scorecardresearch
 

नोटबंदी का आदिवासी बहुल इलाकों में व्यापक असर, पुराने नोटों से नक्सली भी परेशान

नोटबंदी के ऐलान ने एक ओर जहां शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों को परेशानी में डाला है. वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ा है. झारखंड के अधिकांश आदिवासी बहुल इलाकों में नोटबंदी से आम जनजीवन पटरी से उतर गया है. हालांकि परेशानी के बावजूद ज्यादातर आदिवासी इस फैसले से खुश नजर आ रहे हैं.

Advertisement
X
नोटबंदी का असर
नोटबंदी का असर

Advertisement

नोटबंदी के ऐलान ने एक ओर जहां शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों को परेशानी में डाला है. वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ा है. झारखंड के अधिकांश आदिवासी बहुल इलाकों में नोटबंदी से आम जनजीवन पटरी से उतर गया है. हालांकि परेशानी के बावजूद ज्यादातर आदिवासी इस फैसले से खुश नजर आ रहे हैं. इस बीच नक्सली भी इन भोलेभाले आदिवासियों पर दबाव बनाकर उनके जनधन अकाउंट में पैसे डलवाने में लगे हैं.

ग्रामीण परेशानी के बावजूद खुश
झारखंड का घोर नक्सलग्रस्त खूंटी जिले के कर्रा इलाके में रहने वाले जोजो मुंडा का परिवार इस फैसले से खुश है. यह परिवार इन दिनों खेतों में मड़ुवा की फसल तैयार करने में जुटा है. जोजो मुंडा के मुताबिक नोटबंदी के बाद काम की कमी है क्योंकि बाजार में खुले पैसे का आभाव है, इसके बावजूद वे सरकार के नोटबंदी के फैसले के साथ खड़े हैं. इनके मुताबिक अमीर को नुकसान हो रहा है, लेकिन गरीब इस फैसले से खुश है. जोजो मुंडा का ये भी कहना है कि सरकार ने जो 2000 रुपये के नोट जारी किये हैं, उससे गरीबों को परेशानी होगी.

Advertisement

वैसे यहां के आदिवासियों को भले ही नोटबंदी के व्यापक प्रभाव का आकलन ना हो, लेकिन नोटबंदी से कई लोगों को खासी परेशानी का भी सामना करना पड़ रहा है. दिहाड़ी मजदूरी बंद हो गयी है. कुछ लोगों के बकाया पैसे भी पुराने नोटों के चलन से बाहर होने के कारण नहीं मिल पा रहे हैं.

नक्सली भी शामिल है पैसे बदलवाने में
हिंसा और बात-बात पर मौत बांटने वाले नक्सलियों की उपस्थिति का गवाह रहे इन इलाकों में आज कल अजीब किस्म का सन्नाटा पसरा है. नोटबंदी का ऐलान यहां के आदिवासी बहुल इलाकों में रहनेवालों के लिए दोहरी मुसीबत का सबब बन रही है. जहां एक ओर ग्रामीण अपने 500 और 1000 के नोटों को बदलवाने की जद्दोजहद में लगे हैं. वहीं दूसरी तरफ नक्सली भी उनके पास जमा लेवी की राशि को इन ग्रामीणों के खातों में खपाकर सफेद बनाने में जुटे हैं. दरअसल नोटबंदी के ऐलान ने वर्षों से जड़ जमाए नक्सलियों की आर्थिक रीढ़ को तोड़ने का काम किया है. ग्रामीण भी नक्सलियों के आतंक की वजह से पूरी बात बताने से हिचक रहे हैं.

जनधन खातों की भारी कमी
वैसे इन इलाकों में मौजूद बैंक के अधिकारियों का मानना है कि यहां जागरूकता की कमी की वजह से जनधन खातों की भारी कमी है, लेकिन जो भी खाते हैं, उसमे ट्रांजेक्शन हो रहा है. संवेदनशील इलाका होने की वजह से जांच एजेंसियां इन सभी ट्रांजेक्शन पर नजर रख रही हैं. बहरहाल नोटबंदी के ऐलान के बाद नक्सली अपने खौफ का इस्तेमाल ग्रामीणों के बीच लेवी के पैसों को खपाने के लिए कर रहे हैं. इलाके में मौजूद सुरक्षा और खुफिया तंत्र बेहद सतर्क है.

Advertisement
Advertisement