देवघर चारा घोटाला केस में सीबीआई कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव को साढ़े तीन साल की सजा सुनाई है. अदालत ने उन पर पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है.
इससे पहले 23 दिसंबर को कोर्ट ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को दोषी ठहराया था. आइए जानते हैं क्या है चारा घोटाला? कैसा चली अदालती कार्यवाही और घिरते गए लालू यादव...
बिहार का सबसे बड़ा घोटाला था यह चारा घोटाला
चारा घोटाला बिहार का सबसे बड़ा घोटाला था, जिसमें पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे, दवाइयों और पशुपालन से जुड़े उपकरणों को लेकर घोटाले को अंजाम दिया गया था. इसमें पशुपालन विभाग के सरकारी खजाने से 950 करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े का मामला सामने आया था.
दरअसल, केंद्र सरकार गरीब आदिवासियों को अपनी योजना के तहत गाय, भैंस, मुर्गी और बकरी पालन के लिए आर्थिक मदद मुहैया करा रही थी. इस दौरान मवेशी के चारे के लिए भी पैसे आते थे, लेकिन गरीबों के गुजर-बसर और पशुपालन में मदद के लिए केंद्र सरकार की तरफ से आए पैसे का गबन कर लिया गया था.
चारा घोटाले का खुलासा साल 1996 में हुआ. उस वक्त लालू यादव राज्य के सीएम थे. चारा घोटाला मामले में कुल 56 आरोपियों के नाम शामिल हैं, जिनमें राजनेता, अफसर और चारा सप्लायर तक जुड़े हुए हैं.
चारा घोटाले में लालू के खिलाफ हैं छह मामले
लालू यादव पर चारा घोटाले में छह अलग-अलग मामले हैं और इनमें से एक में उन्हें पांच साल की सजा पहले ही सुनाई जा चुकी है. इस घोटाले के कारण लालू यादव को मुख्यमंत्री के पद से त्याग पत्र देना पड़ा था, लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी लालू ने अपनी जगह अपनी बीबी राबड़ी देवी को कुर्सी सौंप दी थी.
लालू के चुनाव लड़ने पर भी रोक
अदालत ने तीन अक्टूबर 2013 को चारा घोटाले से ही जुड़े एक मामले में 37 करोड़ रुपये के गबन को लेकर लालू यादव को दोषी पाते हुए सजा सुनाई थी और उन पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था. चारा घोटाला मामले में सजा मिलने की वजह से लालू प्रसाद यादव और जेडीयू नेता जगदीश शर्मा के चुनाव लड़ने पर रोक लगी हुई है. साल 2013 में सजा मिलने के बाद लालू यादव को रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद कर दिया गया था. हालांकि दिसंबर 2013 में उन्हें कोर्ट से जमानत मिल गई थी, जिसके बाद उन्हें रांची की बिरसा मुंडा जेल से छोड़ दिया गया था.
ऐसा रहा घटनाक्रम
साल 1996 में उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा और ऐसे दस्तावेज जब्त किए, जिनसे पता चला कि चारा आपूर्ति के नाम पर अस्तित्वहीन कंपनियों द्वारा धन की हेराफेरी की गई, जिसके बाद चारा घोटाला सामने आया. इसके बाद 11 मार्च 1996 को पटना हाईकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को इस घोटाले की जांच का आदेश दिया था, जिस पर हाईकोर्ट ने मुहर लगा दी थी.
27 मार्च 1996 को सीबीआई ने चाईंबासा खजाना मामले में प्राथमिकी दर्ज की और 23 जून 1997 को सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया. इसमें लालू प्रसाद यादव को आरोपी बनाया गया. 30 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद ने सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण किया, जिसके बाद अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.
इसमें पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा और पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रदेव प्रसाद वर्मा भी थे. जगन्नाथ मिश्रा को अग्रिम जमानत मिल गई थी, लेकिन लालू की अग्रिम जमानत याचिका खारिज हो गई थी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई और 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था.
पांच अप्रैल 2000 को विशेष सीबीआई अदालत ने मामले में आरोप तय किया और फरवरी 2002 को रांची की विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई शुरू हुई थी. 13 अगस्त 2013 को हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई कर रही निचली अदालत के न्यायाधीश के स्थानांतरण की लालू प्रसाद की मांग खारिज कर दी थी. 30 सितंबर 2013 को बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्र और 45 अन्य को सीबीआई न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने दोषी ठहराया था.
तीन अक्टूबर 2013 को सीबीआई अदालत ने लालू यादव को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी. साथ ही उन पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था. इसके बाद लालू यादव को रांची की बिरसा मुंडा जेल भेज दिया गया था. हालांकि उन्हें दिसंबर में जमानत मिल गई थी.
आठ मई 2017 को चारा घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की दलील मान ली. कोर्ट ने कहा कि हर केस में अलग-अलग ट्रायल होगा और लालू प्रसाद के खिलाफ आपराधिक साजिश का केस चलेगा. मालूम हो कि इस घोटाले से जुड़े 7 आरोपियों की मौत हो चुकी है, जबकि 2 सरकारी गवाह बन चुके हैं और एक ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और एक आरोपी को कोर्ट से बरी किया जा चुका है.