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झारखंड में लाल आतंक का कहर, पाकुड़ के एसपी समेत 6 पुलिस वालों को उड़ाया

एक बार फिर नक्सली हमला हुआ है. एक बार फिर नक्सलियों ने ये जता दिया कि वो जब चाहें जहां चाहें हमला कर सकते हैं. इस बार निशाने पर थे झारखंड के एक एसपी. उनके साथ चार और पुलिसकर्मी इस हमले में शहीद हो गए. करीब एक महीने में नक्सलियों ने तीसरी बार प्रशासन को खुलेआम चुनौती दी है.

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एक बार फिर नक्सली हमला हुआ है. एक बार फिर नक्सलियों ने ये जता दिया कि वो जब चाहें जहां चाहें हमला कर सकते हैं. इस बार निशाने पर थे झारखंड के एक एसपी. उनके साथ चार और पुलिसकर्मी इस हमले में शहीद हो गए. करीब एक महीने में नक्सलियों ने तीसरी बार प्रशासन को खुलेआम चुनौती दी है.

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लोहरदग्गा के एसपी अजय को भी मार दिया था नक्सलवादियों ने साल 2000 में

हमला दुमका से 35 किलोमीटर दूर काठीकुंड इलाके में किया गया. हमले के वक्त पाकुड़ के एसपी अमरजीत बलिहार दुमका में डीआईजी के साथ बैठक कर लौट रहे थे.

खबर है कि रास्ते में काठीकुंड के पास नक्सली पहले से घात लगा कर बैठे थे, बारूदी सुरंग भी बिछा रखी थी. जैसे ही पुलिस पार्टी वहां से गुजरी पहले बारूदी सुरंग से धमाका हुआ फिर नक्सलियों ने उन्हें चारो ओर से घेर कर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी.

पुलिस टीम जबतक संभल पाती, एसपी अमरजीत बलिहार शहीद हो चुके थे. उनके साथ 4 और पुलिस वाले नक्सलियों की गोली का शिकार हो चुके थे. जवाबी कार्रवाई पुलिस वालों ने भी की. इस मुठभेड़ में दो और जवानों को गोलियां लगी जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

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अमरजीत बलिहार मूलतः स्टेट पुलिस के अफसर थे और शानदार रेकॉर्ड के चलते प्रमोट होकर आईपीएस बनाए गए थे. 17 मई को ही उन्होंने पाकुड़ का कार्यभार संभाला था.

जिस कदर नक्सलियों ने पूरी प्लानिंग के साथ हमला किया था उससे शक तो ये भी है कि उन्हें पहले से एसपी की टीम की मूवमेंट की खबर होगी. नक्सलियों से मुकाबला कर चुके बीएसएफ के पूर्व अधिकारी इस हमले के पीछे सुरक्षा में चूक की गुंजाइश देख रहे हैं.

पाकुड़ पं बंगाल की सीमा से सटा जिला है और माना जाता है कि यहां नक्सली समानांतर सरकार चलाते हैं. झारखंड के लिए यह जिला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से बड़े पैमाने पर राजस्व आता है. यह जिला बीड़ी उद्योग और स्टोन क्रशिंग के लिए मशहूर है. यहां की काले रंग की स्टोन चिप का निर्यात भी किया जाता है. इसी उद्योग के इर्द गिर्द अवैध खनन और वसूली का भी कारोबार चलता है.

कोयला खान शुरू हुई तो पनपा नक्सलवाद

पाकुड़ आकार में छोटा जिला है और इसे साहेबगंज जिले से अलग कर 1994 में जिला बनाया गया था. यह झारखंड के संथाल परगना इलाके में आता है और यहां बहुतायत में संथाल जनजाति के लोग रहते हैं.
नब्बे के दशक में कोल खनन शुरू होने के बाद इस इलाके में नक्सली आंदोलन ने मजबूती पकड़ी. यह बात खुद पुलिस अपनी आधिकारिक वेबसाइट में स्वीकार करती है. नक्सली जिले के दो पुलिस थानों अमरापाड़ा और पाकुरिया में ज्यादा प्रभावी दखल रखते हैं. पुलिस के मुताबिक इलाके के नक्सली गैंग कोल खनन में लगे व्यापारियों से लेवी वसूलने का काम करते हैं.

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नक्सलियों का नाम इस हमले से पहले सिस्टर वाल्सा जॉन के मर्डर में सामने आया था. सिस्टर एक ईसाई मिशन के तहत यहां पढ़ाती थीं. केरल की रहने वाली सिस्टर का यहां जब मर्डर हुआ, तो कहा गया कि नक्सलियों का इसके पीछे हाथ था. हालांकि अभी तक हत्या की यह गुत्थी सुलझ नहीं पाई है.

इससे पहले नक्सलियों ने पनेम नाम की कोल माइनिंग कंपनी के सुरक्षा कर्मियों को मार दिया था और उनकी जेसीबी मशीन और डंफर भी जला दिए थे. बताया गया कि लेवी वसूलने के लिए खौफ पैदा करने को यह कार्रवाई की गई. इसके अलावा कुछ एक मौकों पर लैंड माइन बिछाकर पुलिस टुकड़ियों पर भी हमला किया गया.

नक्सली गतिविधियों को देखते हुए पुलिस के अलावा यहां रिजर्व बटालियन की भी एक कंपनी अमरापाड़ा इलाके में तैनात है.

करीब महीने भर में नक्सलियों का ये तीसरा हमला जता रहा है कि वो किस कदर बेखौफ हो चुके हैं. अभी पंद्रह दिन पहले ही 13 जून को बिहार के जमूई में नक्सलियों ने एक ट्रेन पर हमला किया था, इसमें एक यात्री और सुरक्षा बल के दो जवानों की हत्या हो गयी थी. उससे पहले 25 मई को भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के काफिले पर नक्सलियों ने बड़ा हमला किया था जिसमें महेंद्र कर्मा और विद्या चरण शुक्ल समेत 27 लोग मारे गए थे.

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नक्सली बार-बार जहां चाहें वहा हमला कर रहे हैं, और हर बार सरकार घटना की निंदा करती है, और कड़ाई से निपटने का दावा करती है. लेकिन तमाम सरकारी नीतियां हर हमले के बाद नक्सलियों के सामने घुटने टेकती नजर आती हैं.

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