
झारखंड का झरिया शहर. करीब 80 सालों से यहां लगी अंडरमाइन आग के लिए मशहूर या यूं कहें बदनाम हो चुका है. माइंस में आग से लगभग डेढ़ लाख परिवार प्रभावित हैं, जिनका सब कुछ दाव पर है, लेकिन फिर भी ये लोग इलाके को खाली करने को राजी नहीं हैं. इसके लिए केंद्र सरकार ने पुनर्वास योजना बनाई थी, जो अबतक नाकाम रही है. लोग इसपर भरोसा नहीं कर पा रहे.
आग की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित वहां रहने वाले रैयत (किसान) हैं. मुनाफा खोरी और कीमती कोयला निकलने के लक्ष्य में वहां पुश्तों से बसे रैयत की जान जोखिम में डाली जा रही है. रैयत और झरिया के लोगों का कहना है कि विस्थापित करने का प्लान ठीक नहीं है. वे मानते हैं कि वर्तमान नीतियों पर हटना मौत को ही गले लगाना है तो घर मे रहकर ही जमींदोज़ होकर या जलकर मरने में क्या बुराई है.
जलकर मर जाना सिर्फ कहने भर की बात नहीं है. कई लोगों के साथ ऐसा हो भी चुका है. झरिया शहर मानों बारूद के ढेर पर हो. कई दशकों पहले अवैज्ञानिक खनन की वजह से जो माइंस के अंदर आग लगी थी वो अब सतह के ऊपर तक आ गई है. इसलिए अब लोगों को हटाने का काम किया जाना है, लेकिन लोग कथित एकतरफा प्लान पर हटना नहीं चाहते.
लोगों का आरोप है कि BCCL और माइंस ओनर अपने मुनाफा और कोयले की अंधा धुंध माइनिंग के लिए विस्थापितों के पक्ष की कभी सोचते दिखे ही नहीं. कई बार परिवार सहित लोग घर के साथ ही जमींदोज़ हो गए लेकिन फिर भी लोगों में डर नहीं है.
9-9 पुश्तों से झरिया में रह रहे परिवार
नौ-नौ पुश्तों से रहने वाले इन रैयतों के घर से धुआं कैसे निकल रहा है ये देखकर हैरान रह जाएंगे. इसी में रसोई के अंदर खाना भी बन जाता है. सूमो देवी और बरनी देवी बताती हैं कि हर वक़्त मौत और भय के खौफ में वे जी रहे हैं, लेकिन जहां बसने कहा जा रहा है वह जगह ठीक नहीं है.
लोग अबतक वादे के मुताबिक नौकरी, मुआवजे की राह तक रहे हैं. कई ऐसे लोग हैं जो नौकरी के इंतजार में बूढ़े हो गए. तारा प्रसाद रजवार अब 70 के हो चुके हैं, बाल पक गए और उम्र रिटायरमेंट के 10 साल आगे निकल चुकी है लेकिन वादे के मुताबिक नौकरी उनको नहीं दी गई. यहां रहने वाले रंजीत स्टूडेंट हैं. वह कहते हैं कि इतना धुआं है और आग से निपटने यानी बचने की चुनौतियां पढ़ने में मन ही नहीं लगने देतीं.
1995 से सिर्फ मास्टर प्लान ही बनाया जा रहा है. बार-बार लोगों को खाली करने को कहा जाता है, ताकि माइंस ओनर कोयला निकालकर अपना लक्ष्य और मुनाफा बना सकें. लोगों को 8X8 के कमरों में शिफ्ट होने को कहा जाता है, जो इन लोगों को मंजूर नहीं है.
झरिया में लीगल टाइटल होल्डर यानी रैयत (LTH) 32 हज़ार से ज़्यादा है जबकि नॉन लीगल टाइटल होल्डर (NLTH ) जो किसी तरह आकर व्यवसाय ,नौकरी रोज़ी रोजगर के लिए यहां बसे उनकी संख्या 1 लाख से ज़्यादा है. JRDA के गठन के बाद से बेलघरिया जो यहां से 10 km की दूरी पर है, वहां टाउनशिप बनाने की कवायद शुरू की गई थी. कुछ लोगों को वहां बसाया भी गया लेकिन झरिया कमर्शियल हब के रूप में देश में जाना जाता है. लिहाजा वहां खोमचे वाले से लेकर बड़े व्यसाय वाले या नौकरी पेशा वाले आकर रहने लगे.
JRDA के अध्यक्ष और धनबाद के DC बताते हैं कि पुनर्वास पर अब अंतिम फैसला केंद्र सरकार को लेना है. 1995 से ही 12 साल के अंतराल पे रिवाइज्ड मास्टर प्लान बन रहा है. अभी 2009 के मास्टर प्लान पर बैठकें होती हैं. अबतक JRDA की ही करीब 30 बैठकें हो चुकी हैं.