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झारखंड का 'दशरथ मांझी', पत्नी के लिए पहाड़ खोदकर बना डाला कुआं

झारखंड के 'दशरथ मांझी' चाड़ा पाहन ने आजतक को बताया कि पत्नी को वर्षों से काफी दूर जाकर पानी लाना पड़ता था. एक दिन पहाड़ में घूमते हुए उन्हें पानी का रिसाव होता दिखा. उन्हें लगा कि यहां पर नीचे पानी हो सकता है. उन्होंने चट्टान काटने का फैसला किया और बाकायदा कुआं तैयार करने में छह महीने लगे.

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खूंटी जिले के कोजड़ोंग गांव में चाड़ा पाहन ने चट्टान काट खोदा कुआं (फोटो-सत्यजीत)
खूंटी जिले के कोजड़ोंग गांव में चाड़ा पाहन ने चट्टान काट खोदा कुआं (फोटो-सत्यजीत)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पत्नी को लाना पड़ता था डेढ़ किलोमीटर दूर से पानी
  • पानी निकालने के लिए 20 फीट चट्टान काटनी पड़ी
  • 8 दशक बाद भी गांव में बिजली-पानी की पहुंच नहीं
  • पेयजल स्वच्छता मंत्री- प्रशासन की असफलता नहीं

पत्नी को डेढ़ किलोमीटर दूर पैदल चलकर पीने का पानी लाना पड़ता था. ऊपर से बीमारी ने प्यास बुझाने की इस मशक्कत को और मुश्कि‍ल बना दिया था. इसके बाद पत्नी की ये मुसीबत दूर करने के लिए पति ने कुछ ऐसा कर डाला जो नजीर बन गया.

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जी हां, झारखंड के चाड़ा पाहन ने पहाड़ पर चट्टान काटकर कुआं खोद डाला. मामला खूंटी जिले में मुरहू प्रखंड के कोजड़ोंग गांव का है. चाड़ा पाहन के इस कारनामे की वजह से उन्हें लोग झारखंड का दशरथ मांझी कह रहे हैं, जिन्होंने पहाड़ काटकर सड़क बना डाली थी.

चाड़ा पाहन ने आजतक को बताया कि पत्नी को वर्षों से काफी दूर जाकर पानी लाना पड़ता था. एक दिन पहाड़ में घूमते हुए उन्हें पानी का रिसाव होता दिखा. उन्हें लगा कि यहां पर नीचे पानी हो सकता है. उन्होंने चट्टान काटने का फैसला किया और बाकायदा कुआं तैयार करने में छह महीने लगे. यानी छह महीने तक छैनी और हथौड़े से चाड़ा पाहन चट्टान काटते रहे और पानी निकालने के लिए उन्हें 20 फीट चट्टान काटनी पड़ी.

घर तक पाइप भी बिछाई

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इतना ही नहीं, इस कुंए में पाइप लगाकर उन्होंने अपने घर तक पानी की लाइन बिछा दी और बिना मोटर के घर तक पानी पहुंचा दिया. चाड़ा पाहन अपने लिए तो पानी लाए ही, अब पूरे गांव के लोग इस पाइप लाइन से पानी पीते हैं.

चाड़ा पाहन ने इसी चट्टान को काटा (फोटो-सत्यजीत)

चाड़ा पाहन का गांव खूंटी जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर पहाड़ों, जंगलों और चट्टानों के बीच स्थित है. आजादी के करीब 8 दशक बाद भी यहां बिजली और पानी नहीं पहुंचा है. यहां के लोगों को करीब 1.5 किलोमीटर दूर से पानी लाने जाना पड़ता है. चाड़ा पाहन दूसरों के खेतों में मजदूरी करते हैं. बाकी गांव वालों की तरह उन्हें भी दूर से पानी लाना पड़ता था.

इस बीच उनकी परेशानी और बढ़ गई जब चाड़ा की पत्नी बीमार पड़ गईं. अब उनके लिए डेढ़ किलोमीटर जाकर पानी लाना संभव नहीं था. इसी दौरान चाड़ा को पानी का सुराग मिल गया और उन्हें कुआं खोदने का विचार आया. धुन के पक्के चाड़ा ने चट्टान का सीना चीर कर पहाड़ों से पानी निकाल लिया.

दशरथ मांझी ऑफ झारखंड

बिहार के दशरथ मांझी और झारखंड के चाड़ा पाहन की कहानी मिलती-जुलती है. दोनों की पत्नि‍यां बीमार पड़ीं तो उन्होंने अपने जज्बे से एक मिसाल कायम कर डाली. चाड़ा के हौसले का लोहा उनके गांव वाले भी मानते हैं.

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फगुआ पाहन जैसे कई ग्रामीण बताते हैं कि कैसे चाड़ा ने छैनी और हथौड़े से नामुमकिन को मुमकिन कर डाला. चारा पाहन की पत्नी इतवारी अपने पति का शुक्रिया अदा करते हुए कहती हैं कि घर में नल खोलते ही पानी आ जाता है. वाकई अब आराम है.

चाड़ा के भाई के भाई सनिका पाहन ने बताया कि छह महीने तक पहाड़ों और जंगलों के बीच चाड़ा ने दिन रात एक कर दिया और अंतत: उन्हें सफलता मिली.

गांव में दो चापाकल, दोनों खराब

हालांकि, ये प्रशासन की विफलता है कि जिला मुख्यालय से महज 25 किमी दूर बिजली और पानी की पहुंच नहीं है, लेकिन चाड़ा पाहन ने आत्मनिर्भरता का नायाब नमूना पेश करके प्रशासन को भी सीख दी है.

पेयजल स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर इसे प्रशासन की असफलता नहीं मानते और चाड़ा पाहन से मिलने और मामले की जांच की बात करते हैं. उन्होंने बताया कि हर 100 लोगों की आबादी पर चापाकल लगाए गए हैं. इस गांव में भी दो चापाकल हैं लेकिन वर्षों से खराब पड़े हैं. मंत्री जी ये भी दावा करते हैं कि 2024 तक हर घर में नल से पानी उपलब्ध करवा दिया जाएगा.

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जल जीवन मिशन के तहत हर घर को नल से जल मुहैया कराना किसी चुनौती से कम नहीं लगता. ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत अभी तक महज 3.41 लाख ग्रामीण परिवारों तक ही पानी पहुंचाया जा सका है. अगले साल तक इस मिशन से 10 लाख परिवारों को जोड़ने के लिए सरकार मशक्कत कर रही है.

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मंत्री ने बताया कि विधायकों की अनुसंशा पर हर पंचायत में 5 हैंडपंप लगाए जा सकेंगे. इसके लिए 200 करोड़ रुपये का आवंटन भी किया गया है.

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