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पानी की कमी झारखंड के औद्योगिक विकास में बन सकती है रोड़ा

खनिज संसाधनों से भरपूर झारखंड में पानी की किल्लत प्रदेश की औद्योगिक विकास की राह में रोड़ा बन सकती है. राज्य सरकार की जल उपलब्धता के आंकड़ों की मानें तो झारखंड में उद्योगों के लिए पर्याप्त पानी ही नहीं है.

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दक्षिण कोयल नदी
दक्षिण कोयल नदी

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खनिज संसाधनों से भरपूर झारखंड में पानी की किल्लत प्रदेश की औद्योगिक विकास की राह में रोड़ा बन सकती है. राज्य सरकार की जल उपलब्धता के आंकड़ों की मानें तो झारखंड में उद्योगों के लिए पर्याप्त पानी ही नहीं है. दूसरी तरफ सरकार ने मोमेंटम झारखंड का आयोजन कर देश-विदेश के निवेशकों को झारखंड में निवेश करने का न्योता दिया है.

राज्य में पर्याप्त खनिज संपदा को देखते हुए सिर्फ इंडस्ट्री के क्षेत्र में ही 121 एमओयू हुए हैं. ऐसे में उद्योगों के लिए हुए दो लाख करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्तावों को धरातल पर उतारने की राह में पानी की कमी आड़े आ सकती है.

मांग के मुताबिक नहीं है पानी
दरअसल राज्य में जल बंटवारे के तहत उद्योगों के लिए जितने पानी का आवंटन किया गया है. वर्तमान में मांग उससे कहीं अधिक की है. अगर मौजूदा उद्योगों की डिमांड की बात करें, तो उन्हें 4338 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी चाहिए, जबकि महज 3779 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही मिल रहा है. जाहिर है नए उद्योग लगेंगे तो उन्हें पानी भी चाहिए. ऐसे में ये पानी कहां से आएगा इसे लेकर जल संसाधन विभाग माथापच्ची में जुटा है.

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राज्य की नदियों से और उम्मीद नहीं
राज्य की दो सबसे बड़ी नदियों सुवर्णरेखा और दामोदर नदी से अब और पानी की उम्मीद नहीं की जा सकती. झारखंड की सभी प्रमुख नदी बेसिनों की बात करें तो इनमें सुवर्णरेखा, खरकाई, दामोदर और उसकी सहायक नदी बराकर, उत्तर कोयल, दक्षिण कोयल, गुमानी, अजय मयूरकाक्षी प्रमुख हैं. दामोदर से उद्योगों को अधिकतम 721 एमसीएम पानी मुहैया कराया जा सकता है, जबकि 304 एमसीएम पानी पूर्व में ही आवंटित किया जा चुका है.

ऐसे में अगर इस नदी की पेंडिंग डिमांड की पूर्ति की जाए तो आंकड़ा ऋणात्मक हो जाता है. यही हाल सुवर्णरेखा का भी है. सुवर्णरेखा से उद्योगों को अधिकतम 1032 एमसीएम पानी दिया जा सकता है. वहीं 177.87 एमसीएम पानी पूर्व में ही आवंटित किया जा चुका है, जबकि मौजूदा डिमांड उसकी शेष बची क्षमता 854.3 एमसीएम से कहीं अधिक की है.

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