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झारखंड संकट पर राज्यपाल को लेकर क्या बोले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कुरैशी और रावत? जानें नियम...

झारखंड में सत्ता के संकट के बीच राज्यपाल की चुप्पी सत्तारूढ़ झामुमो समेत गठबंधन सरकार को परेशान कर रही है. यही वजह है कि गुरुवार को यूपीए के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से मुलाकात की और अपनी राय स्पष्ट करने का आग्रह किया था. बताते चलें कि हाल ही में महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट चर्चा में है. यही वजह है कि राजनीतिक दल सोच-समझकर कदम उठा रहे हैं.

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पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी और ओपी रावत.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी और ओपी रावत.

झारखंड के एक हफ्ते से राजनीतिक संकट की खबरें हैं. जबकि राज्यपाल रमेश बैस चुप्पी साधे हैं. उनकी ये चुप्पी झारखंड की राजनीति में उथल-पुथल मचाए हुए है. खरीद-फरोख्त के डर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 33 विधायकों (19 झामुमो विधायक, कांग्रेस के 13 और राजद के 1) के साथ रायपुर में डेरा जमाए हैं. हेमंत समेत सभी विधायक रांची से एयरक्राफ्ट के जरिए रायपुर पहुंचे थे. वहीं, आजतक ने इस मसले में कानून क्या कहता है, ये जानने के लिए दो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त से बातचीत की है.

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पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने राज्यपाल रमेश बैस को लेकर सवाल किया है. पूर्व CEC एसवाई कुरैशी ने कहा- 'ECI को अपनी सिफारिश भेजे एक सप्ताह हो गया है. ये सिफारिश राज्यपाल रमेश बैस की निजी संपत्ति नहीं है. हालांकि, इसकी कोई समय सीमा नहीं है. राज्यपाल से उचित तत्परता के साथ इस पर कार्रवाई करने की अपेक्षा की जा सकती है.'

राज्यपाल की देरी अस्थिरता पैदा कर रही

कुरैशी ने आगे कहा- 'ECI की सिफारिश अंतिम है. अल्पविराम भी नहीं है. इसे फुल स्टॉप में नहीं बदला जा सकता. अधिसूचना जारी करने में राज्यपाल की देरी झारखंड में अस्थिरता पैदा कर रही है.

हेमंत अयोग्य हुए तो भी सरकार नहीं गिरेगी...

वहीं, पूर्व CEC ओपी रावत ने कहा- 'कानूनी तौर पर कोई समय सीमा नहीं है, जिसके तहत राज्यपाल बाध्य हों. लेकिन आमतौर पर राज्यपाल सिफारिश मिलने के 2-3 दिनों के भीतर निर्णय/अधिसूचना जारी करते हैं.' चुनाव आयोग की भूमिका के बारे में रावत ने कहा- 'चुनाव आयोग की कोई भूमिका नहीं है (राज्यपाल को अपनी राय देने के बाद). अगर मुख्यमंत्री को अयोग्य घोषित किया जाता है तो सरकार नहीं गिरेगी.

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ये है नियम है...

संविधान के अनुच्छेद 192 (2) के अनुसार: 'इस तरह के किसी भी मसले (विधायकों की अयोग्यता) पर कोई निर्णय देने से पहले राज्यपाल चुनाव आयोग की राय प्राप्त करेंगे और इस तरह की राय के अनुसार कार्य करेंगे.'

गठबंधन सरकार नहीं लेना चाहती है कोई रिस्क

वहीं, राज्यपाल की चुप्पी सत्तारूढ़ झामुमो समेत गठबंधन सरकार को परेशान कर रही है. यही वजह है कि गुरुवार को यूपीए के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से मुलाकात की और अपनी राय स्पष्ट करने का आग्रह किया था. बताते चलें कि हाल ही में महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट चर्चा में है. यही वजह है कि झारखंड में राजनीतिक दल सोच-समझकर कदम उठा रहे हैं. राज्यपाल की राय सामने आने तक गठबंधन सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. गठबंधन के 33 विधायकों को कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ शिफ्ट किया गया है. सीएम हेमंत सोरेन ने इसे 'रणनीति का हिस्सा कहा है. 

विधायकों को खुला छोड़ देते तो...

वहीं, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल उस रिसॉर्ट में पहुंचे, जहां झारखंड के विधायक ठहरे हुए हैं. पत्रकारों से बातचीत में सीएम बघेल ने कहा- 'राजभवन ने अभी तक चुनाव आयोग के पत्र को नहीं खोला है, जिसका अर्थ है कि कुछ योजना बनाई जा रही है.' उन्होंने कहा- अगर झारखंड में विधायकों को खुला छोड़ दिया जाता तो उन्हें (भाजपा को) खरीदने और 20 करोड़ रुपये देने का मौका मिलता.

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भाजपा की शिकायत के साथ शुरू हुई कहानी

भाजपा ने खनन पट्टा प्राप्त करने के लिए सोरेन को विधायक के रूप में अयोग्य घोषित करने की मांग की थी. राज्यपाल रमेश बैस ने सोरेन के खिलाफ पूर्व सीएम रघुबर दास की शिकायत के आधार पर 28 मार्च को चुनाव आयोग को एक डोजियर भेजा था. शिकायतकर्ता के मिलने के बाद चुनाव आयोग ने मामले की सुनवाई शुरू की थी. 12 अगस्त को सोरेन की कानूनी टीम ने चुनाव आयोग के समक्ष अपनी दलीलें पूरी की, जिसके बाद भाजपा (मामले में याचिकाकर्ता) ने जवाब दिया. 18 अगस्त को दोनों पक्षों ने चुनाव आयोग को अपनी लिखित दलीलें सौंपीं.

हेमंत की पत्नी कल्पना को दी सकती है जिम्मेदारी

सोरेन का बचाव में ये कहना था कि उन्होंने खदान के पट्टे का सरेंडर कर दिया था. झारखंड के मामले में बिहार जैसी समानता देखने को मिल सकती है. 1997 में जब लालू यादव की कुर्सी गई तो उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली थी. माना जा रहा है कि झामुमो सोरेन के विधायक पद से अयोग्य होने की स्थिति में पत्नी कल्पना को सीएम पद की जिम्मेदारी दे सकता है.


 

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