scorecardresearch
 

127 साल पुराने पलामू में पकती है राजनीति की खिचड़ी, किसी एक दल का कब्जा नहीं

पलामू की राजनीति में धुरंधर माने जानेवाले नेताओं के राजनीतिक रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे हैं. पलामू ने वह दौर भी देखा है जब लोकसभा चुनाव को लेकर उपजे विवाद के कारण डालटनगंज विधानसभा में उपचुनाव भी हो गया था. यहां राजनीति की खिचड़ी पकती है...

Advertisement
X
पलामू के बेतला नेशनल पार्क में स्थित है पलामू टाइगर रिजर्व.
पलामू के बेतला नेशनल पार्क में स्थित है पलामू टाइगर रिजर्व.

Advertisement

  • 127 साल पुराना है पलामू जिला
  • महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास
पलामू जिला का इतिहास 127 साल पुराना है. 1 जनवरी 1892 को पलामू को जिला घोषित किया गया था. इससे पहले 1857 के विद्रोह के बाद से यह डालटनगंज में मुख्यालय के साथ एक उपखंड था. 1871 में परगना जपला और बेलौजा को गया से पलामू में स्थानांतरित कर दिया गया था. पलामू का प्रारंभिक इतिहास किंवदंतियों और परंपराओं से भरा है. स्वायत्त जनजातियां शायद अतीत में क्षेत्र का निवास करती थीं. खरवार, उरांव और चेरो ने पलामू  पर शासन किया. पलामू का इतिहास मुगल काल से अधिक प्रामाणिक है. पलामू को मुगल पलून या पालून के नाम से भी जानते थे. आज के समय में पलामू की सीमा बिहार से छूती है. पलामू की स्थानीय भाषा नागपुरी है.

पलामू में जिले का मुख्यालय मेदिनीनगर है. इसके 22 प्रखंड हैं. ये हैं - मेदिनीनगर, चैनपुर, रामगढ़़, सतबरवा, लेस्लीगंज, पांकी, तलहसी, मनातू, पाटन, पंडवा, विश्रामपुर, नावा बाजार, पांडू, उंटारी, मोहम्मदगंज, हैदरनगर, हुसैनाबाद, छतरपुर, हरिहरगंज, नौडीहा और पिपरा. 2011 की जनगणना के अनुसार पलामू की आबादी 1,939,869 है. इनमें से 10.06 लाख पुरुष हैं और 9.33 लाख से ज्यादा महिलाएं हैं. जिले का औसत लिंगानुपात 928 है. जिले की 11.7 फीसदी आबादी शहरी और 88.3 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में रहती है. जिले की औसत साक्षरता दर 63.63 फीसदी है. पलामू में पनकी, डाल्टनगंज, बिश्रामपुर, छतरपुर, हुसैनाबाद विधानसभा सीटें हैं.

Advertisement

पलामू की राजनीतिः बनता-बिगड़ता रहा है खेल

पलामू की राजनीति में धुरंधर माने जानेवाले नेताओं के राजनीतिक रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे हैं. पलामू ने वह दौर भी देखा है जब लोकसभा चुनाव को लेकर उपजे विवाद के कारण डालटनगंज विधानसभा में उपचुनाव भी हो गया था. क्योंकि तब डालटनगंज के तत्कालीन विधायक इंदर सिंह नामधारी ने सिर्फ इसलिए विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि तब जदयू के शीर्ष नेतृत्व ने उनकी बात नहीं सुनी थी. लेकिन 12 वर्षों के बाद पलामू के राजनीतिक मैदान का स्वरूप पूरी तरह से बदला हुआ है. जिस भाजपा के लिए नामधारी ने अपनी विधायिकी दांव पर लगा दी, पार्टी से बगावत कर इस्तीफा दे दिया था. आज उसी का विरोध कर रहे हैं. अब इस साल उन्होंने घोषणा कर दी कि वे महागठबंधन के प्रत्याशी घुरन राम को समर्थन देंगे. 2007 में घुरन राम को गिरिनाथ सिंह ने दिल्ली पहुंचाया था. आज वही गिरिनाथ सिंह भाजपा के लिए खड़े हैं.  

2009 में नवजवान संघर्ष मोर्चा प्रमुख भानु प्रताप शाही ने कामेश्वर बैठा के लिए खुल कर काम किया था. तब बैठा को शाही ने कांग्रेस, झामुमो व नवजवान संघर्ष मोर्चा के प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा था. गिरिनाथ पलामू प्रमंडल में राजद के कमान संभाल रहे थे. वह हर हाल में कामेश्वर को रोकना चाहते थे. गिरिनाथ व भानु के रिश्तों में काफी तल्खी भी आ गई थी. भानु बैठा को दिल्ली में तो ले आए लेकिन इससे उनके राजनीतिक विरोधी बढ़ गए.  आज भानु और गिरिनाथ इस चुनाव में भाजपा के पक्ष में ही है.

