झारखंड का पारम्परिक लोकपर्व मंडा पूजा इस साल भी धूमधाम से मनाया जा रहा है. यह पर्व अच्छी बारिश, खेत-बारी और समृद्धि के लिए मनाया जाता है. इस पर्व के दौरान भक्त 7 से 9 दिन तक लगातार उपवास करने के बाद आग पर चलने और ऊंचाई पर पीठ पर लगे हुक के सहारे झूलते हैं. मंडा पर्व के भक्त आराध्य भगवान भोले शंकर की पूजा अर्चना करते हैं.
इस दौरान श्रद्धा और भक्ति का ऐसा नजारा दिखता है जिसमें बड़े तो बड़े, नन्हे बच्चे भी आग के दहकते अंगारों पर सिर के बल झूलते नजर आते हैं. उनका उद्देश्य भगवान भोले शंकर से मन्नत मांगना होता है. इस दौरान सभी अच्छी बारिश की कामना करते हैं ताकि घर में सुख-शांति बनी रहे और परिवार में खुशियां आएं.
मंडा पूजा का इतिहास भी काफी प्राचीन है. लोग बताते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत नागवंशी राजाओं के द्वारा की गई थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार झारखंड में मनाई जाने वाली मंडा पूजा भगवान भोले शंकर की पहली पत्नी सती के बलिदान की याद के रूप में मनाई जाती है. ये भक्त दहकते अंगारों पर बच्चों को भी सिर के बल झुलाते हुए निकल जाते हैं.
सभी भक्त इसे माता का आशीर्वाद मानते हैं. बहरहाल, श्रद्धा भक्ति के नाम पर मासूम बच्चों को भी दहकते अंगारों पर झूला झुलाना थोड़ा अमानवीय जरूर लगता है, लेकिन यह भी सच है कि भक्ति और श्रद्धा के मामले में तर्क की कोई जगह नहीं होती.