झारखंड के आदिवासियों द्वारा पत्थलगड़ी आंदोलन चलाया जा रहा है. इस आंदोलन को लेकर 200 की संख्या में समर्थक झारखंड हाई कोर्ट के सामने पहुंच गए. इस दौरान समर्थकों ने संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत अपने अधिकारों का हवाला देते हुए शिलापट्ट लगाने की कोशिश की.
पत्थलगड़ी समर्थकों ने काफी देर तक डोरंडा स्थित अंबेडकर चौक पर नारेबाजी की. उनके हाथ में सफेद, काले और लाल रंग के झंडे भी थे. पुलिस को उन्हें हटाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. इसके बाद राज्यपाल से मुलाकात के आश्वासन के बाद वे शांत हुए.
पत्थलगड़ी समर्थक धनेश्वर टोप्पो ने बताया कि अब रांची में प्रमुख जगहों पर शिलापट्ट लगाया जाएगा. उन्होंने कहा कि पांचवी अनुसूची के तहत मिले अधिकार को आदिवासियों से कोई नहीं छीन सकता है. शासन, प्रशासन और नियंत्रण आदिवासियों के पास होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट के पास जुटे समर्थक पड़हा राजा व्यवस्था से जुड़े लोग हैं, जो खूंटी, पश्चिमी सिंहभूम, गुमला, सिमडेगा और रांची के रहने वाले हैं. धनेश्वर टोप्पो ने कहा कि वे गुमला के रहने वाले हैं और कुड़ुख नेशनल काउंसिल के अध्यक्ष भी हैं. अन्य पत्थलगढ़ी समर्थक सिमडेगा से बीरेंद्र जोजो, खूंटी से फोदो उरांव, एतवा मुंडा और सिमडेगा के कामडारा से पड़हा राजा राजीव इसका नेतृत्व कर रहे थे.
क्या है पत्थलगड़ी आंदोलन
अपने जमीनी हक की मांग को बुलंद करते हुए आदिवासियों ने यह आंदोलन शुरू किया था. यह आंदोलन 2017-18 में तब शुरू हुआ, जब बड़े-बड़े पत्थर गांव के बाहर शिलापट्ट की तरह लगा दिए गए. जैसा कि नाम से स्पष्ट है-पत्थर गाड़ने का सिलसिला शुरू हुआ जो एक आंदोलन के रूप में व्यापक होता चला गया. लिहाजा इसे पत्थलगड़ी आंदोलन का नाम दिया गया.
इस आंदोलन के तहत आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवी अनुसूची में आदिवासियों के लिए दिए गए अधिकारों को लिखकर उन्हें जगह-जगह जमीन पर लगा दिया. यह आंदोलन काफी हिंसक भी हुआ. इस दौरान पुलिस और आदिवासियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ था.