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झारखंड के इस गांव में 200 सालों से नहीं खेली गई होली, जानिए पूरी कहानी

जहां आज पूरा देश होली के रंगों से सराबोर हुआ, वहीं बोकारो के दुर्गापुर गांव मे सन्नाटा पसरा रहा. इस पंचायत के लोग इस दिन दहशत मे जीते हैं और प्रार्थना करते हैं कि कोई अनजाने मे भी आकार इस गांव में होली खेलकर न चला जाए. यहां के ग्रामीण पूरे दिन इसकी निगरानी करते रहते हैं.

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झारखंड के दुर्गापुर गांव में नहीं खेली जाती होली
झारखंड के दुर्गापुर गांव में नहीं खेली जाती होली
स्टोरी हाइलाइट्स
  • झारखंड के दुर्गापुर गांव में नहीं खेली जाती होली
  • 200 सालों से गांव नेम नहीं खेली गई होली

देशभर में आज (सोमवार) होली खेली जा रही है. लेकिन झारखंड के बोकारो जिले में एक गांव है, जहां पिछले 200 सालों से होली नहीं खेली गई. दुर्गापुर नाम के इस गांव के लोग मानते हैं कि यहां रंगों का महापर्व खुशियों का पैगाम नहीं, बल्कि मौत का पैगाम लेकर आता है. गांव में रंग और गुलाल उड़ते ही मौतें होने लगती हैं. सदियों से दुर्गापुर में होली नहीं खेली गई. ये परंपरा आज तक जारी है. 

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जहां आज पूरा देश होली के रंगों से सराबोर हुआ, वहीं बोकारो के दुर्गापुर गांव मे सन्नाटा पसरा है. इस पंचायत के लोग इस दिन दहशत मे जीते हैं और प्रार्थना करते हैं कि कोई अनजाने में भी आकार इस गांव में होली खेलकर न चला जाए. यहां के ग्रामीण पूरे दिन इसकी निगरानी करते रहते हैं. होली नहीं खेलने की परंपरा को आज भी दुर्गापुर के ग्रामीण कायम रखे हुए हैं. दुर्गापुर के ग्रामीण होली मे रंग-गुलाल नहीं खेलते, लेकिन होली के दिन सारे ग्रामीण पूरे सौहार्द के साथ बाकी सारी परंपरा निभाते हैं. 

बता दें कि बोकारो जिला के कसमार प्रखंड के अंतर्गत दुर्गापुर एक पंचायत है. इस पंचायत के तहत 11 टोला आते हैं. जिसमें ललमटिया, हरलाडीह, बूटीटांड़, कमारहीर, चडरिया, परचाटोला, तिलसतरिया, डुण्डाडीह, कुसुमटांड़, बरवाटोला और करुजारा टोला शामिल हैं. सबकी जनसंख्या दस हजार के आस-पास है, जहां सभी जाति-धर्म के लोग आपसी भाई चारे के साथ रहते हैं. लेकिन इस गांव में सदियों से होली के त्योहार पर रंग-गुलाल नहीं खेलने की परंपरा चली आ रही है, जो आज भी जारी है. 

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झारखंड का दुर्गापुर गांव

गांव के बुजुर्ग कार्तिक महतो (93), भगवान दास महतो (85) आशुतोष महतो (70) आदि के अनुसार पूर्वजों ने उन्हें इस बारे में कुछ बाते बताईं हैं. जिसके मुताबिक, सदियों पहले दुर्गापुर राजा दुर्गा देव की रियासत हुआ करती थी. एक दिन राजा दुर्गा देव के महल मे नर्तकी का नृत्य चल रहा था, उसी समय रामगढ़ के राजा दलेर सिंह के दो घुड़सवार सैनिक पश्चिम बंगाल के झालदा बाजार से रानी के लिए साड़ी लेकर दुर्गापुर के रास्ते से रामगढ़ लौट रहे थे. 

तभी राजा दुर्गा देव की नज़र घुड़सवारों पर पड़ी और उन्होंने दोनों को अपने दरबार में बुलाया. राजा ने सैनिकों से साड़ी लेकर नर्तकी को पहना दिया और फिर नृत्य करवाने के बाद साड़ी वापस सैनकों को दे दी. ग्रामीणों के अनुसार, जब रामगढ़ के राजा के इस बारे में खबर लगीं तो उन्होंने होली के दिन ही दुर्गा देव की हत्या कर दी. 

ग्रामीणों की मान्यता है कि तब से लेकर आज तक होली के दिन उस राजा कि आत्मा भटकती है. होली मनाने वालों को अपना निशाना बनाती है. आदमी की मौत के साथ-साथ जानवरों की भी मौत होने लगती है. तभी से राजा की मौत के शोक और डर से दुर्गापुर मे होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. 
 
ग्रामीणों के अनुसार, वर्षो पूर्व दुर्गापुर में एक परिवार ने होली खेली थी, जिसका परिणाम यह हुआ की पूरे गांव मे महामारी फैल गयी. कई लोगों की जान चली गयी. जानवरों की भी मौत हो गयी थी. हालांकि, होली नहीं मनाना केवल गांव की सीमा तक ही प्रतिबंधित है. अगर कोई चाहे तो दूसरे गांव में जाकर होली मना सकता है. 

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