
कोरोना के इस संकटपूर्ण दौर में कई जगहों पर इंसानियत को भी मरते देखा गया है. झारखंड के हजारीबाग जिले के टाटीझरिया प्रखंड के खंडवा गांव की बेटियों ने गांव वालों के बहिष्कार के बावजूद अपना कर्तव्य पूरा करते हुए दिखा दिया कि ये बेटियां किसी से कम नहीं हैं.
करीब 4 साल पहले जाति विशेष के लोगों ने किसी बात को लेकर विवाद के कारण कुंती देवी को अपनी जाति से बहिष्कृत कर दिया था. कुंती देवी जो 55 साल की उम्र में पंचतत्त्व में विलीन हो गईं, वो पिछले 4 साल से ही लकवाग्रस्त थीं और इस कारण वह चल-फिर नहीं सकती थीं और उनका इलाज चल रहा था.
कुंती देवी के पति मजदूरी करके घर चलाते हैं और उनकी 8 बेटियां हैं, जिनमें 7 की शादी हो चुकी है और अभी एक कुंवारी है.
विवाद के कारण कुंती देवी की मृत्यु के बाद भी भुइयां समाज के लोग दुख बांटने इनके घर तक नहीं आए और बहिष्कार का पालन किया. ऐसे में परिस्थितियों को देखते हुए 8 बहनों ने यह फैसला लिया कि वह खुद ही हिंदू धर्म के अनुसार सभी कर्मकांड करेंगी और अपनी मां को कंधा देंगी.
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उसके बाद हिंदू धर्म के नियम के अनुसार अपनी मां का अंतिम संस्कार किया. जैसे ही अंतिम संस्कार के लिए शव घर से निकला और बेटियों को गांव के लोगों ने कंधा देते हुए देखा तो पूरे गांव में सन्नाटा पसर गया और लोगों ने कुंती देवी के साथ-साथ अपने अंदर के इंसान को भी मरते हुए देखा.
लेकिन इस घटना के बाद यह साफ नजर आया कि बेटी और बेटों में फर्क करने वाले लोगों के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है और ये बेटियां न किसी से कम हैं और न की किसी काम में विफल हैं. (इनपुट- सुमन सिंह)