जिन हाथों में देश के लिए कोहिनूर जितने का सपना था अब वो सपना, सपना ही रह गया. 13 साल की उम्र में अंडर-13 तीरंदाजी में गोल्ड मेडल जीतकर नेशनल चैम्पियन का खिताब हासिल करने वाली ममता अब बदहाली की जिंदगी जी रही हैं. घर की आर्थिक तंगी और बूढ़े मां-बाप को देखते हुए ममता एक छोटी सी दुकान लगाकर झालमुड़ी बेचने को मजबूर है. रोजाना 100-200 रुपये की आमदनी हो जाती है. इससे ममता किसी तरह अपना घर चला लेती हैं.
धनबाद के तेलीपाड़ा की रहने वाली ममता ने महज 13 साल की उम्र में अंडर-13 तीरंदाजी में गोल्ड मेडल जीतकर नेशनल चैम्पियन का खिताब हासिल किया था. धनबाद में लोग ममता को 'गोल्ड गर्ल' के नाम से जानने लगे. लेकिन आर्थिक हालात बिगड़ने के बाद ममता को झालमुड़ी बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा.
ममता का कहना है कि अंडर-13 तीरंदाजी में गोल्ड मेडल जीत चुकी हूं. नेशनल चैम्पियनशिप में भी फर्स्ट आई हूं. इसके अलावा कई और खेल में हिस्सा ले चुकी हूं. ममता ने कहा कि मैं भी खेलना चाहती थी, लेकिन किसी ने हमें मदद नही की.
घर की आर्थिक स्थिति भी दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी, तो मैंने कुछ काम करने की ठानी. फिर मैं एक दुकान में झालमुड़ी बेचने लगी. कहीं से थोड़ी मदद मिलती तो देश का नाम और रोशन करती.
वहीं, ममता की मां का कहना है कि ममता के तीर का निशाना कभी नहीं चूकता था. कई जगह खेल कर आई है. जितना टोकरी में चना देख रहे हैं, उस टोकरी में उतना ही मेडल जीत कर आई है. लेकिन वो सब अब किस काम का. मेरी बेटी पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. वो अब झालमुड़ी बेच रही है. कुछ तो करना पड़ेगा.