ब्लैक फंगस (Black fungus) से पीड़ितों के इलाज से जुड़ी जनहित याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने लचर रवैए को लेकर रिम्स निदेशक को लताड़ लगाई. रिम्स निदेशक को ब्लैक फंगस से मरने वाली महिला के मामले में इंटरनल जांच का निर्देश भी दिया गया.
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से उपस्थित महाधिवक्ता राजीव रंजन ने चीफ जस्टिस डॉक्टर रविरंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ को बताया, कि ब्लैक फंगस से निपटने के लिए राज्य सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए हैं.
महाधिवक्ता राजीव ने कहा कि सरकार के स्तर से उन सभी दवाइयों को मरीजों को निःशुल्क उपलब्ध कराई जा रही है, जिसकी उन्हें जरूरत है. इससे निपटने के लिए एसओपी भी तैयार की गई है.
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महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि अब तक 160 मामले सामने आए हैं. 101 प्रूफ केस हैं और 59 सस्पेक्टेड. रिम्स में एक्सपर्ट डॉक्टरों की टीम ब्लैक फंगस से पीड़ितों के इलाज के लिए बनाई गई है. महाधिवक्ता का पक्ष सुनने के बाद चलती सुनवाई के दौरान रिम्स निदेशक को भी कोर्ट ने तलब किया.
हाई कोर्ट ने रिम्स निदेशक से पूछा कि ब्लैक फंगस की बीमारी से इलाजरत जिस महिला के मामले में कोर्ट ने निर्देश दिया था, उसका क्या हुआ? रिम्स निदेशक ने कोर्ट को बताया कि सर्जरी के बाद उस महिला की मृत्यु हो गई. जिस पर कोर्ट ने पूछा कि वह महिला कब भर्ती हुई थी?
हर जान कीमती होती हैः कोर्ट
रिम्स निदेशक डॉक्टर कामेश्वर प्रसाद ने बताया कि करीब 1 महीने पहले वह महिला रिम्स आई थी. रिम्स निदेशक का जवाब सुनकर कोर्ट ने कहा कि सर्जरी में इतनी देर क्यों हुई?
कोर्ट ने कहा कि कोरोना मामले में डॉक्टरों ने काफी अच्छा काम किया. लेकिन इस मामले में मरीज की अनदेखी की गई, हर जान कीमती होती है. हम इस मामले की जांच चाहते हैं. सच क्या है यह पता कीजिए. कोर्ट ने रिम्स निदेशक से इनटर्नल जांच रिपोर्ट एफिडेविट के माध्यम से मांगी. इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार को इलाज की सुविधाएं बढ़ाने का निर्देश दिया.
अस्पताल पैसा बनाने की मशीन बन चुकेः कोर्ट
जस्टिस डॉक्टर रविरंजन ने सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि डॉक्टर मरीजों को सब्ज़ियों की तरह देख रहे हैं. मरीज के परिजन अस्पताल में अपने मरीज के स्वास्थ्य ठीक होने का इंतजार करते हैं लेकिन उन्हें प्लास्टिक बैग में लपेटकर उनके परिजन का शव दे दिया जाता है. अस्पताल पैसा बनाने की मशीन बन चुके हैं.
अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा परिजनों को यह नहीं बताया जाता कि उनके मरीज को क्या दवा दी जा रही है, कैसा इलाज चल रहा है, यह नहीं होना चाहिए. मरीज अंततः परिजनों की संपत्ति है. मौखिक रूप से ही सही यह जानकारी मरीज के परिजनों को दी जानी चाहिए. डॉक्टर वॉरियर्स हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि कोरोना दुश्मन है मरीज नहीं.