मध्य प्रदेश की राजधानी में बीजेपी की सबसे मजबूत सीट माने जाने वाली गोविंदपुरा विधानसभा में कार्यकर्ताओं ने बगावत कर दी है. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर इस सीट से बीते 10 बार से विधायक हैं. कार्यकर्ताओं की बगावत के पीछे गौर का वंशवाद अहम वजह है.
चुनाव से ठीक पहले बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर को टिकट दिए जाने की आशंका से कार्यकर्ता निराश हैं और कार्यकर्ता खुद की अनदेखी करने का आरोप लगा रहे हैं.
मंगलवार को गोविंदपुरा विधानसभा सीट के शक्ति नगर में बीजेपी नेताओं को सद्बुद्धि देने के लिए सुंदरकांड का आयोजन किया गया. टिकट वितरण में जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने के लिए बीजेपी आलाकमान तक इस संदेश को पहुंचाना भी मकसद था.
कार्यकर्ताओं के निशाने पर बाबूलाल गौर और उनकी बहू और पूर्व महापौर कृष्णा गौर थीं. गोविंदपुरा में गौर परिवार के वंशवाद और परिवारवाद को मिटाने के लिए सुंदरकांड का पाठ किया गया.
दरअसल गोविंदपुरा सीट भोपाल में बीजेपी का सबसे मजबूत गढ़ मानी जाती है क्योंकि यहां बीते 10 बार से बाबूलाल गौर विधायक बनते आ रहे हैं और इस बार के चुनाव में उनकी दावेदारी मजबूत मानी जा रही है.
हालांकि, उम्र को देखते हुए अगर बीजेपी बाबूलाल को टिकट नहीं देती है तो उनकी बहू कृष्णा गौर फिलहाल टिकट की दौड़ में सबसे ऊपर हैं. इसी आशंका से जमीनी कार्यकर्ता नाराज हैं.
कार्यकर्ताओं का कहना है सालों तक पार्टी की सेवा करने के बाद जब मेवा बंटने की बारी आती है तो परिवारवाद हावी हो जाता है. कार्यकर्ताओं के मुताबिक सालों-साल से पार्टी के लिए पसीना बहा रहे गोविंदपुरा विधानसभा के कार्यकर्ता इस बात से परेशान हैं कि बीते 10 चुनाव से यहां बाबूलाल विधायक हैं और इस साल होने वाले चुनाव में उनकी बहू को टिकट मिलता है तो सालों का इंतजार और लंबा खिंच जाएगा.
वहीं कमलनाथ के फेक फोटो वाले ट्वीट और दिग्विजय सिंह का वीडियो वायरल होने के बाद बैकफुट में बैठी कांग्रेस को वंशवाद के बहाने बीजेपी पर हमला करने का मौका मिल गया है.
कांग्रेस लगे हाथ बीजेपी के उन युवराजों पर निशाने साधने में जुट गई है. जो अपने परिवार की राजनीतिक परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता माणक अग्रवाल ने बीजेपी को वंशवाद की फैक्ट्री बताया और कहा कि अनुराग ठाकुर, पंकज सिंह और प्रवेश साहिब सिंह वर्मा इसके सबसे ताजा उदाहरण हैं.
वहीं बीजेपी ने पार्टी में वंशवाद को नकारा है और कहा कि टिकट हमेशा से ही कार्यकर्ताओं को मिलती रही है और इसलिए इस बार भी चुनाव में दिल्ली से जब टिकट वितरण होगा तो सबसे ज्यादा तवज्जो जमीनी कार्यकर्ताओं को ही दी जाएगी.
चुनाव से पहले टिकट वितरण में कार्यकर्ताओं की नाराजगी लगभग सभी दलों में अब आम हो चली है और माना जा रहा है कि टिकटों की घोषणा के बाद ये नाराजगी और सिरफुटव्वल और बढ़ सकती है.