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BJP संगठन में बदलाव, छलका प्रभात झा का दर्द, खड़े हुए कई सवाल

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल को संघ ने वापस बुला लिया है और उनकी जगह अब बीएल संतोष को राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बनाया गया है. बीजेपी में हुए इस नए बदलाव के बाद पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा का दर्द छलक उठा है.

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बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा (फोटो-india Today)
बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा (फोटो-india Today)

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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल को संघ ने वापस बुला लिया है और उनकी जगह बीएल संतोष को राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बनाया गया है. बीजेपी में हुए इस नए बदलाव से लगता है कि पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा खुश नहीं है. उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट कर अपना दर्द बयां किया है, जिसे लेकर सियासी गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं.

प्रभात झा ने ट्वीट करके कहा कि किसी के सम्मान के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए, क्योंकि कल यह आपके साथ भी हो सकता है. अच्छा 'संगठक' वही होता है जो हर व्यक्ति को काम में जुटा ले. यही नहीं प्रभात झा ने एक अन्य ट्वीट में कहा कि जिम्मेदारी का मतलब 'मैं ही हूं' का भाव नहीं होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि कि आप जो नहीं हैं, वैसा बनने के लिए कोशिश करें लेकिन नाटक नहीं. झा ने इसके साथ ही लिखा है कि दूसरों को कष्ट देने वालों को जब खुद कष्ट होता है तो उसे अपनी गलती समझ आती है. हालांकि उन्होंने अपने ट्वीट में किसी का नाम नहीं लिया है. ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर प्रभात झा ने ये ट्वीट किसको लेकर किए हैं.

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हालांकि प्रभात झा ने इन सभी ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अलावा मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और राष्ट्रीय सदस्यता प्रभारी शिवराज सिंह चौहान को भी टैग किया है.

प्रभात झा ने ट्वीट कर कहा कि दूसरों को हार्दिक कष्ट देने वालों को जब खुद हार्दिक कष्ट होता है, तभी उसे अपनी गलती समझ में आती है. साथी ही आगे कहा कि 'अपने काम पर विश्वास रखें'. वे लोग सदैव असफल होते हैं, जो खुद भी काम नहीं करते और किसी को करने नहीं देते. 'जाही विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए' के भाव को समझकर अपना कार्य करना चाहिए.

बता दें कि प्रभात झा भले ही राष्ट्रपीय उपाध्यक्ष के पद पर हैं, लेकिन लंबे समय से बीजेपी में साइड लाइन चल रहे हैं. उन्हें अपेक्षा के अनुरूप तवज्जो नहीं मिली थी. लोकसभा चुनावों में तो उन्हें पार्टी दफ्तर में ही बैठने के लिए कह दिया गया था.

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