गर्मी का मौसम अभी शुरू ही हुआ है, लेकिन झारखंड की नदियां अभी से ही सूख गयी हैं. अप्रैल के महीने में नदियों के सूखने की वजह से इस साल सूबे को गंभीर पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है. दरअसल झारखंड से होकर बहनेवाली बड़ी नदियों के घटते जल स्तर और अधिकतर सहायक नदियों के सूखने की वजह से हैंडपंप भी जवाब देने लगे हैं. कुछ एक जगहों पर 1500 फीट की गहराई पर भी पानी नहीं मिल पा रहा है.
कमजोर मानसून है इसकी वजह
बीते साल झारखंड में मानसून के दौरान औसत से कम वर्षा रिकॉर्ड की गई थी. इसकी वजह से तालाबों की हालत भी काफी खराब है. हालांकि जलसंकट को देखते हुए राज्य सरकार ने बीते साल पूरे झारखंड में 2 लाख डोभा यानी छोटे तालाबों का निर्माण कराया था, लेकिन समुचित वर्षा नहीं होने की वजह से ये तालाब खाली रह गए. ऐसे में राज्य सरकार भी जल संकट को लेकर गंभीर है और पेयजल आपूर्ति विभाग के कर्मियों की छुट्टी रद्द कर दी गई है.
गढ़वा और पलामू है सबसे अधिक प्रभावित
झारखंड के गढ़वा और पलामू जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. इन जिलों में बीते कई साल से लगातार सूखा पड़ा है. गढ़वा की सबसे प्रमुख दानरो नदी सूख चुकी है, जिससे गढ़वा शहर में जलापूर्ति की जाती है. पलामू की लाइफलाइन कोयल नदी समेत अमानत, तहले, मइला, सवरी जैसी बड़ी नदियां सूख गई हैं. सोन नदी का जलस्तर भी काफी नीचे पहुंच गया है. चतरा में जाम, बरैनी, निलांजन, बड़की नदी, सदुआरी नदी, सदाबह, दुवारी, सनगढ़वा आदि नदियां भी सूख चुकी हैं. गुमला में दक्षिणी कोयल, शंख, लावा, खटवा आदि नदियां सूख चुकी हैं. वहीं सिमडेगा की पालामाड़ा नदी तो पूरी तरह सूख चुकी है.
राज्य के दूसरे जिलों में भी स्थिति काफी दयनीय है. हजारीबाग में भी हहारो, बरकी, कोनार, सेवाने, पंडवा और अरघवा नदी का पानी खत्म हो गया है. वहीं केवटा, बराकर, चोढ़ी, बगरा, बुधवा नदी का जलस्तर भी बहुत कम रह गया. बरसोती नदी, पतालसूर व सरैया नदी भी सूख गई. लोहरदगा में कोयल और शंख नदी के सूखने से पेयजल के लिए हाहाकार मचा हुआ है.