कमलनाथ कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं. मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से पहले वे 9 बार लोकसभा के लिए चुने गए. वे लोकसभा में सबसे सीनियर लीडर हैं. अपने पॉलिटिकल करियर में वे सिर्फ एक बार ही इलेक्शन हारे हैं. इस हार का कारण बड़ा दिलचस्प है. दरअसल, ये हार उन्हें इसलिए मिली कि उन्हें दिल्ली के एक खास बंगले को खाली न करना पड़े. अब कमलनाथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं. ऐसे में वे बंगले को खाली करेंगे या फिर कोई और तरीका निकालेंगे, ये देखने वाली बात होगी.
4 बार लगातार चुनाव जीतने के बाद भी कमलनाथ को 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद कांग्रेस पार्टी ने टिकट नहीं दिया. तब कमलनाथ ने पत्नी अलकानाथ को चुनाव लड़ाया. इस इलेक्शन में उनकी पत्नी जीत गई थीं. लेकिन उसके बाद कमलनाथ को दिल्ली में सांसद न रहने के कारण लुटियंस जोन वाला बंगला खाली करने का नोटिस मिला. कमलनाथ ने बहुत कोशिश की कि ये बंगला उनकी पत्नी के नाम अलॉट हो जाए. लेकिन उनकी पत्नी पहली बार सांसद बनीं थीं, जिसके कारण बड़ा बंगला नहीं मिल सका.
कमलनाथ किसी भी कीमत पर ये बंगला छोड़ने को तैयार नहीं थे. बंगले के लिए उन्होंने अपनी पत्नी का संसद से इस्तीफा दिलवा दिया. इसके बाद साल 1997 में हुए उपचुनाव में बीजेपी के सुंदरलाल पटवा के खिलाफ खुद मैदान में उतरे. पटवा ने ये चुनाव लड़ा और कमलनाथ को उन्हीं के गढ़ में मात दे दी. अगले साल 1998 में फिर इलेक्शन हुए. तब कमलनाथ ने पटवा को हराकर जीत हासिल की.
उसके बाद उन्हें ये बंगला खाली करने की नौबत नहीं आई. लेकिन अब फिर से वही समीकरण बन रहे हैं. दरअसल, ये बंगला सांसद को ही अलॉट किया जाता है. अब मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें इस बंगले को खाली करना होगा. ऐसे में ये भी देखने वाली बात होगी कि जिस बंगले के चक्कर में जीवन में पहली बार हारे, उसे छोड़ देंगे या फिर उसे अपने पास रखने का कोई तरीका निकालेंगे.
34 साल की उम्र में जीता पहला चुनाव
कमलनाथ 9 बार लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं. वह साल 1980 में 34 साल की उम्र में छिंदवाड़ा से पहली बार चुनाव जीते जो अब तक जारी है. कमलनाथ 1985, 1989, 1991 में लगातार चुनाव जीते. 1991 से 1995 तक उन्होंने नरसिम्हा राव सरकार में पर्यावरण मंत्रालय संभाला. वहीं 1995 से 1996 तक वे कपड़ा मंत्री रहे.
1998 और 1999 के चुनाव में भी कमलनाथ को जीत मिली. लगातार जीत हासिल करने से कमलनाथ का कांग्रेस में कद बढ़ता गया और 2001 में उन्हें महासचिव बनाया गया. वह 2004 तक पार्टी के महासचिव रहे. छिंदवाड़ा में तो जीत का दूसरा नाम कमलनाथ हो गए और 2004 में उन्होंने एक बार फिर जीत हासिल की. यह लगातार उनकी 7वीं जीत थी. गांधी परिवार का सबसे करीबी होने का इनाम भी उनको मिलता रहा और इस बार मनमोहन सिंह की सरकार में वे फिर मंत्री बने और इस बार उन्हें वाणिज्य मंत्रालय मिला.
उन्होंने यूपीए-1 की सरकार में पूरे 5 साल तक यह अहम मंत्रालय संभाला. इसके बाद 2009 में चुनाव हुआ और एक बार फिर कांग्रेस का यह दिग्गज नेता लोकसभा के लिए चुना गया. छिंदवाड़ा में कांग्रेस का यह 'कमल' लगातार खिलता गया और इस बार की मनमोहन सिंह की सरकार में इनको सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय मिला. साल 2012 में कमलनाथ संसदीय कार्यमंत्री बने.
मध्य प्रदेश में मिली थी अहम जिम्मेदारी
कमलनाथ की गिनती कांग्रेस के उन नेताओं में होती है जो संकट के समय में भी पार्टी के साथ हमेशा रहे. चाहे वो राजीव गांधी का निधन हो, 1996 से लेकर 2004 तक जिस संकट से कांग्रेस गुजर रही थी, इस दौरान भी वह पार्टी के साथ रहे वो भी तब जब शरद पवार जैसे दिग्गज नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया था. 26 अप्रैल 2018 को वह मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने. उन्हें अरुण यादव की जगह अध्यक्ष बनाया गया.