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झारखंडः भाषाई विवाद के बाद बैकफुट पर हेमंत सरकार, प्रतियोगी परीक्षा में भोजपुरी और मगही को सूची से हटाया

प्रतियोगिता परीक्षा में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा की सूची पर उठे विवाद के बाद हेमंत सरकार ने कार्मिक विभाग की ओर से जारी जिलावार भाषाओं की मान्यता में संशोधन करते हुए भोजपुरी और मगही को हटा दिया है. वहीं भाजपा ने कहा कि जो लोग भोजपुरी बोलते हैं और बीते कई दशकों से बिहार से आकर झारखंड में बस गए हैं, उनके बच्चों को यहां नौकरी का अधिकार नहीं है क्या?

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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (फाइल फोटो)
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सभी जिलों में उर्दू भाषा की मान्यता बहाल की
  • भाजपा ने किया राज्य सरकार के फैसले का विरोध

झारखंड में भाषाई विवाद को लेकर मचे बवाल के बाद अब राज्य सरकार ने इस मसले पर यू-टर्न ले लिया है. प्रदेश सरकार ने भोजपुरी और मगही को धनबाद-बोकरो में JSSC की ओर से आयोजित होने वाली मैट्रिक और इंटर स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षा में द्वितीय क्षेत्रीय भाषा की सूची से बाहर कर दिया है.

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बता दें कि प्रतियोगिता परीक्षा में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा की सूची पर उठे विवाद के बाद हेमंत सरकार ने कार्मिक विभाग की ओर से जारी जिलावार भाषाओं की मान्यता में संशोधन करते हुए भोजपुरी और मगही को हटा दिया है. जबकि सभी जिलों में उर्दू भाषा की मान्यता बहाल की है. 

सरकार के इस फैसले के बाद भोजपुरी और मगही मंच के नेता कैलाश यादव ने कहा कि जो लोग भोजपुरी बोलते हैं और बीते कई दशकों से बिहार से आकर झारखंड में बस गए हैं, उनके बच्चों को यहां नौकरी का अधिकार नहीं है क्या? वो भोजपुरी ही बोलते हैं. यहां 17 जिलों में भोजपुरी, मगही, अंगिका बोली जाती है. उन्होंने कहा कि लोग HEC, कोल इंडिया की स्थापना के वक़्त से यहां हैं. ज़रूरी नही कि उनको खोरठा और कुरमाली बोलनी और लिखनी आती हो. उन्होंने कहा कि इस फैसले के खिलाफ बड़ा आंदोलन करेंगे. 

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बता दें कि हाल ही में भाषाई विवाद ने सूबे में बहुत जोर पकड़ा था. इस दौरान कई जगहों पर लोगों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था. जिसमें लोगों ने सांस्कृतिक परिधानों में ढोल नगाड़ों के साथ प्रदर्शन भी किया. हालांकि अब राज्य सरकार इस फैसले को लेकर बैकफुट पर आ गई है.

 

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