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महाराष्ट्र की सियासत को लेकर झारखंड में क्यों मचा है हंगामा?

महाराष्ट्र की सियासत को लेकर झारखंड में हंगामा मचा हुआ है. एनसीपी के इकलौते विधायक कमलेश सिंह ने हाल ही में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस ले लिया था.

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झारखंड के एनसीपी विधायक कमलेश सिंह और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (फाइल फोटो)
झारखंड के एनसीपी विधायक कमलेश सिंह और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (फाइल फोटो)

झारखंड की राजनीति में इन दिनों हंगामा खड़ा हो गया है. इस हंगामे की वजह है शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी. एनसीपी को झारखंड विधानसभा के चुनाव में एक सीट पर जीत मिली थी. एनसीपी का महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ गठबंधन था तो पार्टी झारखंड में भी कांग्रेस के साथ हो ली, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गई.

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लेकिन अब तस्वीर बदल गई है. महाराष्ट्र में एनसीपी पर कब्जे को लेकर शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के बीच छिड़ी जंग का असर झारखंड में भी नजर आया. सूबे की विधानसभा में एनसीपी के इकलौते विधायक कमलेश सिंह ने अजित पवार गुट का समर्थन किया और अब महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम को लेकर झारखंड में हंगामा मच गया है.

दरअसल, हुआ ये कि कमलेश सिंह एनसीपी के अजित पवार के साथ वाले धड़े के साथ हो गए. इसके बावजूद उन्होंने झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार का समर्थन जारी रखा था. अजित गुट महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ है, ऐसे में जेएमएम सरकार का वह कब तक समर्थन करते हैं, इसे लेकर कयासों का दौर भी खूब चला. कमलेश ने अभी कुछ दिन पहले सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था.

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सियासी हंगामे की असली कहानी इसके बाद शुरू होती है. कमलेश सिंह ने अब सोरेन सरकार पर समर्थन वापसी के बाद सुरक्षा में कटौती करने का आरोप लगाया है. पलामू जिले की हुसैनाबाद सीट से विधायक कमलेश सिंह की ओर से राज्यपाल को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि सरकार ने समर्थन वापस लेने के बाद उनकी सुरक्षा आधी कर दी है.

कमलेश सिंह की ओर से 2006 में अपने हुए हमले का भी जिक्र किया गया है और ये भी बताया गया है कि वह पूर्व मंत्री भी हैं. कमलेश सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह को भी अपनी सुरक्षा को लेकर पत्र लिखा है और ये बताया है कि पहले भी उनको जेड और वाई प्लस सिक्योरिटी मिलती रही है.

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कमलेश ने सोरेन सरकार से समर्थन वापस लेने का कारण हुसैनाबाद को अलग जिला नहीं बनाए जाने को बताया है. उनका दावा है कि 2020 में हुसैनाबाद को अलग जिला बनाने की शर्त पर ही उन्होंने सोरेन सरकार को समर्थन दिया था. कमलेश सिंह भले ही समर्थन वापसी के पीछे चाहे जो तर्क दे रहे हों, कहा तो यही जा रहा है कि अजित गुट जब एनडीए में है तब वे कांग्रेस के साथ भला कैसे रह सकते थे.

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झारखंड एनसीपी के नेताओं ने जब अजित गुट के प्रति निष्ठा व्यक्त कर ही दी है तो उसके कांग्रेस के साथ एक गठबंधन में रहने से गलत संदेश जाता. चर्चा तो ये तक है कि अजित गुट के शीर्ष नेताओं की ओर से निर्देश मिलने के बाद ही कमलेश सिंह ने राज्य सरकार से समर्थन वापस लिया.

हो सकता है कि हेमंत सोरेन की सरकार को समर्थन देते समय कमलेश सिंह ने हुसैनाबाद को जिला बनाए जाने की मांग भी उठाई हो और उन्हें इसे लेकर आश्वासन भी मिला हो. लेकिन बदले हालात में कहा तो यही जा रहा है कि ये महाराष्ट्र से आई सियासी बयार का ही असर है.

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