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झारखंड 12 साल में 11वीं बार सत्ता परिवर्तन की दहलीज पर

राजनीतिक अस्थिरता के लिए बदनाम झारखंड पिछले बारह वर्षों में आठ राजनीतिक सरकारें और दो राष्ट्रपति शासन के दौर देखने के बाद अब एक बार फिर ग्यारहवीं बार सत्ता परिवर्तन के कगार पर खड़ा है क्योंकि सत्ताधारी गठबंधन के प्रमुख सदस्य झामुमो ने अर्जुन मुंडा सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी है.

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अर्जुन मुंडा
अर्जुन मुंडा

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राजनीतिक अस्थिरता के लिए दुनिया में बदनाम झारखंड पिछले बारह वर्षों में आठ राजनीतिक सरकारें और दो राष्ट्रपति शासन के दौर देखने के बाद अब एक बार फिर ग्यारहवीं बार सत्ता परिवर्तन के कगार पर खड़ा है क्योंकि सत्ताधारी गठबंधन के प्रमुख सदस्य झामुमो ने अर्जुन मुंडा सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी है.

यदि वास्तव में झामुमो ने अपनी घोषणा के अनुरूप राज्यपाल से मिलकर अर्जुन मुंडा सरकार से अपनी समर्थन वापसी का पत्र उन्हें सौंप दिया तो राज्य में अर्जुन मुंडा की सरकार का गिरना तय हो जायेगा और इसके बाद यदि कोई नयी राजनीतिक सरकार का राज्य में गठन होता है अथवा यहां राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो यह यहां सवा बारह वर्षों में सत्ता का ग्यारहवां परिवर्तन होगा.

झारखंड में वर्ष दो हजार में राज्य के गठन के बाद से जहां मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने इस बार तीसरी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला था वहीं उनके गुरू और झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन ने भी यहां तीन बार ही सत्ता संभाली है लेकिन वह कभी भी लंबी पारी नहीं खेल सके हैं.

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उनके अलावा यहां मधु कोड़ा और बाबूलाल मरांडी ने भी एक एक बार मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया है. मधु कोड़ा ने जहां 2006 से 2008 तक कांग्रेस और राजद के समर्थन से झारखंड में सरकार बनायी थी और भ्रष्टाचार के भयानक आरोपों में पिछले तीन वषरें से बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं वहीं बाबूलाल मरांडी ने नये राज्य के गठन के बाद नवंबर, 2000 में राज्य की सत्ता संभाली थी.

मार्च, 2003 में समता पार्टी और वनांचल कांग्रेस ने उनसे समर्थन वापस लेकर उनकी सरकार गिरा दी थी लेकिन भाजपा नेता राजनाथ सिंह ने उस समय मरांडी को हटाकर मुंडा ने नेतृत्व में राज्य में नयी सरकार का गठन किया था जिससे मरांडी नाराज हो गये थे और बाद में उन्होंने 2007 में उबकर भाजपा का दामन छोड़ दिया और झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया.

वर्ष 2005 में हुए दूसरे विधानसभा के चुनावों में त्रिशंकु विधानसभा का गठन होने के बाद एक बार फिर नौ दिन के लिए शिबू सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद यहां अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में नयी सरकार का गठन हुआ था लेकिन उसे भी कांग्रेस ने मधु कोड़ा को आगे खड़ाकर सितंबर, 2006 में गिरा दिया और फिर कोड़ा के नेतृत्व में सरकार गठित करा दी. बाद में 23 माह के अपने कार्यकाल में कोड़ा ने जो गुल खिलाये वह सभी जानते हैं और आज भी वह और उनके कुछ सहयोगी भ्रष्टाचार के बड़े आरोपों में जेल की हवा खा रहे हैं.

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कोड़ा की सरकार के गिरने पर वर्ष 20़08 की 27 अगस्त को शिबू सोरेन ने राज्य में मुख्यमंत्री का पद दूसरी बार सत्ता संभाली. लेकिन विधानसभा का चुनाव न जीत सकने पर उन्हें 12 जनवरी, 2009 को इस्तीफा देना पड़ा और फिर 19 जनवरी, 2009 को झारखंड में पहली बार राष्ट्रपति शासन लागू करना पकड़ा वर्ष 2009 के अंत में हुए विधानसभा चुनावों में फिर से राज्य में त्रिशंकु विधानसभा का गठन हुआ. और 23 दिसंबर को विधानसभा के गठन की अधिसूचना जारी होने के बाद तीस दिसंबर 2009 को एक बार फिर शिबू सोरेन ने राज्य की सत्ता भाजपा के सहयोग से संभाली लेकिन अप्रैल 2010 में लोकसभा में केन्द्रीय बजट पर भाजपा के लाये कटौती प्रस्ताव के विरोध में यूपीए की सरकार का समर्थन कर शिबू ने जहमत ले ली और इसी कारण 24 मई, 2010 को भाजपा ने उनकी सरकार से समर्थन वापस लेकर उसे गिरा दिया था.

किसी के भी सरकार बनाने के लिए आगे न आने पर एक बार फिर यहां राष्ट्रपति शासन लागू हुआ और 11 सितंबर, 2010 को झामुमो के बिना शर्त समर्थन के ही यहां अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में वर्तमान सरकार का गठन हुआ था. आज इस सरकार से भी अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा कर के झामुमो ने यहां अब शायद ग्यारहवीं सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त कर दिया है.

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