रघुवर दास सरकार के द्वारा राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू की सहमति के लिए भेजे गए विवादित CNT-SPT संशोधन एक्ट को लौटा दिया है. दरअसल इस एक्ट में किये गए संशोधनों का विपक्षी दल पुरजोर विरोध कर रहे थे. वहीं पूरे राज्य में इसे लेकर टकराव की स्थिती बन गयी थी और राज्य की आदिवासी जनता इसके विरोध में सड़कों पर उतर गई थी. वहीं राज्यपाल के इस कदम की विपक्षी दलों ने पुरजोर सराहना की है और इसे लोकतंत्र की जीत बताया है.
आदिवासी हितों की रक्षा हुई है
नेता प्रतिपक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल को धन्यवाद देते हुए कहा कि राज्यपाल के इस कदम ने साबित कर दिया की आदिवासियों के हित में सोचनेवाली आदिवासी राज्यपाल राजभवन में हैं. इस कदम से राज्य के मौजूदा विस्फोटक माहौल पर मरहम लगा है . वहीँ उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार दोबारा बिल लाने का दुस्साहस नहीं करें , ऐसा करने पर पहले से ज्यादा विरोध होगा. गौरतलब है कि बीते शीतकालीन सत्र में सरकार ने विपक्षी दलों के भारी विरोध और हंगामे के बीच इस संशोधन बिल को सदन से पारित करवाया था . लेकिन इसका विरोध करते हुए विपक्षी दलों ने राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक अपनी गुहार लगाते हुए अपनी आपत्तियां दर्ज कराई थी .
दरअसल CNT - SPT एक्ट आदिवासियों की भूमि के लिए बनाया हुआ एक कानून है . पहले यह प्रावधान था कि अनुसूचित जनजाति के भूमि का उपयोग खान और उद्योग के लिए किया जाता था और इसके लिए कमिश्नर की मंजूरी जरूरी थी . लेकिन इस बिल के पास होने के बाद अब इस जमीन का उपयोग अन्य योजना जैसे आधारभूत संरचना, सड़क, ऊर्जा के लिए ट्रांसमिशन लाइन, परिवहन, संचार के लिए भी किया जा सकेगा. अगर किसी काम के लिए अनुसूचित जनजाति की जमीन ली जाती है तो उसका उपयोग पांच साल के अंदर अनिवार्य रूप से करना होगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह जमीन जिस परिवार से ली गई है, उसे वापस कर दी जाएगी, साथ ही जमीन के बदले में दिया गया मुआवजा भी वापस नहीं होगा.