'डिजिटल इंडिया', 'मेक इन इंडिया' के नारे देश में जोर-शोर से सुने जाते हैं. हर दिन सैकड़ों किलोमीटर सड़क बनाने के दावे भी किए जाते हैं. विकास को अपना मूलमंत्र बताते राजनेता थकते नहीं, लेकिन झारखंड के लातेहार जिले के गांव नैना की तस्वीर बिल्कुल उलट है. यहां सड़क नहीं होने की वजह से लोगों की परेशानियों का ठिकाना नहीं है. अगर दुर्भाग्य से गांव में कोई बीमार पड़ जाए तो अस्पताल ले जाना पहाड़ पर चढ़ने जैसा होता है.
महुआडांड ब्लॉक के नैना गांव से सबसे नजदीकी अस्पताल 7 किलोमीटर दूर नेतरहाट में है. इस पूरे क्षेत्र को नक्सल प्रभावित माना जाता है. नैना गांव में अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उसे अस्पताल ले जाने के लिए गांव वालों के पास एक ही विकल्प होता है. और वो है बांस की टोकरी को डंडों से बांध कर बीमार को उसमें ले जाना. ये दृश्य देखकर लगता है कि इस इलाके में बुनियादी सुविधाओं को लेकर प्रशासन कितना बेसुध हैं. गांव के लोगों के मुताबिक कई बार बीमार को अस्पताल पहुंचाते हुए इतनी देर हो जाती है कि वो रास्ते में ही दम तोड़ देता है.
झारखंड को बने बेशक 16 साल से ज्यादा हो गए लेकिन लातेहार के नैना गांव की कहानी अपने आप में बहुत कुछ बयान करती है. सड़क जैसी बुनियादी सुविधा के अभाव के बारे में लातेहार के उपायुक्त प्रमोद कुमार गुप्ता से सवाल किया गया तो उन्होंने चुप्पी साध ली. बस इतना जवाब दिया कि आपने समस्या बताई है जिसकी जांच कराने के बाद आवश्यक कदम उठाए जाएंगे.
नैना गांव की हकीकत, उपायुक्त का जवाब ये बताने के लिए काफी है कि गांव-गांव में सड़क, पुल-पुलिया बनाने के दावों में कितनी सच्चाई है.