झारखंड की लाडली विंध्यवासिनी, जिसने कबड्डी की विश्व विजेता बनकर झारखंड के नाम का परचम दुनियाभर में लहराया. वही विश्व विजयी खिलाड़ी आज दर-दर को ठोकर खाने को मजबूर है. कभी गोल्ड मेडलिस्ट विश्व विजेता ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इस भारत वर्ष में एक विश्व विजेता को अपना गोल्ड मेडल वापस करने का अपमान भी सहना पड़ेगा.
इस तरह के हालात में कैसे देश के होनहार खिलाड़ियों का मनोबल ऊंचा होगा. अपने साथ होते इस तरह के भेदभाव के बाद कैसे किसी के दिल में देश के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना जिंदा रहेगी. आज विश्व विजेता विंध्यवासिनी की घरेलू हालत इतनी दयनीय है कि कुछ कहा नहीं जा सकता है. घरवालों का खुद का अपना मकान तक नहीं है, विंध्यवासिनी खुद चार बहनों में से एक है. इन बहनों का पालन-पोषण किसी तरह से हो रहा है. बूढ़ी मां ने जिस उम्मीद से अपनी लाड़ली को महान खिलाड़ी बनने में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया वह आज सरकार से अपना दुखड़ा सुना तो रही हैं, लेकिन सरकार अपने कान बंद करके चुप्पी साधे हुए है.
मार्च 2012 में पटना में आयोजित मुकाबले में भारत ने ईरान को हराकर विश्व विजेता का खिताब अपने नाम किया. यह विश्व विजेता कोई और नहीं बल्कि विंध्यवासिनी ही थी. जब बोकारो की विंध्यवासिनी ने देश को कबड्डी का वर्ल्ड चैंपियन बनाया था, तो लोगों ने उनके घर पहुंचकर कई घोषणाएं की थीं, लेकिन वो घोषणाएं पूरी कभी नहीं हो पाईं.
यहां तक कि उस समय झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने भी 11 मार्च को बोकारो में मंच से घोषणा की थी कि विंध्यवासिनी को दस लाख रुपये और एक नौकरी दी जाएगी. लेकिन मुख्यमंत्री घोषणा करके चुप बैठ गए और जहां एक ओर झारखंड सरकार लाडली योजना के तहत झारखंड की बेटी को तवज्जो देना चाहती है वहीं झारखंड की एक बेटी जिसने दुनिया में उसका नाम ऊंचा किया, उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रही है. विंध्यवासिनी के पिता नहीं हैं और उनके घर पर कोई पुरुष भी नहीं हैं. घर की सारी जिम्मेदारी विंध्यवासिनी के कंधों पर ही है.
विंध्यवासिनी बताती हैं कि 12 खिलाड़ियों मे से अकेली वही हैं जिसे अब तक कुछ भी नहीं मिला है. वर्ल्ड कप जीतने के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र सरकार ने अपने यहां के खिलाड़ियों को एक-एक करोड़ रुपये के साथ ही एक सरकारी नौकरी भी दी है. लेकिन झारखंड में खिलाड़ियों की कोई पूछ नहीं है, सरकार को सिर्फ अपनी कुर्सी का ख्याल है. बोकारो के डीसी ने भी दस हजार रुपये देने की घोषणा की थी, लेकिन वह भी नहीं मिला.
विंध्यवासिनी चाहती हैं कि सरकार उन्हें चपरासी की ही नौकरी दे दे, ताकि वे अपने परिवार का जीवन यापन कर सकें. लेकिन अब विंध्यवासिनी झारखंड सरकार को अपना गोल्ड मेडल सौंपने जा रही हैं.