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झारखंड: चले थे सरकार को घेरने, लिस्ट ने खोल दी खुद की पोल

शुक्रवार को ही समाचार पत्रों में आई एक लिस्ट के मुताबिक झारखंड में आदिवासियों की जमीन गलत तरीके से हथियाने में बड़े नेताओं, विधायकों के साथ-साथ राज्य के अधिकारी भी शामिल हैं.

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विपक्ष ने की सीबीआई जांच की मांग
विपक्ष ने की सीबीआई जांच की मांग

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सर मुड़ाते ही ओले पड़ने वाली बात शुक्रवार को झारखंड विधानसभा में पूरी तौर पर चरितार्थ हो गई. जब झारखंड विधानसभा में CNT और SPT के मुद्दे पर आक्रामक हो रहा विपक्ष शुक्रवार को बगले झांकता नजर आया. दरअसल शुक्रवार को ही समाचार पत्रों में आई एक लिस्ट के मुताबिक झारखंड में आदिवासियों की जमीन गलत तरीके से हथियाने में बड़े नेताओं, विधायकों के साथ-साथ राज्य के अधिकारी भी शामिल हैं. इनमें बाबूलाल मरांडी, शिबू सोरेन, मधु कोड़ा, स्टीफन मरांडी और प्रदीप बलमुचू जैसे दिग्गज नेताओ के रिश्तेदारों के नाम शामिल हैं. वैसे इस लिस्ट में पांच दर्जन से अधिक लोगों के नाम दर्ज है. हालांकि विपक्ष का आरोप है कि यह लिस्ट अधूरी है, इसमें सत्ता पक्ष के बड़े नाम गायब हैं.

विपक्ष ने की सीबीआई जांच की मांग
दरअसल विपक्ष लगातार सरकार पर CNT और SPT का उल्लंघन करने और चहेतों को नाजायज फायदा पहुंचाने के लिए इसमें संशोधन करने के लिए अध्यादेश लाने का आरोप लगाता रहा. लेकिन अखबारों के मुताबिक आदिवासियों की जमीन अवैध तरीके से खरीद के मामले सभी दलों के नेता या उनके रिश्तेदार शामिल हैं. इतना ही नहीं, झारखंड में कार्यरत उच्च पदों पर आसीन अधिकारी भी इस खरीद-फरोख्त में शामिल हैं. ऐसे में जारी लिस्ट से तिलमिलाए हेमंत सोरेन ने सदन के भीतर ही सरकार को ही नालायक और निकम्मी होने की संज्ञा दे डाली. साथ ही पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की भी मांग की. हालांकि जमीन के अवैध हस्तांतरण के मामले की जांच SIT कर रही है.

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क्या है CNT/SPT एक्ट 1908
CNT यानी (छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908) छोटानागपुर और संथालपरगना में आदिवासी जमीन के अवैध तरीके से हो रहे खरीद-फरोख्त को रोकने के लिए अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था. हालांकि समय-समय पर इसमें संशोधन होते रहे हैं. यह एक्ट संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल है और यह जुडिशल रिव्यू से बाहर है. CNT एक्ट की धारा 46 के मुताबिक राज्य के छोटानागपुर और पलामू डिविजंस में ST/SC या OBC की जमीन सामान्य लोग नहीं खरीद सकते. वहीं इन जातियों पर भी बिना उपायुक्त की अनुमति के अपने ही लोगों को जमींन हस्तांतरित करने या बेचने पर पाबंदी है. वहीं दो आदिवासियों के बीच जमीन की बिक्री उपायुक्त की अनुमति से की जा सकती है बशर्ते दोनों एक ही थाना क्षेत्र के रहनेवाले हो. जबकि अफसरों द्वारा गलत शपथ-पत्र के द्वारा जमीन हासिल करने पर IPC की धारा 463 और 466 के तहत दो से 7 साल तक सजा का प्रावधान है. साथ ही खरीदी हुई जमीन भी मूल रैयत को लौटानी होगी.

पूरे सत्र में कामकाज रहा ठप्प
गौरतलब है कि झारखण्ड विधानसभा के मानसून सत्र में एक भी दिन सुचारू ढंग से काम नहीं हुआ. शुक्रवार को सत्र का अंतिम दिन था, वैसे सूबे में CNT/SPT एक्ट को धता बताकर हजारो लोगों ने गलत तरीके से आदिवासियों की जमीन हड़पी है. ऐसे करीब 10 हजार मामले आज भी विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं. वहीं इसे मुद्दा बनाकर सभी राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेकते रहे हैं. हालांकि सरकार दोषियों पर उचित कार्रवाई करने की बात जरूर कर रही है लेकिन हकीकत में इस हमाम में सभी नंगे हैं.

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