जाको राखे सांइयां मार सके ना कोय...ये कहावत शनिवार सुबह बालाघाट में उस वक्त सच हो गई जब पानी के तेज बहाव में लगभग 10 घंटे तक फंसे 2 मछुआरों का जिला प्रशासन और गोताखोंरों ने रेस्क्यू कर लिया. बालाघाट जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर रामचंद्र और शिवा नाम के दो युवक शुक्रवार की रात बांध में मछली पकडऩे गए थे, लेकिन बिना किसी पूर्व सूचना के भीमगढ़ जलाशय से अचानक पानी छोड़े जाने के कारण दोनो ही तेज बहाव के बीचो बीच फंस गए.
10 घंटे चला रेस्क्यू ऑपरेशन
गांव वालों को जैसे ही बांध के पास दो लोगों के फंसे होने की सूचना मिली तो पुलिस को सूचना दी गई. रात तीन बजे करीब लामटा पुलिस और फिर उसके बाद बालाघाट रेंज के आईजी दिनेश चंद्र सागर मौके पर पहुंचे. आईजी के निर्देश पर गोताखोरों और होमगार्ड के जवानों की टीम को मौके पर बुलाया गया और रात को ही रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया गया. बचाव का काम रात तीन बजे से लेकर शनिवार की दोपहर 1 बजे यानि पूरे 10 घंटे तक चला. तेज लहरों से बच कर आए युवकों ने बताया कि वो जब बांध में उतरे थे तो पानी का बहाव ना तो इतना तेज था और ना ही वहां इतना पानी था. लेकिन जिसे किनारा समझ कर वो मछली मारने बैठे थे दरअसल बांध का वो हिस्सा संजय सरोवर परियोजना से अचानक पानी छोड़े जाने के कारण लबालब हो गया.
किसी तरह खुद को सुरक्षित बचाने की कोशिश करते हुए दोनो युवक बांध की एक उंची चट्टान पर जाकर बैठ गए. दोनों को लहरों के बीच में से निकालने के लिए रस्सी और लाइफ जैकेट के साथ होमगार्ड और गोताखोंरों का दल मौके पर पहुंचा और फिर रस्सी के सहारे दोनों युवकों को धीरे-धीरे किनारे पर लाया गया.
पानी छोड़े जाने की सूचना नहीं थी: आईजी
बालाघाट रेंज के आईजी दिनेश चंद्र सागर की मानें तो बांध से पानी छोड़े जाने की कोई पूर्व सूचना नहीं थी. जिसके कारण संबंधित क्षेत्र में जानकारी के अभाव में दो युवक मछली पकडऩे बांध में गए थे और अचानक पानी बढ़ जाने से उसमे फंस गए. आगे ये सुनिश्चित किए जाने का निर्देश दिया गया है कि इस तरह पानी छोड़े जाने की सूचनाएं पहले ही मिले ताकि इस तरह के हादसों को टाला जा सके.
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं
आपको बता दें कि बालाघाट में हुई ये घटना मध्यप्रदेश की कोई पहली घटना नहीं है. दरअसल पूरे मध्यप्रदेश में कई छोटे बड़े बांध हैं, जिनमें बारिश का पानी जमा होता है और जैसे ही पानी उनके कैचमेंट एरिया में खतरे के निशान से उपर जाता है बांध के गेट खोल दिए जाते हैं. लेकिन पर्याप्त कार्डिनेशन और सूचनाओं के अभाव में अक्सर इस तरह के हादसे होते हैं, जिसमें कई लोगों की जान भी जा चुकी है.