झारखंड सरकार के द्वारा चलाए जा रहे 'स्वच्छ झारखंड-स्वस्थ झारखंड' संकल्प को स्थानीय विधायकों ने जोर का झटका दिया है. दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन की राष्ट्रव्यापी मुहिम के तहत झारखंड में बनाए जा रहे व्यक्तिगत पारिवारिक शौचालयों यानि आइएचएचएल के निर्माण की गति काफी धीमी है.
राज्य में पिछले तीन सालों में विधायक निधि से नाममात्र के शौचालय बने हैं, जबकि प्रत्येक जनप्रतिनिधि को प्रतिवर्ष पचास लाख रुपये अपने विधानसभा क्षेत्र में शौचालय निर्माण के मद में व्यय करने हैं. बीते वित्तीय वर्ष 12 जिलों में विधायक निधि से एक भी आइएचएचएल का निर्माण नहीं किया गया. ये आंकड़े दुखद भी हैं और सोचनीय भी.
सरकार के आंकड़े बयान कर रहे हालत
राज्य सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की रिपोर्ट बताती है कि राज्य भर में वित्तीय वर्ष 2016-17 में विधायक निधि से महज 3590 व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण कराया गया है. वहीँ इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि राज्य के 12 जिलों के
जनप्रतिनिधियों ने तो विधायक निधि से एक रुपये की राशि भी इस मद में नहीं दी है.
असल में ये आंकड़े वैसे तो 2 मार्च 2016 तक के हैं, लेकिन आज तक इसमें इसमें कोई खास बदलाव नहीं आया है. व्यक्तिगत पारिवारिक शौचालयों के अपेक्षा कहीं-कहीं विधायकों की रुचि सामुदायिक शौचालयों में देखी गई.
मिले 41 करोड़ खर्च किए महज चार करोड़
राज्य में इस वक़्त एक मनोनीत विधायक समेत 82 विधायक हैं. इस लिहाज से इन जनप्रतिनिधियों को प्रतिवर्ष शौचालय निर्माण के लिए अपनी विधायक निधि से 40.50 करोड़ रुपये मुहैया कराने होते हैं. गौरतलब है कि इस प्रकार के एक शौचालय के
निर्माण की लागत 12000 रुपये आती है. इस लिहाज से माननीयों ने शौचालय निर्माण के मद में महज 4.30 करोड़ रुपये ही व्यय किए. यह आंकड़े इस मद में मिली राशि का दस फीसद भी नहीं हैं.
ऐसे में देखा जाय माननीय सिर्फ अपने कोष से ही पूरे राज्य में प्रतिवर्ष 33000 शौचालयों का निर्माण कर सकते थे, जबकि निर्मित हुए महज 3590. इनमें से भी 12 जिलों में विधायक निधि से एक भी व्यक्तिगत शौचालय नहीं बना. ये जिले हैं देवघर, धनबाद, दुमका, गिरिडीह, जामताड़ा, कोडरमा, लोहरदगा, पाकुड़ व सरायकेला-खरसावां, साहिबगंज, पूर्वी सिंहभूम और पश्चिम सिंहभूम.