कठुआ गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया, जम्मू-कश्मीर स्टेट बार काउंसिल, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन और कठुआ ज़िला बार एसोसिएशन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा.
सुप्रीम कोर्ट ने 46 वकीलों के ग्रुप की ओर से दाखिल लैटर पीटिशन पर संज्ञान लेते हुए कहा कि कानून में यह तय है कि कोई भी वकील, उनका ग्रुप या एसोसिएशन किसी भी वकील को केस में पीड़ित या आरोपी के लिए पेश होने से नहीं रोक सकता.
चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि अगर वकील अपने क्लाइंट का केस स्वीकार करता है तो उसकी जिम्मेदारी है कि वो उसके लिए पेश हो. अगर उसको रोका जाता है तो फिर ये कानूनी प्रक्रिया में रुकावट है और इसे न्याय पाने में बाधा माना जाएगा.
याचिका में मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि 8 साल की बच्ची से रेप और हत्या के मामले में बार एसोसिएशन के कई वकीलों ने प्रदर्शन किया और क्राइम ब्रांच को आरोपपत्र दाखिल करने से रोका गया. इतना ही नहीं बाद में जम्मू-कश्मीर बार एसोसिएशन के सदस्यों ने उसका समर्थन भी किया. पीड़ितों के परिवार के साथ साथ उनके वकील को आरोपियों ने धमकाया भी.
कोर्ट ने कहा कि ये सिस्टम के लिए आघात है, जो कानून के शासन के सिद्धांत पर आधारित है और कानून की नजर में सबको बराबर संरक्षण पर विश्वास रखता है. इस अर्जी में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, बार कॉउंसिल ऑफ जम्मू कश्मीर और DGP को नोटिस जारी कर डिटेल रिपोर्ट देने को कहा जाए.
पत्र याचिका में मांग की गई है कि जम्मू-कश्मीर बार एसोसिएशन को आदेश दिया जाए कि राजनीतिक फायदे के लिए कानून को हाथ में न ले और कानून में बाधा न पहुंचाए. जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार को इस बाबत विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा जाए. साथ ही परिवार के तरफ से पेश होने वाले वकील को पर्यापत सुरक्षा दी जाए और उन्हें भी डिटेल रिपोर्ट देने को कहा जाए.