नोटबंदी का आफ्टर इफ़ेक्ट अब लोगों के सामने दिखने लगा है, जहां एक और नोटबंदी को लोग भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ एक अच्छी शुरुआत मान रहे हैं तो वहीं दूसरी और ग्रामीण जनता बेहाल हैं. क्योंकि कुछ ऐसे भी ग्रामीण है जिनके पास कैश नहीं है. ऐसे में मजबूरन इन ग्रामीणों को पुराने जमाने के वस्तु-विनिमय प्रणाली यानी सामान के बदले सामान की ओर लौटना पड़ रहा है.
सामान के बदले सामान
रांची के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाके का चुकरू गांव में रहने वाले ग्रामीण धान के बदले जरूरी सामान दुकानों से खरीदने में लगे हैं. दरअसल नोटबंदी के बाद से झारखंड के ग्रामीण इलाकों में नकदी की भारी कमी है. जिसकी वजह से ग्रामीण वस्तु विनिमय की प्राचीन प्रणाली अपनाने को विवश है, वहीं बहुत से ग्रामीणों के खाते भी नहीं हैं, क्योंकि ये अबतक सारा लेनदेन नगद ही करते चले आ रहे थे. ऐसे में इन्हें कभी बैंक खातों की जरुरत नहीं पड़ी.
बड़े नोटों की वजह से भारी दिक्कत
झारखंड के दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में वस्तु-विनिमय के ऐसे दृश्य आम हो चले हैं. इन इलाकों में धान, मडुवा और मकई के बदले ग्रमीण जरुरत का समान दुकानों से खरीद रहे है. दरअसल नोटबंदी के बाद से ही ग्रामीण इलाकों में नगदी की भारी कमी है. अगर नकदी है भी तो वो बड़े नोटों की शक्ल में है. ऐसे में छोटे-मोटे सामानों की खरीदारी में यह नोट नहीं चल पा रहे हैं. मजबूरन ग्रामीणों को घरों से अनाज लाकर आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी करनी पड़ रही है.