Advertisement

पलामू का जातिगत गणित

  • अनुसूचित जातिः 536,382
  • अनुसूचित जनजातिः 181,208

पलामू में जनजातियां और उनकी मान्यताएं

नागपुरी भाषा यहां कि स्थानीय बोली है. पलामू के प्रमुख जनजातियों में खेरवार, चेरो, उरांव, बिरजिया और बिरहोर शामिल हैं. जनजातीय विश्वास और रीति-रिवाज के चलते लोग जंगलों को पवित्र मानते हैं. पलामू के जनजातीय समुदाय पवित्र वनों की सरना पूजा करते हैं. वे करम वृक्ष (एडीना कोर्डिफोलिआ) को पवित्र मानते हैं. वर्ष में एक बार करमा पूजा होती है. हाथी, कछुआ, सांप आदि अनेक जीव-जंतुओं की भी पूजा होती है. इन प्राचीन मान्यताओं के कारण सदियों से यहां की जैविक विविधता पोषित होती आ रही है. यहां रहने वाले खेरवार अपने-आपको सूर्यवंशी क्षत्रिय बताते हैं. अपना उद्गम अयोध्या से बताते हैं. करुसा वैवस्वत मनु का छठा बेटा था. उसके वंशजों को खरवार कहते हैं. वहीं, चेरो अपने वंश कि उत्पत्ति ऋषि च्यवन से मानते हैं. यहां पहले नक्सली समस्या काफी ज्यादा थी, लेकिन अब नियंत्रण में है.

पलामू की धार्मिक आबादी

  • हिंदूः 1,683,169
  • मुस्लिमः 238,295
  • ईसाईः 6,164
  • सिखः 734
  • बौद्धः 188
  • जैनः 284
  • अन्य धर्मः 5,681
  • धर्म नहीं बतायाः 5,354

63.63 प्रतिशत साक्षरता दर है पलामू जिले में, 7.13 लाख लोग कामगार हैं

पलामू की कुल साक्षरता दर 63.63 फीसदी है. आबादी के अनुसार 1,024,563 लोग साक्षर हैं. इनमें से 621,706 पुरुष और 402,857 महिलाएं हैं. अगर पुरुषों की साक्षरता दर 74.3 फीसदी और महिलाओं की 52.09 फीसदी है. जिले की 7.13 लाख लोग कामगार हैं.

Advertisement
  • मुख्य कामगारः 283,702
  • किसानः 68,895
  • कृषि मजदूरः 95,734
  • घरेलू उद्योगः 7,062
  • अन्य कामगारः 112,011
  • सीमांत कामगारः 429,473
  • जो काम नहीं करतेः 1,226,694

5 हजार साल पुराना पांडवों का भीम चूल्हा है पलामू में

झारखंड प्रांत का जंगलों-पहाड़ों से घिरा पलामू क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक-पौराणिक स्थलों से परिपूर्ण है. इसी क्षेत्र में हुसैनाबाद अनुमंडल का मोहम्मदगंज भी शामिल है. यहीं पर है पौराणिक भीम चूल्हा है. किवदंतियों के अनुसार यह वही 5 हजार साल पुराना चूल्हा है, जिस पर पांडवों के अज्ञातवास के दौरान भीम भोजन बनाया करते थे. कोयल नदी के तट पर शिलाखंडों से बना यह चूल्हा पांडवों के इस इलाके में ठहराव का मूक गवाह है. बगल में ही मोहम्मद गंज बराज है. भीम चूल्हा के पास में पहाड़ी के पास पत्थर की तलाशी हुई हाथी की मूर्ति भी है. जिसकी लोग पूजा भी करते है.

इसके अलावा यहां पर बेतला नेशनल पार्क हैं. यह 226 वर्ग किमी में फैला है. इसमें 175 प्रजातियों के पक्षी औऱ 40 प्रजातियों के स्तनधारी जीव रहते हैं. हाथी, सांभर, चीतल, बंदर, नीलगाय आदि. साथ ही यहां पर पलामू टाइगर रिजर्व भी है. यह करीब 923 वर्ग किमी में फैला है. यहां पर 44 बाघ हैं. इसके अलावा लोध झरना भी बहुत विख्यात है. यह झरना 468 फीट की ऊंचाई से गिरता है. यह झारखंड का सबसे ऊंचा झरना है. पलामू फोर्ट में दो किले हैं. एक पुराना और दूसरा नया. दोनों ही चेरो साम्राज्य के किले थे. इनकी बनावट मुगल स्थापत्य से मिलती जुलती है.

Advertisement

Advertisement
Advertisement