प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां एक ओर बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा बुलंद कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ बीजेपी शासित प्रदेश झारखण्ड में इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है. खासतौर पर छह वर्ष तक की आयु की बेटियों की संख्या में आ रही गिरावट चिंताजनक है. जनगणना सांख्यिकी के आंकड़ों की मानें तो 1991 की जनगणना में जहां इनकी संख्या 1000 लड़कों पर 945 थी, वहीं 2001 में यह संख्या 927, जबकि 2011 में 914 हो गई.
बेटियों की संख्या में आ रही गिरावट धनबाद, बोकारो और रामगढ़ जिलों में अधिक है. छह वर्ष तक आयु वर्ग की बेटियों को छोड़कर अन्य महिलाओं के लिंगानुपात की बात करें तो झारखंड में 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 952 है जबकि 2001 में यह संख्या 965 थी.
आदिवासी बाहुल्य इलाकों में स्थिति बेहतर
जहां कुछ जिलों में बेटियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है वहीं प्रदेश के कुछ जिले ऐसे हैं जहां बेटियों की संख्या लड़कों के बराबर या उससे अधिक है. पश्चिमी सिंहभूम में 1000 बेटों की तुलना में बेटियों की संख्या 1004 है, जबकि सिमडेगा में दोनों का अनुपात 1000:1000 है. वहीं खूंटी में 1000 लड़कों की तुलना में 994 तथा गुमला में 993 बेटियां हैं. आपको बता दें कि ये सभी जिले आदिवासी बाहुल्य हैं.
क्या है कारण
वैसे तो घटते लिंगानुपात की मुख्य वजह शिक्षा की कमी को माना जाता है. लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि घटता लिंगानुपात वैसे जिलों में दर्ज किया गया है जहां साक्षरता का प्रतिशत अधिक है. इस विषमता का दूसरा मुख्य कारण कन्या भ्रूण-हत्या के मामलों में बरती जा रही शिथिलता भी है. आपको बता दें कि झारखण्ड में पीसीपीएनडीटी कानून के तहत कन्या भ्रूण हत्या के 2021 मामले दर्ज कराए गए, जिनमें से 206 पर ही कार्रवाई हुई.