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विधानसभा चुनाव: बीजेपी के विज्ञापन से कांग्रेस को आया गुस्सा, चुनाव आयोग में की शिकायत

मध्यप्रदेश में लगातार 15 सालों से सत्ता में बैठी बीजेपी ने चुनाव में एक बार फिर शिवराज पर भरोसा जताया है और इसलिए विज्ञापनों से लेकर प्रचार सामग्री तक हर जगह शिवराज सिंह चौहान का चेहरा दिख रहा है.

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इन व‍िज्ञापनों पर हो रहा व‍िवाद (Photo:aajtak)
इन व‍िज्ञापनों पर हो रहा व‍िवाद (Photo:aajtak)

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मध्यप्रदेश में लगातार शिवराज के नाम पर बीजेपी को घेरने में लगी कांग्रेस ने अब विज्ञापनों पर होने वाले खर्चे के ज़रिए शिवराज पर हमला बोला है. कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत की है कि शिवराज के नाम और फोटो से प्रचार अगर हो रहा है तो क्यों नहीं उसका खर्चा शिवराज के निजी खर्चे में जोड़ा जाए.

'माफ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज'...इन्हीं विज्ञापनों पर फिलहाल कांग्रेस को गुस्सा आ रहा है. कांग्रेस लीगल सेल के अध्यक्ष अजय गुप्ता का आरोप है कि मध्यप्रदेश के ज्यादातर अखबारों में रोज छप रहे इन विज्ञापनों में साफ तौर पर शिवराज सिंह चौहान के चेहरे और नाम को तवज्जो दी जा रही है जबकि वो खुद एक प्रत्याशी हैं. ऐसे में बीजेपी के साथ साथ इन विज्ञापनों से शिवराज का भी प्रचार हो रहा है.

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11 नवम्बर से छप रहे इन विज्ञापनों का खर्चा यदि जोड़ा जाए तो वो 28 लाख रुपये की चुनावी खर्च सीमा को पार कर जाएंगे और इसलिए कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत कर शिवराज के और विज्ञापन देने पर रोक लगाने की मांग की है.

बीजेपी ने चुनाव में एक बार फिर शिवराज पर भरोसा जताया

दरअसल, मध्यप्रदेश में लगातार 15 सालों से सत्ता में बैठी बीजेपी ने चुनाव में एक बार फिर शिवराज पर भरोसा जताया है और इसलिए विज्ञापनों से लेकर प्रचार सामग्री तक हर जगह शिवराज सिंह चौहान का चेहरा दिख रहा है.

इस बारे में जब मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी व्ही एल कांताराव से बात की तो उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग के एक सर्कुलर के मुताबिक यदि उम्मीदवार पार्टी के स्टार कैम्पेनर सूची में भी शामिल है तो चुनावी प्रचार का खर्चा उसके निजी खाते में नही जोड़ा जाएगा. हालांकि उन्होंने माना कि कांग्रेस की शिकायत की जांच की जाएगी.

वहीं, कांग्रेस द्वारा की गई शिकायत से बीजेपी आगबबूला है. बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कांग्रेस से पूछा कि राहुल गांधी 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान पोस्टरों से गायब रहेंगे क्या? कुल मिलाकर देखा जाए तो इस बार चुनाव में वैसे भी जमीनी मुद्दे अब तक गायब ही रहे हैं. राजनीतिक दल कभी गाय, कभी आरएसएस तो कभी विज्ञापन पर ही एक दूसरे से उलझे हुए हैं.

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