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बंद होने के कगार पर पलामू टाइगर रिजर्व

झारखण्ड में बाघों के संरक्षण को लेकर 1974 में शुरू हुआ पलामू टाइगर रिजर्व अब बंद होने के कगार पर है. पलामू के हैदरनगर के पास बेतला में चल रहे बाघों के लिए सुरक्षित अभ्यारण्य में प्रोजेक्ट को चलाने के लिए फंड का आबंटन नहीं हुआ है. ऐसे में इस प्रोजेक्ट को चलाने के लिए निगम अब वन विकास निगम से 40 करोड़ कर्ज लेने की सोच रहा है.

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झारखण्ड में बाघों के संरक्षण को लेकर 1974 में शुरू हुआ पलामू टाइगर रिजर्व अब बंद होने के कगार पर है. पलामू के हैदरनगर के पास बेतला में चल रहे बाघों के लिए सुरक्षित अभ्यारण्य में प्रोजेक्ट को चलाने के लिए फंड का आबंटन नहीं हुआ है. ऐसे में इस प्रोजेक्ट को चलाने के लिए निगम अब वन विकास निगम से 40 करोड़ कर्ज लेने की सोच रहा है.

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दरअसल इस प्रोजेक्ट के लिए पलामू स्थित मुख्य वन-संरक्षक एवं क्षेत्रीय निदेशक व्याघ्र परियोजना, वन प्रमंडल पदाधिकारी कोर एरिया और वन प्रमंडल पदाधिकारी बफर एरिया में 250 के लगभग कर्मी कार्यरत है. इस प्रोजेक्ट को पिछले 39 वर्षो से प्रति वर्ष विस्तार मिलता आ रहा है. लेकिन इस वित्तीय वर्ष में फंड का आबंटन नहीं होने के कारण टाइगर रिजर्व की आर्थिक स्तिथि बिगड़ गयी है. हैरत की बात है की इसमें कार्यरत सभी कर्मी अस्थाई है जबकि इसके बाद बने कई व्याघ्र परियोजना कार्यालयों के कर्मियों को स्थाई कर दिया गया है.

वैसे फंड की बाद छोड़ दे तो यह परियोजना महज सरकारी फंड के दुरूपयोग का किस्सा बनकर रह गयी है. घोर नक्सल प्रभावित इस क्षेत्र में बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिए इसके देख-रेख और संरक्षण के मद अब तक अरबों रुपये खर्च किये जा चुके है. लेकिन इस अभ्यारण्य में कितने बाघ मौजूद है इसके सही आंकड़े अबतक नहीं मिल पाए है. यहाँ के कर्मी नक्सलियो के भय से जंगल जाने से भी डरते है. ऐसे में जब जान के लाले पड़े हों तो बाघों की कौन पूछे. लेकिन कागजों में बाकायदा संरक्षण के मद में पैसो का खर्च दिखाया जा रहा है.

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सन 1974 में हुए पहले बाघ जनगणना में इनकी संख्या 22 बताई गयी थी जबकि 1984 में ये बढ़कर 68 हो गयी. जबकि 2004 आते-आते तक ये घट कर 38 रह गयी. RTI के तहत मांगी गयी जानकारी से यह सनसनीखेज खुलासा हुआ है कि वर्तमान में इनकी संख्या मात्र 2 है. बाकी बाघ कहाँ गए इस बाबत वन विभाग का जबाब और भी हैरतंगेज है. बकौल वन विभाग ये बाघ कहाँ गए ये बात सिर्फ भगवान जानता है. ये बातें RTI के तहत मांगी गयी जानकारी के WHERE GONE कालम में GOD KNOWS के रूप में दी गयी है.

दूसरी ओर इन बाघों के संरंक्षण के लिए खड़ी लम्बी फ़ौज के लिए हर साल अरबों रुपये फूंक दिए जा रहे है. जबकि असल में बाघों का कहीं नामो निशान नहीं है.दरअसल वन विभाग के जिस अफसर ने RTI के जरिए बाघों की संख्या के गड़बड़झाले को उजागर किया था. उनका ट्रान्सफर तक कर दिया गया. क्यूंकि RTI के जरिए उनके द्वारा हासिल की गयी बाघों की जानकारी उनके विभाग को ही भारी पड़ गई.

अफसरों की मिलीभगत और कागजी बाघ गणना की सहायता से करोडों रुपये डकारने की बात उजागर होते ही उनपर तबादले की गाज गिर पड़ी. RTI से मिली इस जानकारी के मुताबिक 1998 में बाघों की संख्या 53-55 की बताई गयी है जबकि 2012 में ये घटकर महज 2 रह गयी है. ये बाघ कहाँ गए इस बारे में जो रिमार्क्स दिए गए है वो अपने आप में और भी हैरतंगेज है .

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