
डॉक्टर्स डे पर सभी ने देश के फ्रट लाइन वॉरियर्स को बधाई दी, उनके काम का सम्मान किया. सभी को इस बात का एहसास है कि कोरोना काल में डॉक्टरों ने एक सक्रिय भू्मिका निभाई है. अब लोगों ने जरूर सिर्फ इसे बधाई संदेश तक सीमित रखा, लेकिन IMA की तरफ से डॉक्टर्स दे को श्रद्धांजलि दिवस के रूप में उन डॉक्टर्स को याद करके मनाया जिन्होंने अपनी जान की बाजी मरीजों की सेवा के लिए लगा दी. झारखंड के भी कई ऐसे जाबाज डॉक्टर हैं जिन्होंने कोरोना काल में अपने काम से समाज की बड़े स्तर पर मदद की है.
कोरोना काल में डॉक्टरों के बुलंद हौसले की कहानी
सदर अस्पताल के कोविड इंचार्ज रहे डॉक्टर एस मोंडल ने कोरोना काल में काफी मुश्किल समय देखा है. वे बताते हैं कि दूसरी लहर के दौरान लगातार फोन आते थे, ऑक्सीजन सिलेंडर और बेड के लिए गुहार लगाई जाती थी. ऐसे में बढ़ती जरूरतों को पूरा करना एक बड़ी चुनौती बन गई थी.
वे मानते हैं कि किसी भी मरीज की मौत उनके लिए काफी दुखद होती थी. ये एहसास हो जाता था कि मेडिकल साइंस की भी सीमाएं हैं. लेकिन वे बताते हैं कि अब स्थिति बिल्कुल बदल गई है. अब उनके अस्पताल में कोरोना का एक भी मरीज नहीं है. ऐसे में वे मानते हैं कि उन्होंने एक बड़ी जंग जीत ली है और उन्हें इस बात की बेहद खुशी है.
जब डॉक्टर बन गए वन मैन आर्मी
इसी सदर अस्पताल के डॉक्टर अजित का काम भी सराहनीय रहा है. उन्होंने अकेले ही 100 बेड का फ्लोर मैनेज किया था जब नर्स हड़ताल पर चली गई थीं. उनकी नजरों में समय जरूर चुनौतीपूर्ण रहा लेकिन कई ऐसी यादें उनके साथ जुड़ गईं जो वे कभी नहीं भूलने जा रहे हैं. ऐसे ही एक अनुभव के बारे में अजित बताते हैं कि उन्होंने एक बुजुर्ग महिला का भी इलाज किया था.
उन्हें कोरोना था, लेकिन परिवार ने अस्पताल के बाहर ही छोड़ दिया. अब अजित ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन करते हुए उस महिला का इलाज भी किया और उन्हें ठीक भी कर दिया. अब क्योंकि परिवार छोड़कर चला गया था, ऐसे में बाद में महिला को एक वृद्ध आश्रम भेज दिया.
लेकिन अजित ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी कोशिश जारी रखी. वे बुजुर्ग महिला के परिवार की तलाश लगातार करते रहे. अब उनकी वो मेहनत रंग भी लाई और आखिरकार वो बुजुर्ग महिला अपने परिवार के साथ चली गई.
ऐसे ही एक और अनुभव के बार में डॉक्टर अजित ने विस्तार से बताया है. वे बताते हैं कि एक रेल कर्मचारी भी गंभीर स्थिति में अस्पताल में एडमिट हुए थे. वे लगातार कह रहे थे कि उनके दो छोटे बच्चे हैं और उन्हें उनकी काफी चिंता है. अब अजित ने उस रेल कर्मचारी को ठीक करने की ठान ली और 57 दिन बाद फिर फिट बना दिया. उस पल को याद कर डॉक्टर अजित आज भी भावुक हो जाते हैं.
फर्ज निभाया, लेकिन जिंदगी नहीं बचा पाए
डॉक्टर एस पाल ने भी कोरोना काल में कई गरीब कोविड मरीजों की सेवा की थी. वे आज इस दुनिया में नहीं हैं. ड्यूटी करते-करते वे खुद कोविड पॉजिटिव हुए और फिर ये दुनिया अलविदा कह चले गए.
एस पाल एक चैरिटेबल अस्पताल में काम करते थे. वे गरीबों की मदद करने में हमेशा विश्वास रखते थे. अब डॉक्टर की पत्नी उनके जाने से काफी दुखी हैं, लेकिन उन्हें इस बात पर गर्व है कि उनके पति ने कोरोना काल में बेहतरीन काम किया है. वे अपना फर्ज निभाते हुए चले गए हैं.
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झारखंड में कोरोना वारियर्स को 25 लाख रुपये
अब ऐसी अनेक कहानियां और भी हैं, लेकिन इन डॉक्टरों को अब तक न्याय नहीं मिल पाया है. जिन डॉक्टरों ने अपनी जान गंवा दी है, उनके परिवार को मुआवजा मिलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
IMA झारखंड के वरिष्ठ मेंबर डॉ बिमलेश बताते हैं कि 3 करोड़ 30 लाख की जनसंख्या पर महज 1700 सरकारी डॉक्टर्स हैं. एक महीने का एक्स्ट्रा सैलरी भी अभी तक नही दिया गया है. डॉक्टर्स की तनख्वाह भी कम है. इस मुद्दे पर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि 1 महीने की एक्स्ट्रा सैलरी का प्रस्ताव कैबिनेट में पास हो चुका है. केंद्र को मुआवजे के लिए भी लिखा जा चुका है. सरकार अपनी तरफ से भी कोरोना वारियर्स को 25 लाख रुपये देगी.