कश्मीर में ये मौसम तो गुलों के खिलने का है. हंसी वादियों में फूलों के मुस्कुराने का है, लेकिन मस्त बहारों का ये मौसम कश्मीर पर कहर बनकर आया है. पिछले 100 सालों में कश्मीर ने जो ना देखा, इस बार मार्च का महीना कश्मीर को मौसम के आइने में तबाही दिखा रहा है.
मूसलाधार बारिश ने घाटी में नदियों को उफान पर ला दिया है, बेकाबू झेलम अपनी हदें लांघ रही है, और कश्मीर को उजाड़ रही है. मौसम विभाग के मुताबिक 29 और 30 मार्च को कश्मीर और जम्मू दोनों रेंज में भारी बारिश दर्ज हुई है. कहीं कहीं तो ये आंकड़ा 8 से 10 सेंटीमीटर तक रिकॉर्ड किया गया.
सवाल ये है कि कश्मीर में बार-बार कुदरत क्यों अपना प्रकोप दिखा रही है. क्यों मौसम में इतना उतार चढ़ाव क्यों आ रहा है. क्यों इस साल मार्च में मौसम ने 100 साल का रिकॉर्ड धाराशाही कर दिया है. साल 2004 के मार्च में मौसम अपनी हदों में जरूर था, लेकिन 2005 से बारिश ने रिकॉर्ड तोड़ने शुरु किये तो बारिश का आंकड़ा 2007 में 279.6 मिलीमीटर तक पहुंच गया, जबकि नॉर्मल बारिश का आंकड़ा 161.4 मिलीमीटर होना चाहिए था.
उसके बाद मार्च के महीने में मौसम ने कई बार पलटी पारी, लेकिन 2015 का मार्च घाटी में मुसीबतों का मार्च बनकर आया. जी हां 2015 में 257.2 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है, जबकि ये आंकड़ा 127.3 मिलीमीटर होना चाहिए था.
इस साल गुजरते मार्च के आखिर में दो दिन की बारिश में झेलम उफनने लगी और कश्मीर में उसकी सहायक नदियां खतरे के निशान को पार करने लगीं. अब पूरा कश्मीर खौफ में है और अगले 72 घंटों में मौसम की चेतावनी है.
मौसम वैज्ञानिक भारी बारिश की भविष्यवाणी कर रहे हैं, लेकिन कोई ये जानने की कोशिश नहीं कर रहा कि स्वर्ग से सुंदर कश्मीर पर कुदरत की ऐसी मार बार-बार क्यों पड़ रही है. कहीं भारी बारिश, भूस्खलन तो कहीं हिमस्खलन का खतरा क्यों बढ़ता जा रहा है.
वैज्ञानियों के मुताबिक के जम्मू कश्मीर में ग्लोबल वार्मिंग के कारण धरती की आबोहवा में गंभीर उतार चढ़ाव आ रहे हैं. हिमालय की श्रृंखला और तिब्बत में सबसे ज्यादा तापमान बढ़ा है. पिछले 150 सालों में दुनियाभर में जितना तापमान बढ़ा है उससे ज्यादा इस क्षेत्र में बढ़ा है. वेस्टर्न डिस्टर्बेंस भी बाढ़ का एक अहम कारक साबित हो रहा है.
मौसम विभाग के अधिकारियों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर कश्मीर पर पड़ रहा है. इसके चलते वेस्टर्न डिस्टर्बेंस बार-बार होगा और इसकी तीव्रता भी बढेगी. दूसरी ओर इंसान हैं जो अपनी फितरत से बाज नहीं आ रहा, जिस तरक्की के रास्ते पर फर्राटे भर रहा है. कहीं ना कहीं वो भी मौसम का मिजाज बिगाड़ रहा है.
श्रीनगर में बाढ़ के कुछ और गंभीर कारणों में अनियोजित शहरीकरण और अतिक्रमण भी बराबर के जिम्मेदार हैं. झीलों के पानी सोखने की क्षमता लगातार कम हो रही है. साथ ही गाद की वजह से झीलों की गहराई का कम होना भी अहम कारण है.
वक्त बंद मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाता है. फिर पछताने के अलावा और कुछ नहीं बचता. लिहाजा, समय रहते अगर हम और आप नहीं चेते तो सैलाब ऐसे ही आते रहेंगे. गमगीन चेहरे ऐसे ही दिखते रहेंगे और घाटी में हालात और ज्यादा बद से बद्तर होते चले जाएंगे.