अगर आपने 2009 में रिलीज श्याम बेनेगल की फिल्म 'वेल डन अब्बा' देखी है तो आप कुएं के निर्माण में व्याप्त भ्रष्टाचार की एक कहानी देख चुके हैं. पर्दे की इस कहानी का असल जिंदगी में दोहराव या यूं कहे कि इसका पार्ट टू इन दिनों झारखंड में चल रहा है.
कुओं के निर्माण में मचे लूट और भ्रष्टाचार की इस कहानी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां बीते दो वर्षों में बनाए गए 95 हजार कुंओं में से 11 हजार जमीन के भीतर धंस गए हैं. मनरेगा के तहत बनाए गए इन सरकारी कुओं का निर्माण राज्य के कल्याण विभाग और REO द्वारा किया गया. आरोप है कि 2010-11 के बीच बनाए गए इन कुओं के खेल में करीब 180 करोड़ रुपये वारे-न्यारे हो गए है.
उदाहरण के तौर पर रांची के रातू इलाके के लहना पंचायत में मनरेगा के तहत बीते दो वर्षों में 25 कुएं बनवाए गए. भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े इन कुओं में से आज 10 कुएं या तो धंस गए हैं या अधूरे पड़े हैं. ये बानगी महज एक पंचायत की है. दरअसल, दो साल पहले बीजेपी की सरकार ने खेतों में बेहतर सिंचाई के लिए एक लाख कुआं बनाने की योजना धरातल पर उतारी थी. लेकिन आरोप है कि जिम्मेवार अफसरों ने कुएं के पानी से खेतों की प्यास बुझाने की बजाय अपनी सूखी जेब को गीला करना ज्यादा जरूरी समझा. ना सिर्फ अफसर बल्कि इस दौरान बिचौलिए भी हावी रहे और सूखे से पीड़ित किसानों के खेत बंजर के बंजर रह गए.
घटिया साम्रगी और जगह के चुनाव में हुई धांधली
खस्ताहाल कुओं का दंश झेल रहे किसानों आरोप है कि कुओं के निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया है. यही नहीं कुआं बनाने की जगहों के चुनाव में भी जमकर धांधली हुई है. इनमें कई कुएं ऐसी जगहों पर बनाए गए हैं, जहां से शायद ही किसी को कोई लाभ हो. यानी कागजी खानापूर्ति कर करोड़ों रुपये भ्रष्टाचार के गटर में बहा दिए गए.
कमिटी बनी, रिपोर्ट भी आई, लेकिन...
ऐसा नहीं है कि सरकार को इसकी खबर नहीं है. विधानसभा में कुओं का मामला उठने के बाद इस घोटाले की जांच के लिए एक विधानसभा कमिटी का गठन किया गया था. कमिटी ने इस ओर अपनी रिपोर्ट भी दी, जिसमें निर्माण से जुड़े विभागों पर कार्रवाई की बात कही गई. वहीं, सरकार इस पर अलग से जांच कर रही है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
क्या कहते हैं आंकड़ें
प्रदेश में 2011-12 में कुल 94689 कुएं बनाए गए थे. आंकड़ों के मुताबिक एक कुआं के निर्माण में एक लाख साठ हजार रुपये का खर्च आया. इस तरह सभी कुओं के निर्माण में करीब 15 अरब रुपये की लागत आई. अब महज दो साल बाद इनमें से लगभग 11 हजार कुएं धंस चुके हैं. आरोप है कि इस खेल में करीब 180 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है.
सोशल ऑडिट टीम का गठन नहीं
प्रदेश के लिए सबसे बड़ी हैरत की बात यह है कि यहां स्वतंत्र सोशल ऑडिट टीम का गठन अभी तक नहीं हुआ है. यही नहीं, राज्य में मनरेगा के कार्यों की क्वालिटी मॉनिटरिंग की भी कोई व्यवस्था नहीं है. झारखंड में भ्रष्टाचार और घोटाले का यह पहला मामला नहीं है. अब तक लूट, गबन और भ्रष्टाचार के सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें कुछ पर जांच भी चल रही है. लेकिन फिर भी इन मामलों में कमी नहीं आई है.