झारखंड विधानसभा में नियुक्ति और प्रोन्नति घोटाले की जांच में राज्य के वरिष्ट नेताओं से पूछताछ की तैयारी चल रही है. मामले की जांच कर रही जस्टिस विक्रमादित्य आयोग ने करीब आधा दर्जन पूर्व स्पीकरों को तलब करने का फैसला किया है. खबर है कि इनसे विधानसभा में हुई नियुक्ति के बारे में पूछताछ की जाएगी. जांच के क्रम में राज्य सरकार के प्रमुख अधिकारियों को समन भेजने की तैयारी की जा रही है.
गौरतलब है कि झारखंड विधानसभा में नियुक्ति और प्रोन्नति में हुई गड़बड़ी मामले की जांच के लिए राज्यपाल के आदेश से जस्टिस विक्रमादित्य आयोग का गठन किया गया था. आयोग इस मामले में दर्जन भर से ज्यादा लोगों से अब तक पूछताछ कर चुकी है.
क्या है मामला?
आरोप है कि साल 2007 में झारखंड विधानसभा में हुई नियुक्तियों में कई पदाधिकारियों के संबंधियों और पहुंच वाले नेताओं के संबंधियों की बहाली हुई थी. मामला संज्ञान में आने के बाद तत्कालीन राज्यपाल ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज लोकनाथ प्रसाद की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया था.
उन्हें तीस बिंदुओं पर जांच कर तीन माहीने के अंदर राज्यपाल को रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया था. आदेश के बाद आयोग ने काम शुरू किया, लेकिन विस सचिवालय ने जांच के लिए दस्तावेज देने में आनाकानी शुरू की जब आयोग को दस्तावेज नहीं मिले तो इसे देखते हुए जस्टिस प्रसाद ने त्याग पत्र दे दिया.
साल 2014-15 में बीजेपी के सत्ता में काबिज होने के बाद एक बार फिर से मामले की जांच शुरू की गई. इस बार जांच का काम झारखंड हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश विक्रमादित्य प्रसाद को दिया गया. जिन्हें एक साल के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी थी. हालांकि जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद को भी विधान सभा सचिवालय से असहयोग का सामना करना पड़ा.
इस आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को सौप दी. बताया जाता है कि बंद लिफाफे में सौंपी गई इस रिपोर्ट में नियुक्ति-प्रोन्नति में हुई गड़बडिय़ों की जानकारी दी गई थी. इस जांच में अब तक ऐसे 25 विधानसभा कर्मी शक के घेरे में आए हैं, जिन पर जाली प्रमाण पत्रों के आधार पर काम करने का संदेह है. इनके प्रमाण पत्रों के बारे में बिहार से जानकारी मांगी गई है.
बिहार ने जांच रिपोर्ट के लिए आयोग से ही अफसर मांगा और कहा कि वो संबंधित रजिस्टर उपलब्ध करा देगा. अफसर खुद देखकर ये पता कर लें कि प्रमाणपत्रों की सत्यता क्या है. हालांकि ये जांच अभी नहीं हो पाई है. जांच रिपोर्ट में अन्य कई तरह की गड़बडिय़ों का उल्लेख है लेकिन जांच पूरी नहीं हो पाने की वजह से अंतरिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका.
वैसे राज्यपाल को अंतरिम रिपोर्ट मिलने के बाद जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है. दूसरी तरफ झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान कोंग्रेसी विधायक आलमगीर आलम का कहना है कि उनके कार्यकाल के दौरान हुई नियुक्तियां नियमपूर्वक हुई है.
वहीं बीजेपी के विधायक और वर्तमान में शहरी विकास मंत्री सी.पी सिंह जो पूर्व में विधानसभा अध्यक्ष रह चुके है उनका मानना है कि नियुक्तियां के सन्दर्भ में कुछ विसंगतियां पाई गई हैं, जिसकी जांच आयोग कर रहा है. दरअसल इस पुरे प्रकरण में कई विधानसभा अध्यक्षों की भूमिका संदेह के घेरे में हैं.
तरह-तरह के खेल हुए हैं इस मामले में
दरअसल झारखंड एकलौता ऐसा राज्य है जो विकास के बजाए घोटालो के कारण ज्यादा चर्चित रहा है. गठन के बाद अल्पमत सरकारों के दौर में जमकर चहेतों को पदों की रेवड़ियां बांटी गई. राज्य सरकार की नियमावली के मुताबिक दो सालों में प्रोन्नति का प्रावधान है, पर इस प्रकरण में तो तमाम नैतिकता को ताख पर रखते हुए महज सात वर्षो में पांच-पांच प्रोन्नति दी गई.
इसी तरह सुरक्षा गार्ड, फैक्स ओपरेटर, बिल क्लर्क जैसो को आठ से बारह महीनों के भीतर पहले सहायक और अगले पंद्रह से सोलह महीनों में प्रशासनिक पदों पर प्रोन्नत कर दिया गया. हाल ये है की तीसरे और चौथे ग्रेड का कर्मचारी अब आईएएस का वेतनमान पा रहा है. फिलहाल विधानसभा में एक विधायक पर दर्जन भर कर्मचारी नियुक्त है. ये देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है.