आमतौर पर अगर किसी विभाग में पीएमओ के खत आते है तो वहां खलबली मच जाती है, लेकिन झारखंड इस मामले में थोड़ा अलग है. यहां पीएमओ के पत्र पर भी अधिकारी लंबी तानकर सो जाते हैं. दरअसल, पूरा मामला एयरपोर्ट अथॉरिटी द्वारा अधिग्रहित की गई जमीन पर मुआवजे से सम्बंधित है.
आरोप है कि इसमें पीड़ित दिनेश प्रसाद को मुआवजा महज इसलिए नहीं मिला, क्योंकि उन्होंने भू अर्जन अधिकारियों और कर्मचारियों को 15 लाख की रिश्वत नहीं दी. इस वजह से वे बीते पांच वर्षों से विभिन्न दफ्तरों में अलग-अलग टेबलों पर अपनी शिकायत की फाइलें लेकर दौड़ रहे हैं.
पीएमओ से स्पष्टीकरण मांगने के बाबजूद कोई कार्रवाई नहीं
दरअसल रांची एयरपोर्ट के लिए 13 लोगों से जमीन ली गई थी, इन सभी की जमीन पर प्रो-वेट केस चल रहा है्. लेकिन इनमें से 12 लोगों को जमीन के बदले मुआवजा दे दिया गया, सिवाय एक दिनेश प्रसाद के, क्योंकि उन्होंने अधिकारियों और कर्मचारियों को रिश्वत नहीं दी. इससे आहत होकर उनकी बेटी रिया वर्मन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा. उसने पत्र में बताया कि बहुत मुश्किल से घर चल रहा है. पापा अलग-अलग विभागों के चक्कर लगाते हुए थक चुके हैं और आर्थिक और मानसिक प्रताड़ना से परेशान हैं. हम लोगों के सामने आत्मदाह करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं है. झारखंड में आपकी सरकार है, लेकिन यहां मेरी अपील कोई नहीं सुन रहा है. रिया के पत्र को पीएमओ ने गंभीरता से लेते हुए 22 अप्रैल 2017 को सरकार के नोडल अफसर डिप्टी सेक्रेटरी चंद्रभूषण प्रसाद को (पीएमओ-डी-2017-0177100) ऑनलाइन जानकारी दी चंद्रभूषण प्रसाद ने 25 अप्रैल को डिप्टी सेक्रेटरी अवध नारायण प्रसाद को मामला फॉरवर्ड कर दिया. जब इस बाबत रिया कुछ दिनों बाद अवध नारायण प्रसाद से मिली तो उसे बताया गया कि पीएमओ से अब तक कार्रवाई से संबंधित कोई पत्र नहीं आया है. हैरत की बात यह है कि पीड़ित परिवार इस मुद्दे को मुख्यमंत्री रघुवर दास के जनता दरबार में भी उठा चूका है, लेकिन अबतक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
12 लोगों को मुआवजा, एक के लिए नियम
पीड़ित परिवार का आरोप है कि जिस आधार पर उन्हें जमीन का मुआवजा नहीं देने की बात अपर समाहर्ता द्वारा कही जा रही है, उसी आधार पर बाकी 12 लोगों को मुआवाजे का भुगतान कर दिया गया. थाना नंबर 298, खाता नंबर 30 में कुल 13 लोगों की जमीन है. इसमें से खरीदी गई जमीन में से किसी का दाखिल खारिज नहीं हुआ है. लेकिन 12 लोगों का बगैर दाखिल खारिज के ही मुआवजा दे दिया गया, जबकि, रिश्वत नहीं देने के कारण उन्हें कहा गया कि बगैर दाखिल-खारिज का मुआवजा भुगतान संभव नहीं है.