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क्या है सम्मेद शिखर का मामला, जिसको लेकर जैन समुदाय प्रोटेस्ट कर रहा है?

झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित तीर्थस्थल सम्मेद शिखरजी को लेकर बवाल बढ़ता जा रहा है. सम्मेद शिखरजी जैन समाज का पवित्र तीर्थस्थल है. हाल ही में झारखंड सरकार ने इसे पर्यटन स्थल घोषित किया था, जिसका विरोध हो रहा है. आखिर क्या है ये पूरा विवाद? जैन समाज को क्या है डर? जानें सबकुछ...

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सम्मेद शिखरजी. (फाइल फोटो)
सम्मेद शिखरजी. (फाइल फोटो)

देश की आबादी में 0.4 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाला जैन समाज आजकल नाराज है. इसकी वजह है झारखंड सरकार का वो फैसला जिसमें तीर्थस्थल सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल बनाने की बात है. जैन समाज इस बात से नाराज है. और हफ्तों से सड़कों पर है. अनशन कर रहे हैं. 

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सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल बनाने को लेकर सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि दिल्ली और जयपुर तक प्रदर्शन हो रहा है. जयपुर में अनशन पर बैठे जैन संत का निधन भी हो गया. 72 साल के सुज्ञेयसागर महाराज अनशन पर थे. पुलिस ने बताया कि महाराज ने 25 दिसंबर से कुछ खाया नहीं था और मंगलवार को उनका निधन हो गया.

ये मामला अब इतना बढ़ गया है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग भी बीच में आ गया है. आयोग इस मामले पर 17 जनवरी को सुनवाई करेगा. इस सुनवाई में जैन समाज के प्रतिनिधियों के अलावा केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के सचिव और झारखंड सरकार के मुख्य सचिव को भी समन जारी किया गया है.

ये पूरा विवाद क्या है? ये कैसे शुरू हुआ? और सम्मेद शिखरजी जैनों के लिए इतना अहम क्यों है? जानते हैं...

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सम्मेद शिखरजी इतना अहम क्यों?

- जैन धर्म की तीर्थस्थल सम्मेद शिखरजी झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित है. इस पहाड़ी का नाम जैनों के 23वें तीर्थांकर पारसनाथ के नाम पर पड़ा है.

- ये झारखंड की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है. माना जाता है कि जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थांकरों ने यहीं निर्वाण लिया था. इसलिए ये जैनों के सबसे पवित्र स्थल में से है.

- इस पहाड़ी पर टोक बने हुए हैं, जहां तीर्थांकरों के चरण मौजूद हैं. माना जाता है कि यहां कुछ मंदिर दो हजार साल से भी ज्यादा पुराने हैं.

- जैन धर्म को मानने वाले लोग हर साल सम्मेद शिखरजी की यात्रा करते हैं. लगभग 27 किलोमीटर लंबी ये यात्रा पैदल ही पूरी करनी होती है. मान्यता है कि जीवन में कम से कम एक बार यहां की यात्रा करनी चाहिए.

विवाद क्यों?

- अगस्त 2019 में केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने सम्मेद शिखर और पारसनाथ पहाड़ी को इको सेंसेटिव जोन घोषित किया था.

- इसके बाद झारखंड सरकार ने इसे पर्यटन स्थल घोषित किया. अब इस तीर्थस्थल को पर्यटन के हिसाब से तब्दील किया जाना है.

- इसी बात पर जैन समाज को आपत्ति है. उनका कहना है कि ये पवित्र धर्मस्थल है और पर्यटकों के आने से ये पवित्र नहीं रहेगा.

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- जैन समाज को डर है कि इसे पर्यटन स्थल बनाने से यहां असामाजिक तत्व भी आएंगे और यहां शराब और मांस का सेवन भी किया जा सकता है.

- जैन समाज की मांग है कि इस जगह को इको टूरिज्म घोषित नहीं करना चाहिए. बल्कि इसे पवित्र स्थल घोषित किया जाए ताकि इसकी पवित्रता बनी रहे.

सरकार का क्या है कहना?

- जैन समाज के लोग पूरी पारसनाथ पहाड़ी को पवित्र स्थल घोषित करने की मांग कर रहे हैं. कुछ दिन पहले विश्व हिंदू परिषद ने भी मीटिंग की थी और सरकार से यही मांग की थी.

- हालांकि, झारखंड सरकार ने अभी इस पर फैसला नहीं लिया है. वहीं, बीते 23 दिसंबर को केंद्र सरकार ने झारखंड सरकार को पत्र लिखकर नोटिफिकेशन पर दोबारा विचार करने को कहा था.

- केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के विशेष सचिव चंद्र प्रकाश गोयल ने इस पत्र में लिखा था, राज्य सरकार के शुझाव पर पारसनाथ अभ्यारण्य को इको सेंसेटिव जोन घोषित करने का नोटिफिकेशन जारी किया जा चुका है. ऐसे में झारखंड सरकार इस नोटिफिकेशन पर दोबारा विचार करेग और आगे की कार्रवाई के लिए जरूरी बदलावों की सिफारिश करे.

गुजरात में भी हो रहा विरोध

- जिस तरह से सम्मेद शिखरजी को लेकर विवाद हो रहा है, वैसा ही विवाद गुजरात के पालिताना जैन मंदिर को लेकर भी हो रहा है.

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- हाल ही में मुंबई में जैन समाज से जुड़े 50 हजार से ज्यादा लोगों ने प्रदर्शन किया था और पालिताना के आसपास अवैध खनन और अवैध शराब की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की थी.

- जैन समाज ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का रुख भी किया. इस पर अदालतों ने कहा है कि समाज की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई जानी चाहिए. 

 

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