बीते सात सालों में दस बार राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व, वर्ष 2007- 2008 में तमिलनाडु और जमशेदपुर में खेले गए नेशनल टूर्नामेंट में दो सिल्वर मेडल, इसके अलावा 15 स्टेट टूर्नामेंट में छत्तीसगढ़ के लिए 15 गोल्ड मेडल, तीरंदाजी के लिए राज्य के श्रेष्ठ प्रवीर चंद भंजदेव राज्य स्तरीय खेल पुरस्कार से सम्मानित. आदिवादी तीरंदाज संतराम बैगा का यह प्रोफ़ाइल है. हाल में राज्य सरकार ने राष्ट्रीय स्तर के इस खिलाड़ी को चपरासी की नौकरी देकर 'उपकृत' किया है.
आपको बता दें कि तीरंदाजी में अपना लोहा मनवा चुके इस शख्स ने बगैर किसी सरकारी सहायता के यह मुकाम पाया. तीरंदाजी खर्चीला खेल है. इसकी अच्छी किट लाख रुपये से ऊपर की आती है. इस वजह से इस खेल को संतराम बैगा ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रख पाया, क्योंकि घर गृहस्थी की गाड़ी चलाने के लिए रुपयों की जरूरत होती है. लिहाजा एक आद्दत नौकरी की तलाश में जुट गए संतराम बैगा. सरकार ने उन्हें नौकरी दी, लेकिन चपरासी की.
28 साल के बैगा आदिवासी समुदाय से हैं. अक्सर राज्य की बीजेपी सरकार दावा करती है कि वो आदिवासी समुदाय की तरक्की और विकास के लिए ढेरों कार्यक्रम चला रही है, लेकिन इसी समुदाय में से एक संतराम बैगा ने तीरंदाजी की जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की प्रतियोगिताओं में अपने झंडे गाड़े. पढाई-लिखाई को उसने इतनी प्राथमिकता नहीं दी, जितनी कि तीरंदाजी को. नतीजतन जब बारी घर के भरण-पोषण की आई, तो तीरंदाजी का शौक धरा का धरा रह गया. इस राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी को अपने इस खेल को तिलांजलि देनी पड़ी. मेडल घर की दीवारों की शोभा बढ़ाते रहे और वह जुट गया कभी जंगल से सुखी लकड़ियां निकालने के काम में तो कभी साईकिल के पंचर बनाने के, ताकि सौ दो सौ रुपये मिल जाए और घर में चूल्हा चक्की चल सके.
लगभग तीन साल तक मेहनत मजदूरी करने के बाद राज्य सरकार ने इस खिलाड़ी की गुहार सुनी और उसे गांव के स्कूल में चपरासी के पद पर नियुक्ति दे दी. संतराम बैगा के मुताबिक कभी भी उसे ऐसी सरकारी सहायता नहीं मिली, जिसकी बदौलत उसके दिन फिरते. अब जाकर उसे चपरासी की नौकरी मिली है.
संतराम की इस उपलब्धि और जौहर को चपरासी के पद से तौलने से खिलाड़ी हैरत में हैं. राज्य के तीरंदाजी संघ ने पत्र लिखकर सरकार से संतराम का ओहदा बढ़ाने की मांग की है.
सरकार का कहना है कि संतराम बैगा को उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नियुक्ति दी गई है. वह सिर्फ बारहवीं पास है. बीए फस्ट ईयर में उन्होंने दाखिला लिया है. लिहाजा स्पोर्ट कोटे से उन्हें चतुर्थ श्रेणी अर्थात चपरासी के पद पर नियुक्ति दी गई है.
इधर संतराम ने अपनी नौकरी संभाल ली है. ऑफिस टाइम में उसके हाथों में कभी झाड़ू - पोछा तो कभी गैती-फावड़ा होता है. स्कुल के तमाम कमरों की साफ़-सफाई से लेकर स्कुल परिसर से गन्दगी दूर करने की जवाबदारी उसके कंधों पर आ गई है.