झारखंड में सियासी संकट से घिरे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बड़ा सियासी दांव चला है. एक तरफ सोरेन सरकार ने स्थानीयता और निवासी की परिभाषा व पहचान के लिए 1932 के खतियान को आधार बनाने का फैसला है तो दूसरी तरफ ओबीसी के आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया है. ऐसे ही एससी और एसटी आरक्षण में भी इजाफा किया है. बुधवार को कैबिनेट की बैठक में इन तमाम फैसलों पर मुहर लगी है. माना जा रहा है कि सीएम हेमंत सोरेन ने आदिवासी और ओबीसी समुदाय को साधे रखने के लिए कदम उठाए हैं?
डोमिसाइल पॉलिसी में बदलाव
झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने बुधवार को कैबिनेट की बैठक में आरक्षण और डोमिसाइल पॉलिसी सहित 43 प्रस्तावों को मंजरी दी है. कैबिनेट सेक्रेटरी वंदना दादेल ने बताया कि झारखंड की स्थानीयता और निवासी की परिभाषा और पहचान के लिए 1932 के खतियान को आधार बनाया जाएगा. साथ ही सामाजिक सांस्कृतिक एवं अन्य लाभों को स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक 2022 के गठन के संबंध में जो मुख्य प्रावधान हैं, उनमें वैसे व्यक्ति जिनके पूर्वज का नाम 1932 तथा पूर्व के सर्वे खतियान में दर्ज है, उसके आधार पर स्थानीयता की परिभाषा रखी गई है.
स्थानीय लोगों को साधने का दांव
बता दें जेएमएम के कई नेता और आदिवासी संगठन राज्य में लंबे समय से 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता लागू करने की मांग करते रहे हैं. 1932 के खतियान का आधार बनाने का मतलब यह है कि जिन लोगों के नाम खतियान में था, वे और उनके वंशज ही स्थानीय कहलाएंगे. सोरेन सरकार से पहले भी कई बार 1932 खतियान को आधार बनाने की कोशिश हो चुकी हैं,. लेकिन उसे अमलीजामा नहीं बनाया जा सका. ऐसे में सीएम हेमंत सोरेन ने आदिवासी समुदाय और स्थानीय लोगों को खुश करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है.
राज्य में जो भूमिहीन होंगे या जिनके पास खतियान नहीं होगा, ऐसे मामलों में ग्राम सभा द्वारा उनकी पहचान की जाएगी. इस विधेयक को राज्य सरकार विधानसभा में भेजेगी और उस पर अप्रूवल लेने के बाद उसे केंद्र सरकार की नवमी अनुसूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार अनुरोध करेगी. इसके लिए नया विधेयक लाया जाएगा. झारखंड में आदिवासी समुदाय लंबे समय से यह मांग कर रहा था और सोरेन सरकार ने इसे कैबिनेट से मंजूरी देकर बड़ा दांव चला है.
आरक्षण बढ़ाकर साधा समीकरण
सोरेन सरकार ने कैबिनेट की बैठक में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर अपने वैचारिक एजेंडो को साफ कर दिया है. राज्य के पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के साथ-साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण दायरे को बढ़ाने का प्रस्ताव पारित किया गया है. पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को मिलने वाले आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया है.
सोरेने सरकार ने ओबीसी की तरह अनुसूचित जाति (एससी) को मिलने वाला आरक्षण 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आरक्षण को 26 से बढ़ाकर 28 फीसदी की मंजूरी दी है. इसके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (इडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है.
इस तरह झारखंड में अब आरक्षण का कुल दायरा 77 फीसदी हो गया है. देश में सबसे ज्यादा आरक्षण देने वाला राज्य बना गया है जबकि तमिलनाडु में 69 फीसदी आरक्षण मिलता है.
आरक्षण से क्या मिलेगा फायदा
हेमंत सोरेन सरकार ने ओबीसी ही नहीं बल्कि दलित और आदिवासी समुदाय के आरक्षण का दायरा भी बढ़ाने का फैसला किया है. इससे साफ है कि सोरेन के एजेंडे में आदिवासी समुदाय ही नहीं बल्कि दलित और ओबीसी भी है. झारखंड में लंबे समय से ओबीसी 27 फीसदी आरक्षण की मांग कर रहे थे. ऐसे में सोरेन सरकार ने कैबिनेट से मंजूरी देकर बड़ा दांव चल दिया है, जिसका विपक्ष विरोध करने का साहस नहीं जुटा सकता है. इसकी वजह यह है कि ओबीसी, दलित और आदिवासी काफी निर्णायक भूमिका में है.
मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ में कानूनी पेच
झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार से पहले ओबीसी के आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का साहस मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री रहते कमलनाथ ने किया था तो छत्तीसगढ़ में सीएम भूपेश बघेल ने भी किया था. लेकिन, इसे कोर्ट में चुनौती दे दी गई थी, जिसके बाद से मामला अदालत में पेंडिग हैं.
ऐसे में झारखंड में भी ओबीसी के आरक्षण दायरे को बढ़ाए जाने के मामले को लेकर भी चैलेंज हो सकता है. देखना है कि हेमंत सोरेन सरकार इस चुनौती से कैसे निपटती है, लेकिन सियासी चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए बड़ा दांव चल दिया है. इसका सियासी फायदा आगामी चुनाव में भी मिल सकता है.
हालांकि, राज्य में 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय निवासी तय करने और 50 फीसदी से अधिक आरक्षण दिए जाने के झारखंड सरकार के निर्णय को हाईकोर्ट ने साल 2003 में असंवैधानिक करार दे चुकी. हाईकोर्ट के पांच जजों की बेंच (संवैधानिक पीठ) ने कहा था कि सरकार की यह नीति आम लोगों के हित में नहीं है. कोर्ट ने कहा था कि इस नीति से लोग स्थानीय होने के दायरे से बाहर हो जाएंगे जिन्हें देश के विभाजन के बाद रांची में बसाया गया था. ऐसे लोग काफी समय से झारखंड में रह रहे हैं.