके से 37 सीटें, कश्मीर से 46 सीटें और लद्दाख से 04 उम्मीदवार आते थे. जब 5 अगस्त 2019 में लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया तब जम्मू-कश्मीर विधानसभा की कुल संख्या घटकर 83 हो गई.
परिसीमन से बढ़ेगी जम्मू की ताकत
अब परिसीमन आयोग 2011 की जनगणना के अनुसार विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण कर रहा है. ऐसा करने से विधानसभा में कम से कम 7 और सीट बढ़ सकती है. मतलब विधानसभा की कुल सीट 90 हो जाएगी. बात इतनी तक नहीं है. मांग ये भी उठ रही है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 24 खाली सीटें भी हैं जो पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर के लिए आरक्षित हैं. उनमें से एक तिहाई सीटों को भरा जाए.
ऐसा करने से 24 में 8 सीटें और मिलेंगी. इन जोड़ी गई 8 सीटों में वोट वहीं देंगे जो पीओके से विस्थापित होकर जम्मू इलाके में आए हैं. सीधी बात है, इससे जम्मू क्षेत्र का पलड़ा भारी होगा.
जम्मू को अलग राज्य बनाने की होती रही है मांग
इतना ही नहीं, जम्मू क्षेत्र के कई सामाजिक-राजनीतिक संगठन और विस्थापित कश्मीरी पंडित भी जम्मू को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. उनकी मांग है कि जम्मू क्षेत्र ने दशकों से भेदभाव का सामना किया है लिहाजा- जम्मू को कश्मीर से अलग कर दिया जाए. अगर अलग नहीं करते हैं तो कश्मीरी पंडितों के लिए कश्मीर कोटे की 46 सीटों में कम से कम 3 सीटों को आरक्षित किया जाए, जिसपर कश्मीरी पंडित ही वोट डाल सकें.
यानी कि अगर जम्मू से कश्मीर अलग नहीं भी होता है तो परिसीमन के बाद जम्मू इलाके की राजनीतिक हैसियत बढ़ाने की तैयारी है. अगर सभी मांगे मान ली गईं तो कश्मीर विधानसभा का गणित कुछ ऐसा हो सकता है.
जम्मू क्षेत्र- मौजूदा सीट 37. इसमें POK के 8 सीट जुड़ जाए तो संख्या 45 हो जा सकती है. इसमें परिसीमन कोटे से 7 सीटों में से भी कुछ सीट जुड़ेंगी. उधर कश्मीर की 46 सीटों में 3 सीट कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित करने की मांग उठ रही है. अगर ऐसा हुआ तो विधानसभा में कश्मीर की राजनीतिक ताकत घटेगी.
इसके साथ ही अनुच्छेद 370 हटाने के बाद आरक्षित सीटों में अनुसूचित जनजाति का कोटा भी तय होगा. एक अनुमान के मुताबिक ये 5 से 6 तक हो सकता है.
बहरहाल अभी इस सियासी गणित में किंतु-परंतु की बहुत गुंजाइश है. मौजूदा राजनीतिक गणित में बीजेपी जम्मू क्षेत्र में ताकतवर है लेकिन कश्मीर इलाके में कमजोर. लिहाजा तय मानिए कि भविष्य के चुनावी नफा नुकसान देखकर ही आगे का फैसला होगा.