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झारखंड: सरकारी लापरवाही से तूफान और बारिश में ढह गए 100 से अधिक सिंचाई कूप

यास चक्रवाती तूफान आया और एक- दो नहीं 100 से अधिक सिंचाई कूप लोहरदगा जिले में जमींदोज हो गए. नरेगा योजना के लाभुक किसानों पर यास तूफान के साथ सरकारी बदइंतजामी की दोहरी मार पड़ी है.

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मूसलाधार बारिश में बह गए कुंए (फोटो-आजतक)
मूसलाधार बारिश में बह गए कुंए (फोटो-आजतक)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बारिश में ढह गए सिंचाई कूप
  • पैसों के आवंटन में देरी से हुआ हादसा
  • निर्माण सामग्री मिलने में देरी से रुका काम

झारखंड के लोहरदगा में तूफान और बारिश की वजह से 100 से अधिक सिंचाई कूप ढह गए. हालांकि ये सब सरकारी लापरवाही का नतीजा बताया जा रहा है. काफी दिनों से नरेगा मजदूरों को मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया था और निर्माण सामग्री मिलने में भी देरी हुई है. जानकारी के मुताबिक किसी मजदूर को 30 दिनों से तो किसी को 50 दिनों से मजदूरी नहीं मिली है.

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कोरोना के कहर के दौरान रोजी-रोटी की उम्मीद लिए खून- पसीना एक कर नरेगा मजदूरों ने काम किया, मगर हफ्तों तक फूटी कौड़ी हाथ न आई तो मजदूर कुओं का काम बंद करने को मजबूर हो गए. कोई खेती-बाड़ी में लग गया तो कोई जलावन की लकड़ी बेचने लगा. किसी ने पेट चलाने के लिए कोई और काम पकड़ लिया. इधर पंचायतों से लाभुकों को ईंट और सीमेंट की सप्लाई में भी देरी की गई.

इस बीच यास चक्रवाती तूफान आया और एक- दो नहीं 100 से अधिक सिंचाई कूप लोहरदगा जिले में जमींदोज हो गए. नरेगा योजना के लाभुक किसानों पर यास तूफान के साथ सरकारी बदइंतजामी की दोहरी मार पड़ी है. इससे करोड़ों का नुकसान हुआ है. एक कूप की लागत तीन लाख 65 हजार रुपये है. किसानों के लिए यह त्रासदी सरकारी सिस्टम ने पैदा की है. 

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लोहरदगा किस्को प्रखंड के लाभुक इलियास सोए ने कहा कि सही से पैसा नहीं मिलने के कारण कुएं समय पर पूरा नहीं हो सके और ढह गए. हम बहुत आशा लगाए थे कि हम लोगों को नरेगा से कुआं मिला था. इससे हम लोगों को बहुत फायदा होता. हमने काफी मेहनत की थी लेकिन समय से पैसा नहीं मिलने के कारण से अधूरा कुआं बरसात में ढह गया.

50 दिन काम किया, नहीं मिली फूटी कौड़ी
 
लाभुक किसान मार्टिन सोय के बड़े भाई मसीहदास सोय का कहना है कि हमारे भाई के कुआं में हम मजदूरी कर रहे थे. 50 दिन मजदूरी की, मगर फिर भी एक रुपया नहीं मिला. मैंने पैसा को नहीं देखा काम को देखा. मेरी पत्नी नहीं है, मेरा एक बच्चा है. सोचा किसी तरीके से मेहनत करके काम कर दूं. मेरा बच्चा पढ़ाई कर रहा है उसके लिए मजदूरी कर रहा था. पैसे के इंतजाम के लिए सोचा था. कुएं में मजदूरी करने से कुछ आमदनी हो जाएगी. लेकिन पैसा नहीं मिलने के कारण से कुआं गिर गया. सही रूप से पैसा ही नहीं मिला. मेरा तो जाने दीजिए, मेरे छोटे भाई का कुआं है. बाकी मजदूरों को भी सही से पैसा नहीं मिला तो क्या करेंगे. हम दो भाई मिलकर कुआं बनाने का कितना काम कर पाते. इसलिए पानी आया तो कुआं ढह गया.

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कोरोना काल में ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार और सिंचाई के साधन बेहतर करने के लिए जिले के हर पंचायत में  कम से कम 10-10 कूप निर्माण चल रहा था. बड़ी बात है कि अब तक एक भी कूप पूरा नहीं हो सका है. 15 जून तक पूरा करने की समय सीमा निर्धारित है. प्री मॉनसून बारिश शुरू हो चुकी है. ऐसे में और भी कुएं ढहने की संभावना बनी हुई है. नरेगा की योजनाएं एक बार फिर सरकारी बदइंतजामी का शिकार हो गईं. वहीं लाभुक किसानों की जमीन बर्बाद हुई, उनके सपने टूटे. सबसे ज्यादा करीब 30 कुएं पेशरार प्रखंड में ध्वस्त हुए हैं.

लोहरदगा और पेशरार दोनों प्रखंडों के विकास अधिकारी का कार्य देख रहे अजय कुमार वर्मा का कहना है कि यह सही है कि करीब डेढ़ महीने तक मजदूरों का भुगतान नहीं हो पाया मगर अब सब के खाते में पैसा जा रहा है. नरेगा के कुओं को 15 जून मॉनसून के पहले तक पूरा करने का लक्ष्य रहता है. मगर बीच में यास तूफान ने परेशानी खड़ी कर दी. हालांकि ज्यादातर मजदूरों को अब भी मजदूरी नहीं मिली है. इसकी वजह राज्य सरकार द्वारा पैसे का आवंटन नहीं किया जाना है.

 

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