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सैयद अली शाह गिलानीः अध्यापन से सियासत में आए, ऐसे बनी अलगाववादी की छवि

पाकिस्तान समर्थक माने जाने वाले गिलानी तीन दफे विधानसभा के सदस्य भी रहे हैं. गिलानी साल 1972, 1977 और 1987 में जम्मू कश्मीर के सोपोर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे थे. हालांकि, बाद में गिलानी ने चुनावी राजनीति से दूरी बना ली थी.

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कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी (फाइल फोटो- Gettyimages)
कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी (फाइल फोटो- Gettyimages)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • तीन बार विधायक रहे सैयद अली शाह गिलानी
  • सोपोर में हुई थी शुरुआती शिक्षा, लाहौर में धार्मिक

जम्मू कश्मीर के वयोवृद्ध अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का निधन हो गया है. 92 साल के गिलानी ने श्रीनगर के हैदरपुरा स्थित आवास पर बुधवार की रात 10.35 बजे अंतिम सांस ली. वे पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे. 29 सितंबर 1929 को बारामुला जिले के सोपोर क्षेत्र के दुरू गांव में उनका जन्म हुआ था. गिलानी के निधन पर पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट की प्रमुख महबूबा मुफ्ती समेत कई नेताओं ने शोक व्यक्त किया है.

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पाकिस्तान समर्थक माने जाने वाले गिलानी तीन दफे विधानसभा के सदस्य भी रहे हैं. गिलानी साल 1972, 1977 और 1987 में जम्मू कश्मीर के सोपोर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे थे. हालांकि, बाद में गिलानी ने चुनावी राजनीति से दूरी बना ली थी. गिलानी ने साल 1950 में अपने सियासी सफर का आगाज किया था और 28 अगस्त 1962 को अशांति फैलाने के आरोप में पहली बार जेल गए.

सैयद अली शाह गिलानी पहले जमात-ए-इस्लामी कश्मीर से जुड़े. 2004 में गिलानी जमात-ए-इस्लामी से अलग हो गए और तहरीक-ए-हुर्रियत के नाम से अपनी खुद की पार्टी भी बनाई. साल 1993 में 26 अलगाववादी संगठनों ने मिलकर ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस नाम से एक वृहद संगठन बनाया था. सैयद अली शाह गिलानी इसके अध्यक्ष भी रहे हैं. उन्होंने अभी पिछले साल ही हुर्रियत के आजीवन अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था और पार्टी से नाता तोड़ने का ऐलान किया था. 

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कैसे बनी गिलानी की अलगाववादी छवि

सैयद अली शाह गिलानी साल 1987 के विधानसभा चुनाव में सोपोर विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर तीसरी दफे विधायक बने थे. साल 1989 में शुरू हुआ कश्मीर में इमरजेंसी का शुरुआती दौर. सैयद अली शाह गिलानी ने कश्मीर में इमरजेंसी के इस शुरुआत दौर में ही विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. गिलानी के इस कदम के कारण उनकी छवि अलगाववादी नेता के तौर पर बनी. गिलानी ने इसके बाद फिर कभी चुनाव नहीं लड़ा.

गिलानी को ‘बाब’ बुलाते थे पत्थरबाज

कश्मीर में  सुरक्षाबलों पर पत्थर बरसाने वाले पत्थरबाज सैयद अली शाह गिलानी को ‘बाब’ नाम से बुलाते हैं. अलगाववादी गितिविधियों को शह देने की वजह से सैयद अली शाह गिलानी के जीवन का बड़ा हिस्सा जेल में ही बीता है. गिलानी साल 2010 से अब तक अधिकतर समय अपने घर में ही नजरबंद रहे. एकबार उन्होंने खुद भी कहा था कि जब भी चुनाव आते हैं, सरकार उन्हें जेल में डाल देती है.

लाहौर में हुई थी गिलानी की उच्च शिक्षा

सैयद अली शाह गिलानी की शुरुआती शिक्षा सोपोर मे ही हुई थी. इसके बाद वे उच्च शिक्षा ग्रहण करने लाहौर चले गए. लाहौर में गिलानी ने कुरान का अध्ययन किया. लाहौर से धर्म शास्त्र का अध्ययन कर कश्मीर लौटे गिलानी अध्यापक बन गए. अध्यापन कार्य के दौरान ही गिलानी जमात-ए-इस्लामी से जुड़े लोगों के संपर्क में आए और बाद में इसके प्रमुख कार्यकर्ता बन गए.

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पाकिस्तान ने दिया सर्वोच्च नागरिक सम्मान

सैयद अली शाह गिलानी टेरर फंडिंग केस में एनआईए जांच की जद में भी रहे हैं. गिलानी की गिनती पाकिस्तान समर्थक नेताओं में होती थी. उन्हें पिछले ही साल ने पाकिस्तान ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा था. हालांकि, ये सम्मान लेने गिलानी नहीं गए थे. हुर्रियत के स्थानीय नेताओं ने 14 अगस्त 2020 को गिलानी के लिए निशान-ए-पाकिस्तान सम्मान राष्ट्रपति से प्राप्त किया था.

 

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