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कैंसर पीड़ित पति पर पत्नी ने किया भरण पोषण का केस, कहा-पैसे नहीं हैं तो अपनी किडनी बेचो

मध्य प्रदेश के भोपाल के कुटुम्भ न्यायलय में तलाक और भरण पोषण के लिए एक ऐसा केस आया जिसमें पत्नी ने अपने कैंसर पीड़ित पति से भरण पोषण के लिए यहां तक कह दिया कि भले ही अपनी किडनी बेचो पर मुझे खर्च दो.

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स्टोरी हाइलाइट्स
  • भोपाल फैमिली कोर्ट की काउंसलर सरिता रजानि ने बताया पूरा मामला
  • कोर्ट का आदेश हो चुका है कि पति 3000 हजार रुपये का भरण पोषण का दे

वक़्त के साथ रिश्तों की महत्ता में भी कई बदलाव आ रहे हैं, लोगों के व्यवहार में तेज़ी से हो रहे परिवर्तन रिश्तों के मूल को भी धीरे-धीरे ख़त्म करते जा रहे हैं. इसका जीवंत उदहारण सामने आया मध्य प्रदेश के भोपाल से. जहां कुंटुम्ब न्यायलय में तलाक और भरण-पोषण का एक ऐसा केस आया जिसमें पत्नी ने अपने कैंसर पीड़ित पति से भरण पोषण के लिए यहां तक कह दिया की भले ही अपनी किडनी बेचो पर मुझे खर्च के पैसे दो.

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सुनने में ये बात भले अलग लगे लेकिन ये सच है, भोपाल फैमिली कोर्ट की काउंसलर सरिता रजानि ने बताया कि एक महिला ने अपने पति के विरुद्ध भरण-पोषण का केस भोपाल न्यायालय में दाखिल किया है. वह परामर्श के लिए मेरे पास आया. पति-पत्नी से बातचीत के दौरान पता चला पति कैंसर पीड़ित है और पिछले 4 साल से उसे रीड की हड्डी का कैंसर है.

वहीं, पति कुछ कमाने में सक्षम नहीं है क्योंकि उसकी कीमोथेरेपी चल रही है. पति पत्नी के बीच में इसी बात को लेकर झगड़ा हुआ. पति बीमार रहता था तो कमाने में सक्षम नहीं था तो पति अपने पिता के घर चला गया. ऐसी स्थिति में जब पति को जीवनसाथी की बहुत ज्यादा जरूरत थी. उस समय पत्नी ने उसे घर से निकाल दिया. अब पत्नी यह चाहती है कि इस स्थिति में भी वह उसे भरण-पोषण दे. जबकि भरण-पोषण कर पाने में वह सक्षम नहीं है.

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कोर्ट की तरफ से आदेश हो चुका है कि पति 3000 हजार रुपये भरण पोषण का दे जिसे भी वह लगातार नहीं दे पा रहा है. इसकी वजह से रिकवरी का सूट फाइल हो सकता है. उसमें कोई समाधान करने के लिए निराकरण करने के लिए जब मेरे पास फाइल आई तो पति ने बताया कि पत्नी जिस मकान में रह रही है वह मकान मेरा है. 

पति का कहना है कि अपने बेटे के नाम पर आजीवन भरण पोषण के लिए मैं मकान दे रहा हूं. मैं अपना जीवन यापन कैसे भी कर लूंगा पर पत्नी की यह ज़िद है कि आप बच्चे के नाम पर फिक्स डिपॉजिट दीजिए तब मैं यह केस वापस लूंगी, नहीं तो केस वापस नहीं लूंगी. 

सरिता रजानि का कहना है कि मैंने पत्नी को समझाया कि पति की 2 महीने या 4 महीने में मृत्यु भी हो सकती है. ऐसे में उसकी पत्नी ने कहा, 'मर जाएगा तो ओके है लेकिन अभी तो पैसे चाहिए.' पति ने कहा, 'क्या खुद को बेच दूं, तो पत्नी ने कहा, 'खुद को मत बेचो अगर बेचना ही चाहते हो तो अंग बेचो. आप अपनी किडनी बेच दो. दो लाख रुपये में बिकवा देती हूं. आपकी किडनी से किसी और को जीवन मिल जाएगा. आपके बच्चे को भरण पोषण की राशि मिल जाएगी. वैसे भी मरने वाले हो तो मरते हुए किसी का भला कर जाओ.

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सरिता बताती हैं, 'जब मैंने पत्नी की बातें सुनी तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि एक व्यक्ति क्या आपका पति है, एक बच्चे का पिता है और आप अपने बच्चे के सामने ही उसे इस तरीके से शब्द बोल रहे हैं. एक कितना गहरा आघात उसके मन पर लगता होगा जिस बीमारी से वह गुजर रहा है. इस समय हमें संवेदना वाला व्यवहार करना है.'

सरिता का कहना है कि इसके बाद भी पत्नी संवेदनहीनता के साथ बार-बार बोलती रही कि चलो, मेरी गाड़ी पर बैठो. मैं लेकर चलती हूं. देखो, मैं 2 घंटे में तुम्हारी किडनी बिकवा दूंगी लेकिन मुझे दो लाख रुपए दे दो. सरिता का कहना है कि इस तरह का हमें व्यवहार देखने को मिलता है जो सोचने पर मजबूर करती है कि क्या समाज वाकई इतनी तेजी से परिवर्तित हो रहा है. हमारा रिश्तों पर से विश्वास ही उठ जाता है.

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