झारखंड की सियासत में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायकी पर अनिश्चितता बरकार है. ऐसे में बीजेपी के चक्रव्यूह को तोड़ने और सियासी संकट से बाहर निकलने के लिए राजनीतिक दांव आजमा सकते हैं. सोरेन ने आज सोमवार को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है, जहां महागठबंधन अपनी एकजुटता की ताकत दिखाएगा. ऐसे में सवाल उठता है कि सीएम हेमंत सोरेन सदन में क्या बहुमत हासिल कर पाएंगे?
झारखंड में सियासी संशय के बीच एक सप्ताह के बाद महागठबंधन के 32 विधायक रविवार देर शाम रायपुर से रांची लौट आए. रांची के सर्किट हाउस में ठहरे विधायकों के साथ सीएम सोरेन ने विशेष सत्र पर मंथन किया और सदन में एकजुटता प्रदर्शित करने का संकल्प लिया गया. माना जा रहा है कि सत्र के दौरान बहुमत साबित करने के साथ-साथ सरकार ओबीसी आरक्षण बढ़ाने, स्थानीयता नीति लागू करने और जातिगत जनगणना कराने जैसे विषयों पर चर्चा कराकर बड़ा सियासी दांव चल सकती है.
राज्यपाल ने नहीं लिया फैसला
लाभ के पद मामले में घिरे सीएम सोरेन की सदस्यता पर राज्यपाल रमेश बैस ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया जबकि उन्होंने दो दिन में स्टैंड लेने की बात कही थी. संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि झारखंड में भ्रम की स्थिति बनी हुई है. हमारे प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात की थी और उन्होंने हमें एक या दो दिन में स्थिति साफ करने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ. इसलिए हम विधानसभा में अपनी बात रखेंगे और बहुमत साबित करेंगे.
राज्यपाल रमेश बैस दिल्ली में हैं. हालांकि, उनके दिल्ली के कारण को निजी बताया गया है. माना जा रहा है कि उनके रांची लौटने के बाद ही सीएम हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता पर राज्यपाल का फैसला सार्वजनिक होगा. बताया जाता है कि राज्यपाल अब मंगलवार को रांची लौट सकते हैं और उनके फैसले पर सभी की निगाहें टिकी हैं. वही, दूसरी ओर हेमंत सोरेन ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर बहुमत साबित करने का दांव चल दिया है.
सत्र बुलाने पर विपक्ष को आपत्ति
बीजेपी ने झारखंड विशेष सत्र को लेकर रविवार को बैठक कर खास रणनीति बनाई है. बीजेपी विधायक दल की बैठक में यह तय किया गया कि बीजेपी विधानसभा सदन में महागठबंधन के विश्वास प्रस्ताव का विरोध करेगी. बैठक के बाद बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा कि विश्वास प्रस्ताव के लिए विधानसभा का सत्र बुलाना समझ से परे है. साथ ही पार्टी के मुख्य सचेतक विरंची नारायण ने कहा कि विश्वासमत के नाम पर सोरेन सरकार के लोग जनता को भ्रम में डाल रहे हैं.
झारखंड में बने सियासी अनिश्चितता के माहौल के बीच बीजेपी भले ही सियासी दांव चल रही है, लेकिन वह किसी तरह की जल्दबाजी के मूड में नहीं है. बीजेपी चाहती है कि हेमंत सोरेन के खिलाफ इतना माहौल बनाया जाए ताकि वो खुद ही कुर्सी छोड़ दें. इससे झारखंड सरकार गिराने के आरोप उस पर न लगें. बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास कह चुके हैं कि बीजेपी वेट एंड वॉच की स्थिति में है. चुनाव आयोग के सिफारिश पर राज्यपाल की आगे क्या कार्रवाई होती है उसी के अनुरूप बीजेपी रणनीति बनाएगी.
बीजेपी किसी भी तरह हेमंत सोरेन को अपदस्थ करने या फिर सरकार गिराकर अपनी सरकार बनाने की भूमिका से बच रही है. इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि किसी भी तरह की सक्रियता हेमंत सोरेन को जनता के सामने बलिदानी साबित करने का मौका नहीं देना चाहती. माना जा रहा है कि पार्टी इससे होने वाले सियासी नुकसान का आकलन कर चुकी है. इसलिए कोई भी नेता इस मामले पर कुछ बोलने से मना कर रहे हैं. बीजेपी सिर्फ यही कह रही है हेमंत सोरेन इस स्थिति के लिए खुद जिम्मेदार हैं.
बहुमत साबित कर पाएगा महागठबंधन?
झारखंड विधानसभा के आंकड़े इस तरह के हैं, जिसमें महागठबंधन के दलों में बिखराव होने पर ही बीजेपी के लिए रास्ता भी खुल सकता है. 2019 के चुनाव में राज्य की 81 सदस्यीय विधानसभा की जो तस्वीर उभरी थी, उसमें जेएमएम के 30, कांग्रेस 16 और आरजेडी एक विधायक के जीत के साथ स्पष्ट बहुमत लेकर आई थी. इसके अलावा सीपीआई (एमएल) को एक और एनसीपी को एक सीट मिली थी. वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को 30 सीटें ही मिली थी. इनमें भाजपा को 25, आजसू को दो और जेवीएम को तीन सीटें मिली थीं.
हालांकि, जेवीएम के तीन में से दो विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए हैं जबकि बाबूलाल मरांडी ही एकलौते बीजेपी में गए हैं. इससे एनडीए के पास 28 विधायक ही है. कांग्रेस के कुछ विधायक जरूर नाराज है और जेएमएम में भी कुछ नाराजगी है. ऐसे में देखना है कि हेमंत सोरेन सदन में कैसे बहुमत साबित कर पाते हैं.