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झारखंड: योजनाएं सिर्फ कागजों पर चल रहीं...भूख से मौत के मामले में HC की सोरेन सरकार को फटकार

कोर्ट ने कहा, कई इलाकों में अभी भी लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं. सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों पर चल रही हैं. कोर्ट ने सभ्य समाज के लिए यह शर्म की बात है कि एक महिला पेड़ पर दिन बिताने को मजबूर है. कोर्ट ने कहा, लोगों को राशन के लिए 8 किमी जाना पड़ रहा है. वहीं, गांव में पीने का स्वच्छ जल भी उपलब्ध नहीं है.

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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भुखमरी से परिवार के तीन सदस्यों की मौत का मामला
  • कोर्ट ने कहा- गांव के लोग अभी भी आदिम युग में जी रहे

झारखंड हाईकोर्ट (High Court of Jharkhand) ने भुखमरी से मौत के मामले में सुनवाई करते हुए राज्य की हेमंत सोरेन सरकार (Jharkhand government) को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि राज्य के सुदूरवर्ती इलाके में अभी भी लोग आदिम युग (primitive age) में जी रहे हैं. 

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इतना ही नहीं कोर्ट ने कहा, इन इलाकों में अभी भी लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं. सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों पर चल रही हैं. कोर्ट ने सभ्य समाज के लिए यह शर्म की बात है कि एक महिला पेड़ पर दिन बिताने को मजबूर है. कोर्ट ने कहा, लोगों को राशन के लिए 8 किमी जाना पड़ रहा है. वहीं, गांव में पीने का स्वच्छ जल भी उपलब्ध नहीं है. 

भुखमरी से मौत का है मामला?

झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नरायण प्रसाद की बेंच की यह सख्त टिप्पणी झारखंड स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी (JHALSA) की रिपोर्ट पर आई. कोर्ट ने राज्य सरकार को इस रिपोर्ट पर विस्तृत जवाब दाखिल करने के लिए कहा है. इतना ही नहीं कोर्ट ने समाज कल्याण सचिव को 16 सितंबर को पेश होने के निर्देश दिए. इस मामले की अगली सुनवाई 16 सितंबर को होनी है. 

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दरअसल, बोकारो जिले के कसमार में भूखल घासी की पिछले साल कथित तौर पर भूख से मौत हो गई. इसी तरह 6 महीने बाद उसकी बेटी और बेटे की भी मौत हो गई. मीडिया में इस खबर के सामने आने के बाद कोर्ट ने इस मामले में स्वता संज्ञान लिया था. कोर्ट ने इस मामले में सरकार से अपना पक्ष रखने के लिए कहा था. साथ ही कोर्ट ने JHALSA से सरकारी योजनाओं की ग्राउंड रिएलिटी की रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा था. 

भूख से किसी की मौत नहीं हुई

इस पर राज्य सरकार ने कोर्ट में कहा है कि झारखंड में भूख से किसी की मौत नहीं हुई. परिवार के तीन सदस्यों की मौत बीमारी से हुई. वहीं JHALSA ने कोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट में सिंहभूम जिले के बोरम की एक महिला का जिक्र किया, जो पेड़ पर रहने के लिए मजबूर है. कोर्ट ने इस मामले को शर्म की बात कहते हुए कहा, हम उनके साथ मानवों की तरह नहीं बल्कि जंगली की तरह व्यव्हार कर रहे हैं. जबकि जंगल उन्हीं का है. वहीं से खनिज निकाला जा रहा है. हम उन्हें इसके बदले में कुछ नहीं दे रहे.
 
योजनाएं सिर्फ कागज पर चल रहीं

बेंच ने कहा, सरकार आंखे मूंद लेगी तो कुछ नहीं होगा. आप कहते रहते हैं कि हम कल्याणकारी राज्य हैं, जबकि हकीकत यह है कि सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों पर चल रही हैं. धरातल पर कोई काम नजर नहीं आ रहा है. सरकार को सोचना होगा. 

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