हार्डलाइनर...अलगाववादी और हुर्रियत के बड़े चेहरों में शुमार रहे सैयद अली शाह गिलानी नहीं रहे. इसके साथ ही घाटी में भारत विरोधी मुहिम और अलगाववाद को हवा देने वाले एक अध्याय का अंत हो गया है. सैयद अली शाह गिलानी उन नेताओं में शामिल थे जिनकी अपील का कश्मीरी युवाओं पर प्रभाव था. कश्मीर जब आतंकवाद से लहुलूहान था तब गिलानी ने अपनी लोकप्रियता को खूब भुनाया. उन्होंने अपनी तकरीरों और प्रोपेगेंडा से कश्मीरी युवाओं को ऐसा बरगलाया कि उनकी एक अपील पर सैकड़ों कश्मीरी युवा सड़क पर निकल आते और घाटी बंद हो जाती थी.
पिछले 20 सालों में ऐसे दर्जनों मौके आए जब गिलानी की अपील पर श्रीनगर के लाल चौक पर सन्नाटा छा जाता था, दुकान के शटर गिरने लगते थे और देखते ही देखते श्रीनगर समेत घाटी बंद हो जाती थी. तब श्रीनगर के हैदरपुरा स्थित गिलानी के आवास से फतवे जारी होते और गिलानी की एक कॉल पर घाटी बंद हो जाती थी. अगर कहा जाए कि जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद सबसे बड़े पैरवीकार और सबसे बड़े पाकिस्तान परस्त नेता थे तो गलत नहीं होगा. 29 सितंबर 1929 को सोपोर में जन्मे सैयद अली शाह गिलानी का 92 साल की उम्र में 1 सितंबर 2021 को निधन हुआ.
विभाजनकारी महत्वाकांक्षा के शिकार रहे
गिलानी जम्मू-कश्मीर को लेकर हमेशा से विभाजनकारी महत्वाकांक्षा के शिकार रहे, यही वजह रही कि अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार की तरह उनकी राजनीति दिल्ली में न पनप सकी, हां पाकिस्तान ने अपने सियासी फायदे के लिए उन्हें जरूर इस्तेमाल किया. गिलानी जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग करते थे और कश्मीरियों के लिए आत्मनिर्णय की बात करते थे. कहने के लिए तो वे जम्मू-कश्मीर के मुद्दे का कथित तौर पर शांतिपूर्व समाधान चाहते थे लेकिन जम्मू-कश्मीर के आतंकी संगठनों की तारीफ करने में पीछे नहीं हटते थे.
गिलानी की मौत पर पाकिस्तान बोला- आग से ना खेले भारत
सैयद अली शाह गिलानी खुले रूप से कहते थे कि जमात-ए-इस्लामी को कश्मीरी आतंकवादियों को समर्थन करना चाहिए और दूसरे देशों से आए भाड़े के आतंकवादियों को 'मेहमान लड़ाका' कहना चाहिए. उन्होंने खुद भी जमात ए इस्लामी के लिए काम किया. जमात ए इस्लामी एक राजनीतिक-धार्मिक संगठन है. इसकी गतिविधियों को देखते हुए भारत सरकार ने इस संस्था को प्रतिबंधित कर दिया है.
युवा आतंकियों के Bobb, अलगाववादियों के लिए Hawk
घाटी में भारत सरकार के खिलाफ हाथ उठाने वाले और अलगाववादी विचारधारा पर चलने वाले युवा गिलानी को आदर से 'Bobb' कहते थे, जिसका अर्थ होता है ग्रैंडफादर. घाटी में आजादी की मांग उठाकर गिलानी ने ऐसी 'लोकप्रियता' हासिल की, जिसने कश्मीर को लंबे समय तक अस्थिरता और हिंसा कुचक्र में झोंक दिया.
युवा उन्हें Bobb कहते थे तो अपने समकक्षों और अलगाववादियों के सर्किल में उन्हें Hawk कहा जाता था. इनकी शिकायत रहती थी कि गिलानी की नीतियों और विचारों में पर्याप्त लचीलापन नहीं है. इसलिए जम्मू-कश्मीर की समस्या एक डेडलॉक में आकर फंस गई है. और इसका कोई समाधान नहीं निकल पा रहा है.
पहले खुद विधायक रहे बाद में चुनावों का बहिष्कार किया
सैयद अली शाह गिलानी जम्मू-कश्मीर के सोपोर से तीन बार विधायक रहे. उन्होंने 1972, 1977 और 1987 में विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की. लेकिन 1990 में जब कश्मीर में आतंकवाद सिर उठाने लगा तो उन्होंने चुनावों का बायकॉट करना शुरू कर दिया. इसको लेकर गिलानी और कश्मीर की मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों में खूब जुबानी जंग चलती. 2002 और 2008 के विधानसभा चुनाव और पंचायत चुनाव में जब लोगों ने वोट डाले तो गिलानी ने नाराजगी जाहिर की.
खुद का बेटा सरकारी नौकरी में, लेकिन युवाओं को पत्थरबाजी के लिए भड़काया
गिलानी के आलोचक कहते हैं कि उन्होंने जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजों को भड़काया, आतंकवाद को हवा दी, लेकिन अपने परिवार की बेहतरी के साथ समझौता न किया. बता दें कि गिलानी के दो बेटे हैं, नईम और नसीम. बड़े बेटे नईम डॉक्टर हैं जबकि छोटा बेटा नसीम जम्मू-कश्मीर सरकार में नौकरी करते हैं. टेरर फंडिंग के मामले में NIA दोनों भाइयों से पूछताछ कर चुकी है.
हुर्रियत के संस्थापक, लेकिन बाद में नाता तोड़ा
सैयद अली शाह गिलानी जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठनों के गुट हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के संस्थापक रहे हैं. 90 में स्थापित हुए इस गुट में 26 अलगाववादी संगठन शामिल हैं.
हालांकि भारत सरकार से वार्ता, पाकिस्तान को लेकर रवैया, चुनावों में भागादारी समेत कई मुद्दों पर इन संगठनों में तकरार होती रही. इसके बाद 2003 में गिलानी हुर्रियत से अलग हो गए और तहरीक ए हुर्रियत नाम के नए संगठन की स्थापना की. 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद इन संगठनों का कोई वजूद नहीं रहा.
जून 2020 में उन्होंने हुर्रियत की राजनीति से खुद को अलग कर लिया. उन्हें लगा था कि 5 अगस्त 2019 के बाद घाटी की जनता सड़कों पर मिलेगी और उन्हें एक बार फिर राजनीतिक अहमियत मिलेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. गिलानी ने कश्मीरी लोगों की अमन पसंदगी पर ठीकरा फोड़ते हुए हुर्रियत की राजनीति को अलविदा कह दिया.
19 साल से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे
92 साल के गिलानी साल 2002 से किडनी की समस्या से जूझ रहे थे. 5 अगस्त 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में उन्हें नजरबंद कर रखा गया. उनके निधन पर जम्मू-कश्मीर के तमाम नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है.