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कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जब सरकारी सिस्टम लाचार होकर मौत का तमाशा देख रही थी. उस दौरान कई ऐसे लोग थे जो अपनी जान की परवाह किए बगैर लोगों की मदद कर रहे थे. रांची निवासी रवि अग्रवाल भी उन्हीं फरिश्तों में से एक हैं. रवि पेशे से एक ऑटो ड्राइवर हैं और स्थानीय कॉलेज में पढ़ते हैं. संक्रमण जब पीक पर था, लोगो को एम्बुलेंस तक नहीं मिल पा रही थी. ऐसे में रवि ने 93 मरीजों को नि:शुल्क अस्पताल पहुंचाया. यानी कि रवि ने इन मरीजों की मदद के लिए अपनी जान तो जोखिम में डाला ही, पैसे की भी परवाह नहीं की.
हालांकि जब रवि सुर्खियों में आये तो उन्हें डोनेशन मिला. डोनेशन में लगभग 96000 रुपये मिले थे. गूगल पे और फ़ोन पे पर जो मिला था उसे तो उन्होंने वापस कर दिया, लेकिन कुछ कैश भी मिला था जिसे किसी ने अलग अलग तरीकों से रवि तक पहुंचा दिया था. लगभग 4 हज़ार रुपये उनके पास बचा था. रवि ने इन पैसों का उपयोग पौधे खरीदने में किया. खरीदे गए पौधों को रवि ने उन मरीज़ों के बीच बांट दिया जो बीमारी के वक़्त इनके ऑटो में फ्री राइड ले चुके थे. दरअसल रवि ने यह संदेश देने की भी कोशिश की है कि पेड़ से ही पर्यावरण बचाया जा सकता है और उससे ऑक्सीजन पाया जा सकता है.
रवि अग्रवाल का घर इसी ऑटो से चलता है. घर मे तीन कमरे हैं और बूढ़े मां-बाप. उनकी चिंता किये बगैर और ऑटो के ईंधन पर आने वाले खर्च की परवाह नहीं करते हुए भी वे कोविड मरीजों की सेवा में लगे रहे. रवि दोपहर को उन लोगों के घर भोजन पहुंचाते थे जो मरीज होम आइसोलेशन में थे. रात को जब एम्बुलेंस मिलना मुश्किल होता था या मनमानी कीमत मांगी जाती तो ये खुद मरीज़ों को ऑटो पर बिठाकर अस्पताल छोड़ते थे वो भी मुफ्त.
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तमाम जोखिम उठाकर, रवि ने कुल 93 मरीज़ों को फ्री राइड दी थी. फिर क्या था कुछ नेक दिल इंसान ने भी इनकी मदद की ठानी और इन्हें पैसे डोनेट किए. हालांकि डोनेशन से जो पैसे आये, रवि ने उसे वापस कर दिया. क्योंकि वो यह मदद नि:शुल्क करना चाहता था. वहीं नकद पैसों से वो लोगों को पौधे बांट रहे हैं.
विकास लोहिया, रांची में कचहरी के पास रहते हैं. घर मे मां और पत्नी के साथ संक्रमित थे. कोई चारा नहीं मिलने पर विकास ने रवि की मदद ली. विकास ने बताया कि रवि ने यह जानते हुए भी उन्हें मुफ्त में अस्पताल पहुंचाया कि वे कोरोना संक्रमित हैं. विकास ने बताया कि उन्होंने पौधे भी लिए हैं.
कोरोना महामारी के बीच जहां कई लोग आपदा को अवसर बनाते हुए पैसा बनाने में जुटे थे, वहीं रवि जैसे निम्न आय पर जीने वाले लोग, मरीजों की मदद के लिए बिना किसी लालच के आगे भी आ रहे थे. जो वाकई एक मिसाल है.